यों इलजाम न लगाओ…मधु और अरिहंत अलग-अलग जाति के थे और शादी करना चाहते थे. इस बात की जानकारी जब घर वालों को मिली तो फिर वही हुआ जिस की उम्मीद न थी…‘‘मां,आज मयंक का बर्थडे है…’’  मैं अभी बोल ही रही थी कि विनीत का फोन बज उठा. ‘दीदी, मयंक का जन्मदिन है. आज प्लीज छुट्टी ले कर आ जाओ.’’

‘‘अरे वाह, मैं तो अभी मां से यही बोल रही थी. जरूर आऊंगी. मैं ने औलरैडी छुट्टी के लिए बोल दिया है,’’ कह कर मैं अपने औफिस चली गई. हाफ डे के बाद मैं ने छुट्टी ले ली और फिर वहां से मौल चली गई. ठंड के दिन आ गए थे.

मैं मोंटे कार्लो के शोरूम में जा कर मयंक के लिए स्वैटर पसंद करने लगी. कई स्वैटर, जैकेट देखे. उन सब में एक स्वैटर मु   झे बहुत ही अच्छा लग रहा था. उसे देख कर मैं ने पैक कराया और फिर मोबाइल से बिल पेमैंट कर मैं चली आई. आजकल सबकुछ मोबाइल से होता है. मोबाइल मेरे कुरते की जेब में था. जब मैं घर आई, तब मु   झे याद आया कि मैं पर्स तो वहीं दुकान में भूल आई. अब मु   झे सम   झ नहीं आ रहा था कि मैं वापस जाऊं या क्या करूं क्योंकि अंधेरा भी घिरने लगा था. मैं ने मां से कहा, ‘‘मां मैं एक बार मौल में हो आती हूं. मैं ने अपना पर्स वहीं छोड़ दिया है. उसी में मेरा आधार कार्ड और सारे बैंक के कार्ड भी रखे हुए हैं इसलिए मु   झे जाना ही होगा.’’

‘‘क्या करती हो बेटी, अब तक इतनी लापरवाह कैसे हो?’’ मां बड़बड़ाई. तभी दरवाजे पर कौलिंग बैल बजी. ‘‘अरे, इस समय कौन आ गया?’’ मैं ने आश्चर्यचकित हो कर दरवाजा खोला. सामने एक अजनबी था. उस के हाथ में मेरा पर्स था. उस ने मुसकराते हुए कहा, ‘‘माधुरी, यह लो अपना पर्स. तुम अपनी पुरानी आदत कभी नहीं बदलोगी. पता नहीं कैसे मैंटेन रखती हो खुद को? हमेशा भूलने की आदत है तुम्हारी.’’ ‘‘ऐसे तो अरिहंत बोलता था,’’ मैं ने मन ही मन सोचा और अजनबी पर गौर किया. वह सचमुच में अरिहंत ही था.

‘‘अरे अरिहंत, तुम?’’‘‘हां मैं, चलो तुम ने मु   झे पहचान तो लिया,’’ उस ने अपने हाथों को अपने सिर से लगाते हुए कहा, ‘‘बड़ी इल्तिजा हमारी जो आप ने हमें पहचान लिया. अब अंदर भी बुला लो.’’‘‘हांहां,’’ मैं दरवाजे से हटते हुए बोली. अरिहंत अंदर जा कर ड्राइंगरूम में बैठ गया. उस ने कहा, ‘‘अब अपने हस्बैंड से परिचय कराओ और यह स्वैटर जो तुम खरीद रही थी वह तुम्हारे बच्चे के लिए है?’’

‘‘नहीं, वह मेरे भतीजे के लिए है, मेरे भाई के बेटे के लिए.’’ ‘‘अच्छा… विनीत का बेटा… इतना बड़ा हो गया. उस की शादी हो गई. बच्चे भी हो गए और तुम्हारे?’’ उस ने प्रश्नसूचक निगाहें मेरे ऊपर टिका दीं.‘‘नहीं…’’ मेरी बात अधूरी रह गई. तभी मां ड्राइंगरूम में आते हुए बोली, ‘‘इस की शादी में कोई रुचि नहीं. पता नहीं अपना दिल किसे दिया. कुछ बताती भी नहीं… बोलबोल कर थक गई हूं. अब बोलना भी बंद कर दिया.’’ मां की चिढ़ती हुई आवाज से न जाने क्यों मु   झे अरिहंत की आंखों में राहत नजर आई. उस ने कहा, ‘‘तो मैडम, आप ने शादी नहीं की?’’‘‘नहीं की.’’

‘‘जाओ बेटी, चाय बना कर लाओ,’’ मां ने कहा तो मैं किचन में चली गई.‘‘और बताओ बेटा, तुम्हारा क्या हालचाल है?’’ मां की आवाज रसोई तक आ रही थी. ‘‘एक बार यहां से गए तो पलट कर आए नहीं कभी?’’ मां बोल रही थी. ‘‘नहीं आंटी, हिम्मत नहीं पड़ती थी आने की. बड़ी हिम्मत करता था लेकिन पैर पीछे हट जाते थे. कुछ यादें ही ऐसी रह गई हैं,’’ अरिहंत ने टूटेफूटे शब्दों में कहा.

