गरिमा से बात कर के तनु का मन और भी परेशान हो गया. बस एक तसल्ली थी कि चलो कोई तो है जिस से बात कर के मन का बोझ थोड़ा हलका हो जाएगा. उस ने सिर को झटका और बाथरूम में चली गई.

अगले दिन गरिमा से मिल बातें कर के उस ने एक निश्चय किया और घर आ कर रोहन का फोन मिलाया. फोन नहीं लग रहा था. काफी देर तक मिलाती रही. एक बार दिल धड़का कि कहीं कुछ गड़बड़ तो नहीं हो गई है. फोन बंद ही आ रहा था लगातार. फिर अचानक जाने क्या सूझ कि उस की बहन का फोन मिला लिया, ‘‘घर छोड़ कर जा रही हूं. यही चाहते थे न तुम लोग. बता देना अपने भाई को. मैं बात कर के अपना मूड़ खराब नहीं करना चाहती हूं,’’ कहते ही फोन औफ कर दिया.

वही पहले वाला कंपनी का फ्लैट, वही औफिस और वही रूटीन फिर से शुरू हो गया.

हां हर दिन औफिस से लौट कर इंतजार रहता कि कोई मैसेज मिलेगा. कोई फोन आएगा पर रात होतेहोते सब निराशा में बदल जाता और वही अपनी पसंद के गाने सुन कर तनु सो जाती. कोई मैसेज, फोन, चिट्ठी, इंसान नहीं आया. महीने और फिर साल गुजर गया. मम्मीपापा से भी तनु ने संपर्क नहीं किया. बस खो गई अपने काम में फिर पहले की तरह, जब रोहन से मुलाकात नहीं हुई थी. कंपनी की बहुत सी जिम्मेदारियां अपने कंधों पर ले कर.

कंपनी की 25वीं वर्षगांठ मनाई जा रही थी. जोरदार तैयारियां चल रही थीं. गरिमा का बच्चा छोटा था, इसलिए तनु ही फंक्शन को और्गेनाइज करने में लगी थी. पुराने कर्मचारियों में सब से अधिक प्रतिभाशाली तनु और गरिमा ही थीं. दिनभर औफिस में काम चलता. शाम को वीडियोकौल कर के प्रोग्राम की तैयारी पर बात होती.

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