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गौरव का इंतजार करते करते बहुत देर हो गई, लेकिन उस का कहीं अतापता नहीं था. पति और कल्पना में समाए हुए प्रेमी के बीच द्वंद्वात्मक स्थिति से हताश वह देर तक भीगी पलकों के साथ झूल को निहारती रही, फिर चल पड़ी घर की ओर. वह घर जो अब घर नहीं, बल्कि मकान का ढांचा भर रह गया था.

भावशून्यता एवं संवादहीनता के कारण अनुपम और मोनिका के लिए अवकाश के दिन भी बोझ बन गए थे. ऐसे ही अवकाश के एक दिन ब्रेकफास्ट के बाद मोनिका और अनुपम अपनेअपने मोबाइल पर चिपटे हुए थे, तभी उन के घनिष्ठ तुषार और नेहा उन से मिलने आ पहुंचे. दोनों नगर निगम में सेवारत थे. तुषार जूनियर इंजीनियर और नेहा वहीं हैड क्लर्क के पद पर. उन्होंने प्रेम विवाह किया था और बहुत खुश थे. चारों लौन में आ गए. बातों ही बातों में दोनों के टूटते संबंध के बारे में जान कर तुषार और नेहा दुखी हो उठे.

घर पहुंच कर दोनों ने आपसी मंत्रणा कर अनुपम और मोनिका के संबंधों को बचाने

की रूपरेखा तैयार की. इस के लिए अनुपम और मोनिका से अलगअलग बात करना जरूरी था.उसी शाम उन्होंने अनुपम को चाय पर बुलाया. चाय पीने के बीच बात शुरू की तुषार ने, ‘‘अनुपम, क्या बात है यों घुटघुट कर क्यों जी रहे हो? जीवन को क्यों नर्क बना रखा है? हम से कुछ छिपा नहीं है.’’

‘‘मोनिका ने मेरा जीवन बरबाद कर दिया है, अब साथ रहना मुश्किल है,’’ अनुपम ने अपने मन की बात कह दी. फिर और कुरेदने पर पूरी भड़ास निकाल दी.

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