कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

‘‘आप को इस तरह लैक्चर देने का मुझे कोई हक नहीं बनता. सौरी, पर ऐसी ही नादानी मैं स्वयं कर चुका हूं इसलिए अपनेआप को रोक नहीं पाया,’’ कुछ देर चुप रहने के बाद डाक्टर राज बोला.

‘‘एक शर्त पर यदि आप मुझे आला और अपने बारे में सब कुछ बताएं,’’ छाया अपने पर काबू कर बोल उठी.

‘‘बताने को कुछ खास नहीं. आला को जन्म देने के बाद उस की मां किसी हादसे में हमें छोड़ कर चली गई. मैं अपने दुख में इस कदर डूब गया कि अपने दुख के सामने इस बिन मां की नन्ही सी जान का भी ध्यान न रख पाया, भूल ही गया कि इस मासूम, निरीह ने भी तो अपनी मां को खोया है.

‘‘मेरी लापरवाही की सजा मेरी बच्ची को मिली, वह मरतेमरते तो बच गई पर पोलियो ने इस का एक पैर छीन लिया. उसी दिन से आला मेरे जीने का बहाना बन गई, उस का खोया हुआ पैर तो मैं वापस नहीं ला सकता, पर और बच्चों को जिंदगी दे सकूं, बस इसलिए अपनेआप को इन बच्चों की सेवा में समर्पित कर दिया. कई बड़े लोगों के सहयोग से एक अस्पताल बनाया है बच्चों के लिए. जो लोग अपने बच्चों का इलाज अच्छे अस्पतालों में नहीं करा सकते, उन के लिए. नन्हेनन्हे बच्चों की हंसी ने ही मेरा सुकून मुझे लौटाया है... यह मेरा अपना ऐक्सपीरियंस है... अपने दुख पर विजय पा कर दूसरों के लिए शुरू कर दें तो अपना दुख खुदबखुद कम हो जाता है.’’

सारी रात छाया सो नहीं पाई. आला के पिता के शब्द कानों में गूंजते रहे कि तुम सचमुच सूरजमुखी हो जो खिलने के लिए सूरज की किरणों की मुहताज है. अपनेआप में कुछ भी नहीं. कितना सताया है उस ने मम्मापापा को अपने इस व्यवहार से, डाक्टर तो लोगों की पीड़ा हरते हैं और वह तो अपनों को ही पीड़ा दे बैठी...

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...