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बरसातके पानी की बड़ी-बड़ी बूंदें रिम?िम करके बरस रही थीं. मौसम बड़ा खुशनुमा और प्यारा हो रहा था. पानी की फुहारें मानो ठंडी-ठंडी हवाओं के साथ मन को रि?ा रही थीं. उन्हें देख कर लग रहा था कि जैसे मन की सारी मुरादें पूरी होने वाली हैं. स्वनिल और स्नेहा के प्यार को स्वनिल की मां ने कबूल कर लिया था. स्वनिल एक हाईटेक कंपनी में मैनेजर था और स्नेहा उसकी जूनियर. साथ काम करते-करते न जाने कब दोनों के दिल के तार जुड़ गए और दोस्ती चाहत में बदल गई. स्वनिल के पिताजी उसके बचपन में ही गुजर गए थे, मां ने ही उसे आंखों में सपने लिए बड़ी मेहनत से पाला था. उसने अपनी मां को चिट्ठी लिख कर स्नेहा के बारे में सब बता दिया था और उसकी तसवीर भी भेजी थी. मां का जवाब उसी के पक्ष में आया था. अगले सप्ताह मां खुद आने वाली थीं, अपनी होने वाली बहू से मिलने. ऑफिस से आने के बाद स्वनिल ने जल्दी से स्नेहा को अपने केबिन में बुलाया.

‘‘क्या हुआ स्वनिल,’’ स्नेहा ने आते ही पूछा.

‘‘स्नेहा, तुम्हें तो पता ही था कि मैंने मां को तुम्हारे बारे में बताया है, कल घर जाने के बाद मु?ो उनका खत मिला.’’ स्वनिल ने उदास हो कर कहा, ‘‘क्या लिखा था उस खत में और तुम इतने उदास क्यों हो?’’ स्नेहा ने घबराते हुए पूछा. ‘‘बात ही ऐसी है, स्नेहा मां ने हमेशा के लिए तुम्हें मेरे पल्ले बांधने का फैसला सुनाया है,’’ स्वनिल ने बड़ी गंभीरता से अपनी बात पूरी की. स्वनिल ने यह बात इतनी ज्यादा गंभीरता से कही थी कि पहले तो स्नेहा सम?ा न सकी पर जब सम?ा तो उसका चेहरा खुशी से खिल उठा.

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