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लेखक- भारत दोसी

राधिका मैडम ने उबाकई ली, फिर इधरउधर नजर दौड़ाई. बस में आज उन के रास्ते का स्टाफ कम था. कहीं छुट्टी तो नहीं है? कोई नेता अचानक मर गया होगा. उन्होंने पिता को फोन किया. कोई नेता नहीं मरा था, छुट्टी भी नहीं थी. बस चलने लगी. उन्होंने बैग से ‘हनुमान चालीसा’ निकाली और पढ़ने लगीं.

थोड़ी देर में बस स्टैंड आ गया. वे धीरेधीरे नीचे उतरीं. घड़ी देखी. 8 बजे थे. आधा घंटा देर हो गई थी. वे आराम से चलते हुए स्कूल पहुंचीं. 3-4 छात्र आए थे. एक नौजवान भी खड़ा था.

राधिका मैडम ताला खोल कर अंदर गईं और कुरसी पर पसर गईं. उस नौजवान ने कमरे में आ कर नमस्ते कहते हुए एक कागज उन की तरफ बढ़ा दिया.

राधिका ने देखा कि वह जौइनिंग लैटर था. नाम पढ़ा. श्यामलाल आदिवासी. उन्होंने मुंह बनाया और श्यामलाल को कुरसी पर बैठने को कहा. फिर पूछा, ‘‘क्या आईपीएससी से चयनित हो? कितने नंबर आए थे?’’

जवाब का इंतजार न करते हुए वे फिर बोलीं, ‘‘इस गांव में सभी आदिवासी हैं. बच्चों को पढ़ाने नहीं भेजते. मैं तो थक गई. अब तुम कोशिश करो. यहां गांव में वनवासी संगठन का एकल स्कूल चलता है. बहुत से बच्चे वहीं पढ़ने जाते हैं.’’ श्यामलाल बोल पड़ा ‘‘हम पढ़ाएंगे, तो हमारे यहां भी आने लगेंगे.’’

यह सुन कर राधिका मैडम का पारा चढ़ गया. उन्हें लगा कि यह नयानया मास्टर बना भील उन्हें निकम्मा कह रहा है. उन्होंने दबाव बनाने के लिए कहा, ‘‘तुम मेरे पति को तो जानते ही होगे. सुगम भारती नाम है उन का. धर्म प्रसार का काम करते हैं. राष्ट्रवादी सोच है. बहुत दबदबा है उन का…’’

अचानक राधिका मैडम को लगा कि श्यामलाल का ध्यान उन की देह पर है. उन्होंने ब्लाउज से बाहर झांकती ब्रा की लाल स्ट्रिप को ब्लाउज में दबाने की कोशिश की. श्यामलाल के चेहरे पर उलझन थी. वह उठ गया और पढ़ने आए 4-5 छात्रों से बातें करने लगा.

मिड डे मील बन कर आ गया. दाल में पानी ही पानी था. रोटियां कच्ची व कम थीं. राधिका मैडम ने 55 छात्रों की हाजिरी भरी थी. श्यामलाल कुछ कहना चाहता था कि राधिका बोलीं, ‘‘मैं तुम्हारा जौइनिंग लैटर नोडल सैंटर में देने जा रही हूं. यह लो स्कूल की चाबी.’’

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उन के जाने के बाद श्यामलाल ने गांव का चक्कर लगाया. घरघर जा कर बच्चों को पढ़ने के लिए भेजने को कहा. मांबाप के मुंह से राधिका मैडम की बुराई सुन कर उसे लगा कि बहुत मेहनत कर के ही स्कूल जमाया जा सकता है.

दूसरे दिन राधिका मैडम रोजाना की तुलना में और देर से स्कूल पहुंचीं. साढ़े 8 हो गए थे. स्कूल खुला था. तकरीबन 30 बच्चे क्लास में बैठे थे. श्यामलाल कविताएं बुलवा रहा था.

राधिका मैडम दूसरे कमरे में जा कर ‘धम्म’ से कुरसी पर बैठ गईं. उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था. श्यामलाल को बुला कर वे बोलीं, ‘‘तुम यह क्या कर रहे हो? क्यों पढ़ा रहे हो? इन सभी के लिए मिड डे मील बनाना होगा. काफी खर्चा होगा बेकार में.’’

श्यामलाल ने कहा, ‘‘मैडम, सरकार दे रही है न गेहूंचावल पकाने का खर्च.’’

राधिका का गुस्सा बढ़ गया. उन्होंने साड़ी के अंदर हाथ डाला और ब्लाउज के बटन से खेलने लगीं. श्यामलाल का ध्यान भी उसी तरफ चला गया. हलके सफेद रंग के ब्लाउज में से काले रंग की ब्रा दिख रही थी.

राधिका मैडम के बड़ेबड़े उभार… श्यामलाल के होंठों पर जीभ घूम गई. राधिका ने पल्लू पीठ पीछे से घुमा कर छाती को ढक दिया. श्यामलाल घबरा कर दूसरे कमरे में चला गया और बच्चों को पढ़ाने लगा.

अगले दिन ही श्यामलाल की मेहनत रंग लाने लगी. 50 छात्र पढ़ने आए थे. कुछ ने नई कमीज पहनी थी, कुछ के पास नई स्लेट थी. राधिका मैडम आज और देर से आईं. मिड डे मील की सब्जीमसाले ले कर पति के साथ मोटरसाइकिल पर आई थीं. श्यामलाल का परिचय हुआ. बातचीत का सिलसिला चला.

