Hindi Stories Online : बूआ मुंह से तो न कहतीं लेकिन उन की मंशा यही थी कि लड़कों की शादी में मोटा दहेज वसूलें. लेकिन कहते हैं न ‘लालच बुरी बला.’

रिश्ते में मेरी बूआ की बेटी है जानकी. वह खूब बातूनी है और खूब कंजूस भी. बस, बातों ही में सब की मेहमानदारी कर डालती है और किसी को यह महसूस ही नहीं होने देती कि बूआ और उस ने किसी को पानी तक के लिए नहीं पूछा. कंजूस तो हमारे तीनों कजिन भी हैं.

उन की जानकी मुझे बहन की तरह मानती है. भूलेभटके ही मैं उन के घर जाती हूं तो सभी खुशी से पागल हो जाते हैं. वे समझ नहीं पाते कि मेरी खातिरदारी वे कैसे करें. बातों ही बातों में खानेपीने की चीजों का अंबार लगा देते हैं, लेकिन सामने एक भी डिश नहीं आती. जब मैं उन के घर से वापस आती हूं तो मेरे पेट में भूखे चूहों की इतनी उछलकूद हो रही होती है कि मैं समझ नहीं पाती, घर कैसे जल्दी पहुंचूं और इन्हें थोड़ा चारा डाल कर रास्ते में कैसे शांत करूं.

वैसे तो थोड़ाबहुत मैं खा कर ही जाती हूं, क्योंकि मुझे मालूम होता है कि वहां से खाली पेट आना पड़ेगा. लेकिन जानकी की बातों के जवाब देतेदेते मेरे पेट को भूख महसूस होने लगती है. जब मैं उठने लगती हूं तो जानकी मेरा हाथ पकड़ कर तपाक से कह उठती, ‘नहींनहीं, इतनी जल्दी चली जाएगी, वह भी सुच्चे मुंह, अभी तो बातों से ही मेरा मन नहीं भरा. ठहर, मैं कुछ खाने को मंगवाती हूं.’ फिर वह अपने तीनों भाइयों को आवाज लगा कर अपने पास बुलाएगी और डांटने लगेगी, ‘क्यों रे, बेवकूफो, तुम्हें जरा भी तमीज नहीं है. शादी लायक हो गए लेकिन अक्ल नहीं आई. देख रहे हो, तुम्हारी कजिन 3 घंटे से आई बैठी है और तुम लोग हो कि उस के लिए अभी तक चायनाश्ता ही नहीं मंगाया?’

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