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लेखिका- प्रेमलता यदु

पुलिस स्टेशन पर पांव धरते ही मेरी सांसें तेज हो गईं. रोना तो तभी से आ रहा था जब से पुलिस ने पकड़ा था लेकिन अब तो आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे, उस पर जब इंस्पैक्टर साहब ने कहा-

"अपने पापा को फोन लगाओ और यहां आने को कहो."

उन का यह कहना था कि मेरे हाथपांव कांपने लगे. अतुल के माथे पर भी पसीने की बूंदें दिखाई देने लगीं. अतुल ने इंस्पैक्टर साहब को बहुत समझाने की कोशिश की कि वे कम से कम मुझे जाने दें. लेकिन इंस्पैक्टर साहब मुझे छोड़ने को तैयार ही नहीं थे, वे तो इस बात पर अड़े रहे कि वे मुझे परिवार वालों को ही सौंपेंगे और मेरा यह सोचसोच कर बुरा हाल हो रहा था कि यदि पापा और घर के अन्य सदस्यों को पता चलेगा कि मैं अतुल के साथ शहर से दूर एक लव स्पौट पर पकड़ी गई हूं तो सब के सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी. यही हाल अतुल का भी था. घर वाले हमें इस हाल में देखेंगे तो क्या सोचेंगे. अतुल ने जरूरी काम का बहाना बना कर औफिस से छुट्टी ली थी, इसलिए वह औफिस भी फोन नहीं कर सकता था. इस वक्त हमारे पास घर पर फोन करने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था.

मैं बारबार उस घड़ी को कोस रही थी जब मैं घर पर सब से झूठ बोल कर निकली थी कि ग्रुप स्टडीज और एग्जाम की तैयारी के लिए अपनी फ्रैंड शालिनी के घर जा रही हूं.

मैं अतुल से मिलने जा रही हूं, यह बात मेरे चाचा की बेटी भूमि के अलावा कोई नहीं जानता था. भूमि केवल मेरी बहन ही नहीं, मेरी सब से अच्छी दोस्त भी है. मेरे और अतुल के बीच की सेतु भी इस वक्त वही है. भूमि के साथ ही मैं घर से निकली थी और उस ने ही घर पर सब से कहा था कि वह मुझे शालिनी के घर पर ड्रौप करने जा रही है. अब हमारे साथसाथ भूमि भी घर वालों के रडार पर थी, यह सोच कर मैं और भी परेशान थी.

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