सुगम भारती बोले, ‘‘तुम ने अच्छा किया. स्कूल जमा दिया. अब इन बच्चों को श्लोक, मंत्र, सरस्वती की प्रार्थना, राष्ट्रगीत सुनाओ. पर ध्यान रखना भाई, गांव में चल रहे अपने एकल स्कूल पर असर न हो. वे भी हमारी संस्कृति का जागरण कर रहे हैं, वरना ईसाई मशीनरी…’’

श्यामलाल ने टोक दिया, ‘‘ईसाई और हिंदू की खींचतान में हमारी आदिवासी संस्कृति उलझ गई है, खत्म होने लगा है हमारा आदि धर्म…’’

सुगम भारती ने टोका, ‘‘भाई श्यामलाल, हमतुम अलग नहीं हैं. हमारे पूर्वज एक ही हैं.’’

बहस हद पर थी. श्यामलाल बोला, ‘‘आर्य हैं आप. हम मूल निवासी, राक्षस, असुर, दैत्य…’’

सुगम भारती ने उसे बीच में ही टोक दिया, ‘‘तुम ईसाई तो नहीं हो? कौन सी किताबें, पत्रिकाएं पढ़ते हो जो ऐसी गैरों सी बातें करते हो? अभी तो मुझे कुछ काम है, फिर कभी बात करेंगे,’’ कह कर वे चल दिए.

श्यामलाल क्लास में गया. वहां वह पढ़ाता रहा. वक्त कहां निकल गया, पता ही नहीं चला. राधिका मैडम समय से ही घर के लिए निकल गईं.

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श्यामलाल बस में बैठ गया. उस का विचार मंथन चल रहा था, ‘डाक्टर अंबेडकर ने संविधान का प्रारूप बनाया, इसीलिए देश में समानता की धारा चल रही है, वरना ये लोग तो ‘मनुस्मृति’ ही लागू करते. हमारी अशिक्षा, पिछड़ेपन, गरीबी की वजह पूर्व जन्म के कर्म बताते हैं. हमारा अन्न नहीं लेते, पर रुपया लपक लेते हैं. हम पर अपने कर्मकांड लाद रहे हैं. हम इन के यजमान हैं. गौतम बुद्ध ने सही कहा है कि पहले अनुभव, फिर विश्वास, आस्था व श्रद्धा. जानो, न कि मानो.

‘ईश्वर है तो पहले पता तो लगे कि कहां है? स्वर्गनरक कहां है? ये कहते हैं कि पहले मानो, फिर जानो. पहले आस्था, श्रद्धा, फिर अनुभव. क्यों भाई, क्यों? ईसाई मशीनरी ने शिक्षा, स्वास्थ्य के माध्यम से लोगों का दिल जीता, धर्म बदला. तभी तो ये लोग हमें पढ़ाने आए हैं. एकल स्कूल चला रहे हैं, वरना इन्हें कहां फुरसत थी हमारे शोषण से.’

श्यामलाल घर पहुंच गया. खाट पर डाक पड़ी थी. डाकिया महीने में 1-2 बार ही आता था. वह सारी डाक एकसाथ दे जाता था.

अगले दिन श्यामलाल स्कूल पहुंचा. स्कूल खुला देख कर वह हैरान हुआ. राधिका मैडम स्कूल में आ गई थीं. श्यामलाल ने नमस्ते कहा और वह क्लास में चला गया. राधिका का देर से स्कूल आना, जल्दी चले जाना, कभीकभी नहीं आ कर दूसरे दिन दस्तखत करना चलता रहा. श्यामलाल पढ़ाता रहता, अपना काम करता रहता. कभीकभी दोनों एकसाथ बैठते तो बातें चलतीं, मजाक होता, उंगलियों का छूना भी हो जाता.

एक दिन श्यामलाल मोटरसाइकिल ले कर स्कूल आया. उसे शहर जाना था, पर छुट्टी के बाद राधिका मैडम उस की मोटरसाइकिल पर बैठ गईं. श्यामलाल को मजबूरन उन के घर जाना पड़ा. सुगम भारती घर पर ही थे. बातचीत चली, तो बहस में बदल गई.

‘‘हमारे आध्यात्मिक मूल्य एक हैं. यह भूभाग पवित्र है, इसीलिए हम एक राष्ट्र हैं. हमारा धर्म हमें आपस में जोड़ता है. हमें अपनी भारत माता की तनमनधन से सेवा करनी चाहिए,’’ सुगम भारती लगातार बोलते रहे.

श्यामलाल बहस नहीं करना चाहता था. बहस कटुता बढ़ाती है. मतभेद को मनभेद में बदल देती है, फिर भी जब हद हो गई, तो वह बोल ही गया, ‘‘आप के शास्त्र में यह क्यों लिखा है कि पूजिए विप्र शील गुण हीना, शुद्र न गुनगान, ज्ञान प्रवीणा?’’

इतने में सुगम भारती के दफ्तर का चपरासी रजिस्टर ले कर आ गया. उन्होंने 15-20 दिनों के दस्तखत एकसाथ किए. श्यामलाल की आंखों में उठे सवाल को जान कर वे बोले, ‘‘क्या करूं? राष्ट्र सेवा में लगा रहता हूं, दफ्तर जाने का वक्त ही नहीं मिलता. देश पहले है, दफ्तर तो चलता रहेगा.’’

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राधिका चाय ले कर आ गईं. बहस रुक गई. घरपरिवार की बातें चल पड़ीं. एक दिन स्कूल में हाथ की रेखाएं देखते हुए राधिका ने अपना ज्योतिष ज्ञान बताया, ‘‘तुम्हारे अनेक लड़कियों से संबंध रहेंगे.’’

श्यामलाल मुसकरा दिया. राधिका ने कहा, ‘‘भारतीजी बाहर गए हैं…’’ और वे भी मुसकरा दीं.

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