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‘‘अरवाह, हो गई तुम्हें जौब औफर. प्राउड औफ यू बेटा. यहां दिल्ली में ही यह कंपनी या कहीं और जाना पड़ेगा?’’

‘‘मम्मा, बस निकल ही रहा हूं कालेज से. घर आ कर बताता हूं सब.’’

बेटे विहान से फोन पर बात होते ही कावेरी पति सुनील से उत्साह में भर कर बोली, ‘‘सुनो, विहान को एक मल्टीनैशनल कंपनी ने नौकरी दी है. मैं अभी जूही के घर जा कर यह खुशखबरी दे दे आती हूं.’’

‘‘वाह, अब कमाऊ हो जायेगा अपना बेटा. मैं भी चलता हूं तुम्हारे साथ. पड़ोसियों को दे ही देते हैं यह गुड न्यूज.’’

‘‘पड़ोसी नहीं, समधी कहो. अब जल्द ही कर देंगे जूही और विहान का रिश्ता पक्का.’’

दोनों खिलखिलाते हुए घर से निकल पड़े.

बीटैक फाइनल ईयर में पढ़ रहे विहान के कालेज में कुछ कंपनियां आज कैंपस प्लेसमैंट के लिए आई थीं. तीक्ष्ण बुद्धि और आकर्षक व्यक्तित्व के विहान को 5 मिनट का साक्षात्कार ले कर ही चुन लिया गया. वह जानता था कि मातापिता को यह बात सुन कर जितनी प्रसन्नता होगी, उतनी ही निराशा यह सुन कर होगी कि उसे समैस्टर पूरा होते ही जौइनिंग के लिए बैंगलुरु जाना होगा.

पड़ोस में रहने वाली जूही विहान की बचपन की मित्र थी. गोरा रंग, औसत कद, भूरी आंखें और मुसकराते भोलेभाले चेहरे वाली जूही विहान से 1 साल छोटी थी. दोनों एक ही स्कूल में पढ़े थे. 12वीं के बाद विहान ने एक इंजीनियरिंग कालेज में एडमिशन ले लिया. कंप्यूटर साइंस से बीटैक कर रहे विहान के कालेज से सटा भवन जूही का इंस्टिट्यूट था, जहां वह ग्राफिक डिजाइन में बैचलर्स कर रही थी. प्रतिदिन दोनों साथसाथ कालेज आतेजाते थे. आज प्लेसमैंट के लिए इंटरव्यू चल रहे थे, इसलिए विहान देर तक कालेज में रुका हुआ था.

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