‘‘फिर यहां कैसे आना हुआ?’’

‘‘मैं अपनी नौकरी के सिलसिले में आया हूं. अब मेरे विभाग ने मेरा ट्रांसफर कर दिया है. मैं इस शहर को कभी भूल नहीं पाया. आज मैं यहां आने ही वाला था कि मेरी नजर माधुरी पर पड़ी जो औफिस से निकल कर मौल की तरफ जा रही थी. मैं वहीं था. तभी मैं ने उसे स्वैटर के शोरूम में घुसते हुए देखा. मैं पीछेपीछे गया मगर मैं उस से कुछ कह नहीं पाया. तभी मैं ने देखा कि वह वहां अपना पर्स भूल आई है तो मैं ने दुकान वाले भाई साहब को सारी बात बताई तो उस ने मु   झे पर्स दे दिया. मैं ने उसे चैक किया, उस में मु   झे घर का पता नजर आया. तब मु   झे लगा कि आप लोग इसी पुराने घर में रहते हैं. फिर उसी के पीछेपीछे मैं यहां तक आ गया.’’

‘‘बहुत अच्छा किया बेटा,’’ मां ने कहा. तब तक मैं चाय और प्याज की पकौड़े ले कर वहां आ चुकी थी.‘‘अरे वाह, प्याज की पकौडि़यां…’’ उस ने पूरा प्लेट उठा ली. पकौड़े खाते हुए बोला, ‘‘भूली नहीं हो पकौड़े बनाना,’’ और वह मुसकराने लगा.‘‘चाय और पकौड़े खाने के बाद उस ने मां और मु   झ से आज्ञा मांगी और चला गया. शाम हो चुकी थी. रूही खाना बनाने के लिए आ चुकी थी.

‘‘रूही आज खाना नहीं बनेगा तुम बस दूध उबाल लो.’’‘‘ठीक है दीदी, मैं सुबह की सब्जियां अभी काट लेती हूं,’’ कह कर वह रसोई में चली गई और मैं अपने कमरे में. कुछ पुरानी यादें मेरे जेहन में दोबारा घूमने लगीं… जब मैं कालेज में थी और अरिहंत भी मेरे साथ ही था. न चाहते हुए भी मेरी नजरें कई बार उस से टकरा जाती थीं और हम एकदूसरे को देख कर मुसकरा दिया करते थे. समय बीता हम दोनों ने एकदूसरे को पसंद कर लिया था. अपने घर वालों से छिपछिप कर हम ने प्यार तो कर लिया था लेकिन डर लगता था कि कहीं हमारी पेरैंट्स हमारे प्रेम कहानी को स्वीकार करें या न करें.

मगर हमारा प्यार अधूरा रह गया था. अरिहंत के घर में उन की एक बड़ी बूआ जो साथ में रहती थीं. उन्हें हमारी प्रेम कहानी बिलकुल पसंद नहीं थी. कालेज के बाद अरिहंत ने बैंक के पीओ की परीक्षा दी और पास कर गया. उस के बाद उस ने अपने घर में मेरे बारे में बात की. उस की बड़ी बूआ ने सिरे से इनकार कर दिया. अरिहंत की बड़ी बूआ उस के पिता से बहुत ज्यादा बड़ी थी. वह विधवा भी थी और मायके में रह रही थी. कोई भी उन की बात नहीं काटा करता था.

मैं और अरिहंत दोनों 2 अलग-अलग जाति के थे. यह मध्यवर्ग के समाज में बहुत बड़ा मुद्दा होता है, जिस से हम दोनों भी अछूते नहीं थे. मैं चुप रही थी. मैं ने अरिहंत को पहल करने के लिए कहा था, जिस में अरिहंत पूरी तरह से फेल हो चुका था.‘‘कान खोल कर सुन लो लल्ला, मेरे रहते हुए किसी और जात की लड़की इस घर में बहू नहीं बनेगी,’’ बड़ी बूआ ने दहाड़ते हुए कहा था. बूआ की इस बात से निराश हो कर अरिहंत ने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करवा लिया था.

जाने से पहले उस ने मुझसे से कहा था, ‘‘जब तक बड़ी बूआ हैं, हम दोनों नहीं मिल सकते. मेरे मातापिता को कोई आपत्ति नहीं लेकिन तुम मेरा इंतजार मत करना. तुम्हें कोई अच्छा रिश्ता नजर आए तो तुम फौरन शादी कर लेना…’’ मगर इस के लिए मैं तैयार नहीं थी. मैं ने कहा, ‘‘अब इस टूटे दिल में कौन बसेगा अरिहंत? मेरा जो कुछ है वह तुम हो.’’ ‘‘पागल मत बनो मधु, जब समय बीत जाता है तो सब कुछ सही हो जाता है. मैं जा रहा हूं तुम्हें आजाद कर के,’’ अरिहंत की इस बात पर मैं ने कुछ भी नहीं कहा फिर दोनों के रास्ते अलग हो गए. मैंने पढ़ाई के बाद कंप्यूटर का कोर्स किया और एक औफिस में काम करने लगी. मेरे घर में मेरे अलावा मेरा छोटा भाई ही था. मेरे पिता कई तरह के रिश्ते ले कर आए लेकिन मैं ने हर रिश्ते को न कर दिया. मैं ने अपनेआप को पढ़ाई में पूरी तरह डुबो दिया और बड़ी दृढ़ता से कहा, ‘‘जब तक मेरी नौकरी नहीं लगेगी मैं शादी नहीं करूंगी.’’

