हरीश पिछले कुछ दिनों से काफी परेशान था. वैसे तो उस की दुकान ठीक ही चल रही थी परंतु उस दुकान को खरीदने के लिए 3 साल पहले उस ने जो 40 हजार डालर का कर्ज लिया था, उस के भुगतान का समय आ गया था. उस ने एक कर्ज देने वाली कंपनी से 25 प्रतिशत सालाना ब्याज की दर से रुपया उधार लिया था. वे लोग उस को कर्जे की रकम अदा करने के लिए मुहलत देने को तैयार नहीं थे. उसे मालूम था कि अगर वह समय पर रकम अदा नहीं कर पाया तो वे उस की दुकान को हड़प कर लेंगे.

ऐसा तो नहीं था कि उस की दुकान अच्छी न चलती हो, परंतु 10 हजार डालर तो हर साल कर्जे के ब्याज के ही हो जाते थे. ऊपर से उस की परेशानियों को बढ़ाने के लिए 2 साल पहले एक बेटी भी पैदा हो गई थी जिस के कारण रमा ने भी दुकान पर काम करना बंद कर दिया था. उस के काम को करने के लिए अब उसे 2 लड़कियों को रखना पड़ रहा था. वे लड़कियां मौका मिलते ही दुकान से चोरी करने में तनिक भी नहीं चूकती थीं.

हरीश ने कई बैंकों और उधार देने वाली कंपनियों से बातचीत भी की पर कोई भी उसे उधार देने को तैयार नहीं हुआ. हार कर उसे अपने दोस्त सुधीर की शरण में ही जाना पड़ा.

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सुधीर से उस ने 3 साल पहले भी उधार देने को कहा था परंतु उस ने साफ मना कर दिया था. सुधीर का दोटूक जवाब सुन कर ही वह उस उधार देने वाली कंपनी के पास गया था.

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