निशि पत्रिका के पेज पलटे जा रही थी, परंतु कनखियों से बेटी कुहू को देखे जा रही थीं. आधे घंटे से कुहू अपने फोन पर कुछ कर रही थी. देखतेदेखते निशि अपना धैर्य खो बैठीं तो डांटते हुए बोलीं, ‘‘कुहू, क्यों अपना भविष्य अंधकारमय कर रही हो? हर समय फोन से खेलती रहती हो… आखिर तुम्हारी पढ़ाईलिखाई का क्या होगा? यदि नंबर अच्छे नहीं आए तो किसी अच्छे कालेज में दाखिला नहीं मिलेगा,’’ और उन्होंने उस के हाथ से फोन छीन लिया.

‘‘मम्मा, देखो भी मैं ने फेसबुक पर अपनी सैल्फी पोस्ट की थी. 100 लाइक्स थोड़ी सी देर में ही मिल गए और कौमैंट तो देखिए, मजा आ गया. कोई हौट, लिख रहा है, तो कोई सैक्सी… यह तो कमाल हो गया,’’ कह कुहू प्यार से मां से लिपट गई.

‘‘कुहू छोड़ो भी मुझे… तुम तो पागल कर के छोड़ोगी… फेसबुक पर अपना फोटो क्यों डाला?’’

‘‘तो क्या हुआ? मेरी सारी फ्रैंड्स डालती हैं, तो मेरा भी मन हो आया.’’

‘‘अच्छा, अब बहुत हो गया. उसे तुरंत डिलीट कर दो.’’

‘‘मम्मा, आप पहले कमैंट्स तो पढ़ो, मजा आ जाएगा.’’

‘‘उफ, तुम्हें कब अक्ल आएगी,’’ निशि सिर पर हाथ रख कर बैठ गईं.

तभी निधि की सास सुषमाजी कमरे में घुसती हुई बोलीं, ‘‘क्या हुआ निशि, क्यों बेटी को डांट रही हो? क्या किया इस ने?’’

‘‘मम्मीजी, आप इसे समझाती क्यों नहीं. इस ने फेसबुक पर अपना फोटो डाला है. 18 साल की हो चुकी है, लेकिन बातें हर समय बच्चों वाली करती है… आजकल समय बहुत खराब है.’’

‘‘निशि, मैं तुम्हें बारबार समझाती हूं… पर तुम कुछ ज्यादा ही इसे ले कर परेशान रहती हो.’’

‘‘क्या करूं मम्मीजी, टीवी, पत्रपत्रिकाएं सभी लड़कियों के साथ होने वाले अत्याचारों से भरे होते हैं. अब तो हद हो गई है… रास्ते में चलती लड़कियों को कार वाले खींच कर ले जाते हैं… अपनी दिल्ली अब लड़कियों के लिए कतई सुरक्षित नहीं रह गई है. जब से दामिनी वाला हादसा हुआ है मेरा तो दिल हर समय डर से कांपता रहता है.

‘‘कल शाम को मेरी सहेली पूजा आई थी. कह रही थी कि उस का मैनेजर उसे रोज शाम को काम के बहाने रोक लेता था और फिर कभी कौफी, तो कभी डिनर के लिए चलने को कहता. फिर एक दिन तो उस ने उस का हाथ भी पकड़ लिया. बस उसी दिन से इस्तीफा दे कर वह घर बैठ गई. अब दूसरी नौकरी ढूंढ़ रही है.

‘‘मम्मीजी, हम आगे बढ़ रहे हैं या पीछे होते जा रहे हैं… 2-3 दिन पहले मुंबई से ईशा का फोन आया था कि जूनियर लोगों की प्रोमोशन होती जा रही है, परंतु उस की प्रोमोशन रुकी हुई है, क्योंकि वह लड़की है… लड़के अपने बौस की विदेशी दारू से सेवा करते हैं… लड़की हो तो उन की डिमांड को समझो… मम्मीजी, मुझे अपनी कुहू को देख कर बहुत डर लगता है.’’

‘‘निशि, जो डरा सो मरा. इसलिए बहादुरी से जीवन जीओ… सब की लड़कियां बड़ी होती हैं और लड़के भी बड़े होते हैं. उसे अपने पास बैठा कर अच्छेबुरे की पहचान करना सिखाओ.

‘‘यदि उस ने फेसबुक पर फोटो पोस्ट कर दिया तो इतना परेशान होने की जरूरत नहीं है. आजकल सभी बच्चे ये सब करते रहते हैं.’’