पिता बोलते हुए थक गए लेकिन मैं टस से मस नहीं हुई. आज अचानक अरिहंत दोबारा सामने आ गया. मेरे सोए हुए सपने और सारे अरमान जागने लगे थे. ‘‘मधु… मधु…’’ तभी मां की आवाज आई. ‘‘हां मां…’’ मैं ने अपना चेहरा छिपाते हुए कहा. मेरा पूरा चेहरा आंसुओं से भीगा हुआ था. मैं ने जल्दी से नल में जा कर अपना चेहरा धोया और बाहर निकली. ‘‘किन खयालों में गुम हो मधु? तुम्हें पता है कि हमें विनीत के घर जाना है?’’ मां ने कहा. ‘‘मैं तो भूल ही गई थी मां. मैं जल्दी से तैयार हो जाती हूं. मां आप भी तैयार हो जाइए.’’ ‘‘मैं तैयार बैठी हूं. तुम जल्दी से तैयार हो जाओ और तुम्हारी आंखें इतनी लाल क्यों हैं?’’  मां चिंतित हो गई.‘‘पता नहीं,’’ कह कर मैं जल्दी से तैयार होने के लिए चली गई. पार्टी काफी अच्छी थी. विनीत ने बहुत अच्छा अरेंजमैंट किया था. रात में खाना खाने के बाद हम मांबेटी दोनों वापस आ गए और सो गए. दूसरे दिन अरिहंत के फोन से ही मेरी नींद टूटी.

‘‘हैलो, मधु, मैं अरिहंत बोल रहा हूं.’’‘‘अरिहंत, तुम्हारे पास मेरा नंबर कैसे? मैं तो कल नंबर लेना ही भूल गई थी,’’ मैं चौंक कर बोली. ‘‘ओह मधु, आई एम सौरी. तुम्हारा नंबर मेरे पास पहले से था. मैं ने तुम्हारे बारे में सबकुछ पता कर लिया था. माधुरी, तुम्हारा फोन नंबर, तुम्हारी जौब प्रोफाइल, हर चीज मु   झे पता है. तुम ने शादी नहीं की, यह भी पता है और यही मु   झे जीने के लिए हिम्मत देता रहा. मैं तुम से मिलने ही आया हूं यह बताने कि अब बड़ी बूआ नहीं रही. मां और पापा को तुम से कोई आपत्ति नहीं. मैं शादी करने के लिए तैयार हूं अगर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं हो तो बताओ?’’ मैं इस सरप्राइज के लिए तैयार नहीं थी. मैं खिसियाते हुए बोली, ‘‘अरिहंत, प्लीज इस तरह का मजाक मत करो.’’‘‘नहीं मैं मजाक नहीं कर रहा. मैं सीरियस हूं. अगर तुम्हारी हां है तो मैं अभी आ रहा हूं तुम्हारी मां से बात करने के लिए.’’

अचानक इस सरप्राइज गिफ्ट से मेरी आंखें शर्म से झुक गईं. मैं ने कहा, ‘‘नहीं मुझे कोई आपत्ति नहीं है. मैं तो तुम्हारा इंतजार कर रही थी.’’ ‘‘सेम टू सेम… हियर,’’ अरिहंत ने कहा. थोड़ी देर बाद अरिहंत घर आया. उस ने मम्मी को पैर छू कर प्रणाम किया और कहा, ‘‘आंटी प्रणाम, मैं शुरू से माधुरी से बहुत ज्यादा प्यार करता था. उसे अपना जीवनसाथी बनाना चाहता था. वह भी मेरा ही इंतजार करती रह गई.  अब मैं इस अधूरे प्यार को पूरे रिश्ते में बदलना चाहता हूं, अगर आप इजाजत दें तो?’’मां आश्चर्यचकित हो कर देखने लगीं. मां की आंखें भर उठीं, ‘‘माधुरी के पापा तुम्हारा इंतजार करते हुए चले गए बेटा.’’ ‘‘कोई बात नहीं आंटी आप हैं न. आप आशीर्वाद दे दीजिएगा.’’ मां ने तुरंत विनीत को फोन लगाया और सारी बातें बताई. विनीत भी हड़बढ़ाते हुए चला आया. उस ने सारी बातें सुन कर अरिहंत को शगुन की रकम पकड़ाते हुए कहा, ‘‘हमें यह शादी मंजूर है.’’मेरा और अरिहंत का त्याग पूरा हो चुका था. हम दोनों को अपना प्यार मिल चुका था.

 

 

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