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भारतीय अंतरिक्ष संस्थान के वैज्ञानिकों को पता था कि चंद्रमा के भूविज्ञान की पूरी तसवीर बनाने के लिए विभिन्न चंद्र लैंडिंग साइटों का चयन करना महत्वपूर्ण है. दक्षिणी ध्रुव में विशेष रूप से उन की दिलचस्पी इसीलिए थी कि यहीं पर चंद्रयान-2 मिशन के पूर्ववर्ती, चंद्रयान -1 के और्बिटर पर लगे उपकरणों ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास हमेशा छायादार बने संघात गड्ढों में दबे पानी की बर्फ के स्लैब का पता लगाया था. चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर जहां उतरने वाला था, वहां हुडप्रभा और त्रिजोनी नामक दो संघात गड्ढे थे. चंद्रमा की सतह पर लाखों संघात गड्ढे थे, जो धरती से भी दिखाई देते थे. मंजिशी और राजेश ने अपने चंद्र मौड्यूल को हुडप्रभा और त्रिजोनी से तकरीबन एक किलोमीटर की दूरी पर, ‘शक्तिपीठ’ नामक जगह पर उतारा.

राजेश को भी नहीं बताया गया था कि चंद्र मौड्यूल कहां उतरने वाला था. सिर्फ मंजिशी को ही इस बात की जानकारी थी कि चंद्रमा की सतह पर चंद्र मौड्यूल को कहां उतारा जाएगा.

चंद्र मौड्यूल के चंद्रमा पर बराबर ढंग से स्थापित हो जाने पर सब से पहले मंजिशी ने उस में से बाहर निकल कर चंद्रमा की सतह पर कदम रखा. मंजिशी के पीछेपीछे राजेश ने चंद्र मौड्यूल से निकल कर चंद्रमा को छुआ.

राजेश ने आश्चर्य से चंद्रमा की इस कुछकुछ अंतराल पर गड्ढों से भरी सतह को देखा और मंजिशी से अनायास ही पूछा, “यह जगह क्यों चुनी है हम ने उतरने के लिए?”

मंजिशी ने अपने स्पेस हेलमेट के भीतर से ही जवाब दिया, “यहीं से एक किलोमीटर की दूरी पर, विक्रम लैंडर, हुडप्रभा और त्रिजोनी संघात गड्ढों के नजदीक उतरने वाला था. लेकिन, मंजिशी ने अपने पैरों के नीचे की जमीन की तरफ इशारा कर के कहा, “यहां पर आ गिरा. इसे ‘शक्तिपीठ’ कहते हैं. यहां पर विक्रम लैंडर के अनेकानेक टुकड़े गिरे पड़े हैं.”

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