छोटे शहर और साधारण परिवार से संबंध रखने वाली निशि अपनी सुंदरता के कारण नेताजी के लड़के साथ ब्याह कर दिल्ली जैसे महानगर में आ गई थीं. नेताजी कपड़ों की तरह पार्टियां बदलते रहते और उन का बेटा रंगीनमिजाज नीरज सुरा और साकी दोनों ही बदलता रहता. इन सब कारणों से वह अपनी बेटी के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित रहती थीं.

‘‘मम्मीजी, कुहू कुछ समझने को ही तैयार नहीं… अपने कमरे में शीशे के सामने मेकअप करेगी, म्यूजिक चैनल पर डांस देखदेख कर वैसे ही डांस करती है.’’

‘‘निशि, तुम समझदार बनो… यह तो उस की उम्र है. इस समय मस्ती नहीं करेगी तो कब करेगी? तुम अपना भूल गई… तुम भी अपनी हमउम्र सहेलियों के साथ फिल्मी पत्रिकाएं और फैशन की बातें छिपछिप कर करती रही होंगी.’’

‘‘मम्मीजी, आप सही कह रही हैं, मैं भी एक बार स्कूल कट कर पिक्चर देखने गई थी…’’

‘‘नीरज कह रहे हैं कि यह को-एड कालेज में ही पढ़ेगी. आप क्यों नहीं मना करती हैं? यह इतनी सुंदर है और साथ ही भोली और नाजुक भी है. कैसे लड़कों की निगाहों को झेल पाएगी?’’

‘‘माई डियर मम्मा, लो गरमगरम चाय पीओ. मैं ने बनाई है. आप खुश रहा करो… तब आप बहुत प्यारी लगती हो. आप की बेटी किसी भी लफड़े में नहीं पड़ेगी, इतना तो आप पक्का समझो.’’ कह कुहू अंदर चली गई.

‘‘निशि, मैं तुम्हारे दर्द को समझ सकती हूं कि तुम नीरज के रोजरोज के नएनए स्कैंडल से परेशान रहती हो, परंतु बेटी सब से अच्छा उपाय है कि तुम अपनी बेटी पर विश्वास करो. मैं ने भी तुम्हारे पापाजी की राजनीति में रहने के कारण बड़ी विषम परिस्थितियों को झेला है.’’

तभी निशि की बचपन की सहेली स्नेहा आ गई. बोली, ‘‘क्या बात है, चाय पर सासबहू में क्या चर्चा हो रही है?’’

सुषमाजी उठती हुई बोलीं, ‘‘मेरी तो मीटिंग है, इसलिए मैं चलती हूं… अपनी सहेली को समझा कर जाना.’’

‘‘कुहू, स्नेहा के लिए 1 कप चाय बना दो.’’

‘‘नो मम्मा. मेरा आज का चाय बनाने का कोटा फिनिश हो गया… अब मैं स्नेहा आंटी से बातें करूंगी.’’

स्नेहा एक कंपनी में मार्केटिंग हैड है, इसलिए निशि हमेशा उसे अपना आदर्श मानती हैं और अपने दिल का बोझ उस के सामने हलका कर लिया करती हैं.

स्नेहा ने कुहू को प्यार से गले लगाते हुए कहा, ‘‘माई स्वीटी, लुकिंग वैरी नाइस.’’

‘‘थैंक्यू आंटी. मम्मा ने तो मुझे परेशान कर रखा है.’’

‘‘क्या हुआ? निशि बड़ी परेशान दिख रही हो?’’

‘‘कुछ नहीं… यह बड़ी हो रही है… इसे वही समझाने की कोशिश करती रहती हूं, पर इस ने तो मानो न समझने का प्रण कर रखा है.’’

‘‘दिन भर टीवी पर रेप की खबरें देखदेख कर जी दहल जाता है. जराजरा सी बात पर मुंह पर ऐसिड फेंक देते हैं.’’

‘‘निशि, सड़क पर ऐक्सीडैंट हो जाते हैं, यह सोच कर न तो गाडि़यां चलनी बंद होती हैं और न ही इनसानों का चलना. हर समय परेशान रहने से समस्या का समाधान नहीं हो सकता… कुहू को अपनी सुरक्षा के लिए जूडोकराटे क्लास जौइन कराओ.’’

‘‘आंटी, मम्मा तो चाहती हैं कि मैं रातदिन किताबों के सामने से न हटूं… बताइए क्या यह संभव है? बालकनी में खड़ी हो कर बाल सुलझाने लगूं तो लंबा लैक्चर दे डालेंगी. यदि किसी दिन ट्यूशन से आने में 5 मिनट की भी देरी हो जाए तो हंगामा कर देंगी… आंटी, मेरी सारी फ्रैंड्स के बौयफ्रैंड हैं. सब साथ मूवी देखने जाते हैं, कैफे जाते हैं… खूब मस्ती करते हैं. लेकिन मैं कहीं नहीं जा सकती… सब मेरा मजाक उड़ाते हैं कि मम्माज डौटर.’’

