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पिछले अंक में आप ने पढ़ा था

राजन का फोन आते ही राधिका होटल जाने के लिए तैयार हो गई. गाड़ी में बैठते ही वह पुरानी यादों में खो गई. जब वह 19 साल की थी, तभी एक अमीर कारोबारी ने अपने बेटे के लिए उसे पसंद कर लिया था. पर उस का पति मेहुल देर रात की पार्टियों का दीवाना था. वह शराब भी पीता था.

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धीरेधीरे मेहुल बंटी के साथ शराब पीने लगा. वह उस की कोल्ड ड्रिंक के साथ ‘चीयर्स’ करता. ड्राइवर से शराब मंगवाता. नौकरों व बावर्ची से कह कर खाने में तरहतरह की चीजें बनवाता.

राधिका को यह सब बहुत अखरने लगा था. यही तो वह उम्र होती है, जब बच्चा अपने मांबाप को अपना रोल मौडल मान कर उन की नकल करता है, अच्छीबुरी आदतों को अपनाता है.

राधिका देखती कि जब मेहुल टाइम से घर नहीं आता, तब बंटी कोल्ड ड्रिंक से भरा गिलास अपने हाथों में ले कर कहता, ‘‘चलो मम्मी, आज दारू पार्टी हो जाए? रघु काका, आप मेरे लिए चीज ब्रैड और फ्रैंचफ्राई बनाओ.’’

राधिका खून का घूंट पी कर रह जाती. वह अपना दुखदर्द किस से बांटती? मायके में तो किसी की भी हिम्मत नहीं थी, जो मेहुल की आंखों में आंखें डाल कर बातें कर सके.

पर उस दिन राधिका ने भी कुछ सोच लिया था... रात 2 बजे मेहुल के मोबाइल फोन पर बात करनी चाही, तो वह स्विच औफ मिला. तकरीबन ढाई बजे मेहुल का फोन आया, ‘बैडरूम का दरवाजा खोलो.’

गुस्से में आ कर राधिका ने भी कह दिया, ‘मेहुलजी, आज यह दरवाजा नहीं खुलेगा. आप को जहां जाना है, चले जाइए... रोजरोज आप की देर से शराब पी कर आने की आदत से मैं तंग आ गई हूं... इस से बंटी पर भी गलत असर पड़ता है...’

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