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लेखिका- मेहा गुप्ता

उस दिन अवि और मुसकान दोनों बहुत ही खुश थे. अब उन दोनों के बीच चैटिंग भी बढ़ने लगी थी. पहले मिनटों... फिर घंटों... जिन बातों का कोई मतलब नहीं होता है, उन्हें करने में भी अजीब सुकून मिलता. एक अजीब सा इंतजार रहता दिनभर और नजरें फोन के नोटिफिकेशंस पर टिकी रहतीं. इस तरह से हर संडे मिलते हुए भी कई महीने हो गए थे.

अब कुछ महीनों से मुसकान के साथ कुछ अलग होने लगा था... एक मदहोशी सी उस पर छाई रहती, क्योंकि प्यार फिजाओं में घुल गया था. ऐसा इस से पहले उस ने कभी महसूस नहीं किया था. वह काफी बदलने लगी थी. पढ़ाई से पहले अवि से चैटिंग उस की प्राथमिकता बन गया था. वह रूम में भी हमेशा वेलड्रेस्ड रहती, क्या पता, कब अवि उसे वीडियो काल कर दे.

"तुम ने टीशर्ट बहुत अच्छी पहन रखी है," एक दिन कैफे में मुसकान ने कहा.

"हां, मम्मा की पसंद है. वो हैं ही इतनी सुपर्ब... वे अच्छे से जानती हैं कि मेरे लिए क्या अच्छा है और क्या बुरा. मेरी सारी शौपिंग वे ही करती हैं."

इस के पहले भी मुसकान ने महसूस किया था कि उस की मम्मी की बात आने पर वह कुछ ज्यादा ही उत्साही हो जाता था और मम्मी की तारीफों के पुल बांधने लगता. और उस की कोई भी चैट मम्मी के जिक्र के बिना पूरी नहीं होती थी.

इस तरह एहसासों में डूबतेउतरते मुसकान फोर्थ ईयर में आ गई. समय ने, साथ ने और किस्मत ने उन दोनों के बीच प्रेम अंकुरित कर दिया था, जिस से मुसकान की आंखों में भविष्य के सपने उग आए थे.

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