निशि किसी काम से अंदर गई हुई थीं.

‘‘आंटी, मुझे तो खुद ही लड़कों से दोस्ती ज्यादा पसंद नहीं है, लेकिन हर समय टोकाटाकी से मैं परेशान हो जाती हूं,’’ कुहू की आंखें भर आई थीं.

तभी निशि कमरे में आ गईं. वे कुहू को डांटते हुए बोलीं, ‘‘तुम्हारी शिकायतें पूरी हो गई हों तो जाओ… तुरंत पढ़ने बैठ जाओ.’’

‘‘मम्मा, प्लीज ठहरिए. मुझे आंटी से बात कर लेने दीजिए. मैं 15 मिनट बाद जा कर पढ़ने बैठ जाऊंगी.’’

स्नेहा प्यार से कुहू के सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘‘कुहू, अपने कालेज फ्रैंड़स के बारे में बताओ?’’

कुहू ने चुपके से निशि की ओर इशारा किया तो स्नेहा बोलीं, ‘‘निशि चाय पीने का मन है… चाय बना लाओ.’’

मजबूरन निशि को वहां से जाना पड़ा.

निशि के जाते ही कुहू बोली, ‘‘आंटी, मम्मा मुझ पर शक करती हैं… मेरे फोन के मैसेज छिपछिप कर चैक करती हैं… मेरा लैपटौप खंगालती रहती हैं.’’

‘‘यह तो गलत बात है. अपनी बेटी पर शक नहीं करना चाहिए.’’

‘‘आंटी, एक मजे की बात बताऊं? मैं ने अपना फोटो पोस्ट किया तो मुझे 50 फ्रैंड रिक्वैस्ट आईं… मैं ने भी मस्ती के लिए एक को क्लिक कर चैटिंग करने लगी… उस ने लिखा था कि तुम बहुत सुंदर हो… मुझ से दोस्ती करोगी? मैं ने जवाब में लिखा कि मैं तो बहुत भद्दीमोटी और काली हूं… आई एम टोटली अगली गर्ल… इसलिए मेरा कोई बौयफ्रैंड नहीं है. इस पर उस ने लिखा कि फिर भी मैं तुम से दोस्ती करूंगा, क्योंकि तुम लड़की तो हो ही… मस्ती के लिए लड़की चाहिए… गोरीकाली कोई भी चलेगी… बताओ कल शाम 5 बजे कहां मिलोगी?

‘‘आंटी, मुझे बहुत गुस्सा आया. अत: मैं ने लिख दिया कि मस्ती के लिए गंदे नाले में डूब मरो.

‘‘आंटी, मैं मम्मा से कहती हूं, पुरातनपंथी बातें छोड़ कर मेरी तरह मौडर्न बनो. मुझ से मेरी कालेज की बातें सुना करो, पर वे मुझे डांट देती हैं.’’

‘‘तुम्हारे पापा के स्कैंडल्स की वजह से वे परेशान रहती हैं.’’

‘‘हां, मैं समझती हूं… इसीलिए तो मैं उन्हें और भी हंसाना और खुश रखना चाहती हूं.’’

छोटी सी लड़की के दिमाग में इतना कुछ भरा हुआ है, सोच कर स्नेहा को बहुत अच्छा लग रहा था.

‘‘आंटी, परसों मेरा बर्थडे था… मम्मीपापा रात को डिनर के लिए बाहर ले जा रहे थे… मैं ने जींस के साथ शौर्ट टौप पहना… बस मम्मा ने डांटना शुरू कर दिया कि टौप बहुत छोटा है… तेरा पेट दिखाई दे रहा है. फिर पापा ही बोले कि ठीक है निशि, बच्ची है हर बात में टोका न करो.’’

निशि ने कुहू की बात सुन ली थी. आगे क्यों नहीं बताया कि मौल में किसी लड़के ने कुहनी मारी… फिर पापा से लड़ाई होने लगी… वह तो मौल के गार्ड के बीचबचाव से मामला शांत हो गया… मेरा तो मूड ही खराब हो गया था.

