शामके 5 बजते ही अनन्या को सहसा ध्यान आया कि आज बुधवार के दिन उस की एक कमिटमैंट थी खुद के साथ. चेहरे पर सहज फैलती मुसकान को रोक पाने में असमर्थ, उस ने जल्दीजल्दी खुद को एकत्रित करना शुरू किया कि अरे, आर्यन की मैथ्स की वर्कशीट तो उस ने कब की बना कर तैयार कर रखी है. जल्दी से उसे अध्ययन कक्ष की मेज पर रख कर वह बेटी अवनी को उठाने के लिए उस के कमरे की तरफ बढ़ी क्योंकि उसे दोपहर के विश्राम के बाद अपनी क्लासेज के लिए भी जाना था.

तमाम आपाधापी के बीच रात्रि के भोजन की भी एक रूपरेखा सी तैयार करनी थी, सो अनन्या तेज कदमों से फ्रिज की ओर बढ़ी. उस ने सब्जियां किचन के प्लेटफौर्म पर रख दीं ताकि उस की गैरमौजूदगी में भी उस की गृहसहायिका अपना काम शुरू कर सके. इन तमाम तैयारियों के बाद अनन्या ने फ्रिज के द्वार पर पति अक्षत के लिए एक छोटी सी परची लगा कर छोड़ी जिस में लिखा था, ‘‘तो फिर जल्दी ही मिलती हूं, कौफी डेट के बाद. तुम्हारी प्रिया,’’

अब 5 बज कर 20 मिनट पर वह खुद को संवारने में व्यस्त हो गई. सचमुच में कितना आनंददायक था यह विचार कि सप्ताह के बीचोंबीच उसे खुद को संवारने का मौका मिल रहा था. यह बात एक उपलब्धि से कम नहीं थी. बड़ी ही चेष्टा और मनोयोग से उस ने खुद को इस पल के लिए व्यवस्थित किया. अन्यथा घर की दिनचर्या, पति और बच्चों के साथ उन की जरूरतों को सम?ाते हुए उसे यह आभास ही नहीं रहा था कि अनन्या कौन थी और उस के जीवन का मकसद क्या था?

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