‘‘अरे यार, लगता है यह सरस्वती टंकी का पूरा पानी खाली कर के ही बाहर निकलेगी.’’
‘‘क्यों परेशान हो रही हो रूपा. तुझे तो पता ही है, यह तो इस का रोज का काम है,’’ मेरी हालत पर तरस खाने की जगह ज्योत्सना मंदमंद मुसकरा रही थी.
‘‘हांहां क्यों नहीं, खुश हो ले तू. खुश होने का तु झे पूरा अधिकार है, आज मु झ से पहले नहा कर तूने बाजी जो मार ली है,’’ बाथरूम के अंदर से लगातार आने वाली सरस्वती के गाने की आवाज से मैं पहले ही चिढ़ी हुई थी ज्योत्सना की बातों ने मु झे और भी चिढ़ा दिया.
लखनऊ के गर्ल्स पीजी होस्टल में अपने कमरे के अटैच्ड बाथरूम के बाहर नहाने जाने के लिए काफी देर से इंतजार कर रही थी. गरमी और पसीने से मेरा बुरा हाल हुआ जा रहा था.
‘‘उफ, कितनी गरमी है, ऊपर से बिजली भी नहीं है. गरमी और पसीने से परेशान मैं खिड़की से लगे बिस्तर पर आ बैठी.
‘‘सरस्वती की बच्ची बाहर आ कर गाने का जितना भी रियाज करना है कर लेना. तुम्हारे ‘राग दीपक’ ने पूरे शहर का तापमान बढ़ा दिया है, सच में कितनी गरमी पड़ रही है यार, अरी ओ तानसेन की 5वीं औलाद निकलती है या नहीं,’’ गुस्से से मैं ने शैंपू का बोतल दरवाजे पर चला फेंकी.
‘‘शैंपू के लिए थैंक यू... और हां, तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, तानसेन की बेटी सरस्वती ने राग दीपक नहीं ‘मेघ मल्हार’ गाया था. तौलिए में लिपटी हुई सरस्वती ने झटके से दरवाजा खोला और मेरे द्वारा फेंकी गई शैंपू की बोतल कैच कर के वापस बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया.