कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
0:00
12:24

अगले दिन दीपिका ने 1 नहीं 2 बार उदय से फोन पर बात की. ‘‘सुबह के समय उदय खुश था, किंतु अभी जब मैं ने बात की तो वह कुछ चुप सा था. क्या बात हो सकती है?’’

‘‘दफ्तर के किसी काम में उलझा होगा. तुम्हें यहां उदय के मूड के बारे में बात करनी थी तो आई ही क्यों?’’ उदय के जिक्र से संतोष चिढ़ने लगा था. आज का दिन भी सुस्त बीता. जैसा सोचा था, वैसे कुछ नहीं हो रहा था. जबजब संतोष दीपिका को बिस्तर पर ले जाता, उस का व्यवहार इतना शिथिल रहता मानो सब कुछ उस की इच्छा के खिलाफ हो रहा हो. जिस अल्हड़ यौवन की खुशबू में संतोष खिंचा चला आता था, वह कहीं गायब हो चुकी थी. ऊपर से होटल का खर्च अलग. अगली शाम को ही दोनों ने लौटने की सोच ली.

‘‘कह दूंगी उदय से कि आप की याद आ रही थी.’’

दीपिका के कहने पर संतोष ने उस की आंखों को भेदते हुए पूछा, ‘‘कहीं यही सच तो नहीं?’’

दीपिका चुप रही. किंतु उस की झुकी नजरों ने भेद खोल दिया था. संतोष की उदासीन भावभंगिमा उस के उदास चेहरे से मेल खा रही थी. दीपिका को उस के घर रवाना कर संतोष अपने घर निकल गया.

शाम को घर लौटने पर अचानक दीपिका को अपने समक्ष पा उदय थोड़ा हैरान हुआ.

‘‘सरप्राइज,’’ चिल्ला कर दीपिका ने उदय के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘जल्दी कैसे आ गई तुम? तुम्हें तो 2 दिन बाद आना था?’’ उदय के स्वर में कोई आवेग नहीं था.

‘‘क्यों, तुम्हें खुशी नहीं हुई क्या? अरे, तुम्हारी याद जो मेरा पीछा नहीं छोड़ रही थी, इसलिए जल्दी चली आई,’’ खाना लगाते हुए दीपिका चहक रही थी. आज उस का सुर उत्साह से लबरेज था, ‘‘इतने थके से क्यों लग रहे हो? तबीयत तो ठीक है न?’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...