कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

न्यूयौर्कहवाई अड्डे पर विमान से विदेशी धरती पर कदम रखते ही चारुल मानो अपने सामने के अद्भुत दृश्य को देख कर विस्मित हो उठी. जिधर नजर जाती, बड़ेबड़े विमान और एकदम पीछे वहां की गगनचुंबी अट्टालिकाओं के पीछे से ?ार कर आते सिंदूरी उजास ने मनोरम समां बांधा हुआ था. नवंबर की शुरुआती गुलाबी ठंडक भरी हवा बह रही थी. चारुल ने सिहर कर अपने कंधों पर पड़े शौल को खोल कर अपने इर्दगिर्द कस लिया और तेज गति से इमिग्रैशन काउंटर की ओर चल पड़ी. अपनी बेखयाली में उसे यह भी याद न रहा कि जौय, उस का कालेज के जमाने का करीबी मित्र और बिजनैस पार्टनर भी इस यात्रा में उस के साथसाथ और उस के पीछेपीछे आ रहा था.

‘‘भई चारुल, बहुत जल्दी चलती हो तुम तो. मैं जरा अपने वीसा के डौक्यूमैंट्स निकाल रहा था और तुम तो देखतेदेखते गायब ही हो गई. इमिग्रैशन काउंटर पर सील लगवा ली?’’

‘‘जी जनाब, आप से पहले ही लगवा ली. तभी कहती हूं, थोड़ी वौकिंग करो. ऐक्सरसाइज किया करो. दिनदिन भर औफिस में बैठे रहते हो. यह हैल्थ के लिए ठीक नहीं.’’

‘‘करूंगा, करूंगा यार, मिडल ऐज आने दो. अमां यार अभी तो मैं जवान हूं.’’

‘‘तुम इतनी इनऐक्टिव लाइफ जीते हो. ओह, मुग्धा तुम से कुछ नहीं कहती?’’

‘‘अरे, उसे अपनी किट्टी पार्टी और सोशल आउटिंग्स से फुरसत मिले, तब तो मेरी तरफ ध्यान देगी.’’

‘‘ओह जौय, आज इतने बरसों बाद घर से निकल कर इतना अच्छा लग रहा है कि पूछो मत,’’ एक लंबी सांस लेते हुए चारुल ने कहा.

‘‘हां चारुल, एक मुद्दत बाद निकली हो न तुम घर से, इसलिए ऐसा फील हो रहा है तुम्हें. फिर फौरेन विजिट का अपना ही चार्म है. अपने देश की तुलना में यहां की पौल्यूशन रहित हवा, चौड़ीचौड़ी हलके ट्रैफिक वाली सड़कें, ऊंचेऊंचे स्काई स्केपर्स, साथ में घनी हरियाली, सबकुछ मन को बेहद सुकून देता है. लेकिन न्यूयौर्क शहर के भीतर जब तुम जाओगी, तो वहां तुम्हें बिलकुल दिल्ली वाला फील आएगा. वही दिल्ली जैसा बेतरतीब ट्रैफिक, भीड़भाड़ भरे बाजार देखने को मिलेंगे. तुम तो पहली बार आई हो न यहां. मैं तो पहले भी आ चुका हूं.’’

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...