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लेखक- सुधीर मौर्य

अजंता को इस बात की बिलकुल भी उम्मीद नहीं रही होगी कि शशांक उस के फ्लैट पर आ जाएगा. डोरबैल बजने पर अजंता ने जब दरवाजा खोला तो सामने शशांक खड़ा था. उसे यों वहां आया देख कर अजंता सोच ही रही थी कि वह कैसे रिएक्ट करे तभी शशांक मुसकराते हुए बोला, ‘‘नमस्ते मैम, यहां से गुजर रहा था तो याद आया इस एरिया में आप रहती हैं. बस दिल में खयाल आया कि आप के साथ चाय पी लूं.’’

‘‘बट अभी मैं कल क्लास में देने वाले लैक्चर की तैयारी कर रही हूं, चाय पीने के लिए नहीं आ सकती,’’ अजंता ने शशांक को दरवाजे से लौटा देने की गरज से कहा.

‘‘अरे मैम, इतनी धूप में आप बाहर आ कर चाय पीएं यह तो हम बिलकुल न चाहेंगे. चाय तो हम यहां फ्लैट में बैठ कर पी सकते हैं. चाय मैं बनाऊंगा आप लैक्चर की तैयारी करते रहना और हां एक बात बता दूं हम चाय बहुत अच्छी बनाते हैं,’’ शशांक ने दरवाजे से फ्लैट के अंदर देखने की कोशिश करते हुए कहा मानो वह यह तहकीकात कर रहा हो कि इस वक्त अजंता फ्लैट में अकेली है या कोई और भी वहां है.

शशांक की कही बात का अजंता कोई जवाब न दे सकी. एक पल चुप रहने के बाद वह बिना कुछ कहे फ्लैट के भीतर आ गई. शशांक भी उस के पीछेपीछे अंदर आ गया. शशांक ने दरवाजा बंद किया तो उस की आवाज से अजंता ने पलट कर जब उसे देखा तो शशांक ने झट से पूछा, ‘‘मैम, किचन किधर है?’’

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