‘‘आप मम्मा को समझाइए कि अब मैं बड़ी हो गई हूं. चौकलेट मुझे पसंद है, इसलिए खाती हूं. जैसे ही मैं ड्रैसअप होती हूं, मुझे देखते ही डांटना शुरू कर देती हैं कि फिर तुम ने इस टौप को पहन लिया… कानों में ये क्या लटका लिए… किस के साथ जा रही हो? कहां जा रही हो? कब आओगी…? मेरी सारी फ्रैंड्स मेरा मजाक उड़ाती हैं.

‘‘भैया सारे घर में तौलिया पहन कर घूमता रहेगा… कोई कुछ नहीं बोलेगा. सारी बंदिशें मेरे लिए ही. स्लीवलैस टौप नहीं पहनोगी, शौर्ट्स नहीं पहनोगी, लिपस्टिक क्यों लगा ली? किस का फोन था? किस का मैसेज था? किस के संग बैठ कर पढ़ोगी… जैसे उन के हजार प्रश्नों से मैं तंग हो चुकी हूं. प्लीज आंटी मम्मा को समझाइए.’’

निशि के कमरे में घुसते ही कुहू पल भर में वहां से उड़नछू हो गई थी पर आंखोंआंखों से स्नेहा से रिक्वैस्ट कर गई थी.

‘‘निशि तुम ने चाय बहुत अच्छी बनाई है… क्या बात है, तुम्हारे चेहरे पर परेशानी और चिंता झलक रही है?’’

‘‘स्नेहा, मैं कुहू के भविष्य को ले कर बहुत चिंतित हूं. नीरज को तो जानती ही हो, उन की अपनी दुनिया है, इसलिए हर पल मैं किसी अनिष्ट की आशंका से डरती रहती हूं.’’

‘‘ऐसा भी क्या है? अच्छीभली है तुम्हारी बेटी… पढ़ने में होशियार है… समझदार है… सुंदर है. तुम्हारे पास पैसा भी है. फिर किस बात का डर तुम्हें सताता रहता है?’’

‘‘मेरे घर का माहौल तो तुम जानती ही हो. पापाजी नेता हैं. सैकड़ों लोग आतेजाते रहते हैं… उन के कुछ दोस्त अकसर आते हैं, जिन्हें कुहू दादू कहती है… यह उन के पास बैठ कर बातें करती है, ठहाके लगाती है तो मेरा खून खौल उठता है… घर में पीनेपिलाने वाली पार्टियां होती रहती हैं… बापबेटा दोनों साथ बैठ कर पीते हैं. मैं अपने मन का डर आखिर किस से कहूं? अगले साल इसे अच्छे कालेज में दाखिला मिल जाए, तो होस्टल भेज दूंगी… मगर होस्टल का नाम सुनते ही मुझ से चिपक कर सिसकने लगती है.

‘‘जब टीवी या पेपर में रेप या ऐसिड अटैक की घटना सुनती हूं तो डर से कांपने लगती हूं. ऐसा मन करता है इसे अपने पल्लू में छिपा लूं. लेकिन ऐसा संभव नहीं है… इसे पढ़नालिखना है, भविष्य में आगे बढ़ना है, अपने पैरों पर खड़े होना है…’’

‘‘निशि, जब तुम ये सब समझती हो तो क्यों परेशान रहती हो?’’

‘‘जैसे ही मैं इसे डांटती हूं तो तुरंत मुझे जवाब देती है कि मम्मा आप बैकवर्ड हो… आप से अच्छी तो दादी हैं… वे मौडर्न हैं… आप मुझ से न जाने क्या चाहती हैं? ऐसा मन करता है कि एक दिन इस की पिटाई कर दूं.’’

एक ओर मासूम कुहू की बातें तो दूसरी ओर निशि के दिल का डर, सब कुछ मन में गड्डमड्ड होने लगा था. दोनों अपनीअपनी जगह सही थीं. फिर स्नेहा निशि का हाथ अपने हाथ में ले कर बोलीं, ‘‘निशि, मैं तुम्हारे डर को महसूस कर रही हूं… हर मां इस दौर से गुजरती है. मेरी भी बेटी बड़ी हो रही है. जब वह ड्राइवर के साथ गाड़ी में स्कूल जाती है, तो मुझे भी मन में बुरेबुरे खयाल आते हैं, लेकिन स्कूल भेजना बंद तो नहीं हो जाएगा? कुहू उम्र के ऐसे दौर में है जब सब कुछ इंद्रधनुष की तरह आकर्षक और सतरंगा दिखाई पड़ता है.

‘‘आजकल के बच्चे हम लोगों से ज्यादा होशियार और समझदार हैं… सब से पहली बात यह कि अपनी बेटी पर विश्वास करो. अपने मन से शक का कीड़ा निकाल फेंको.

‘‘तुम दिन भर घर में रहती हो. नीरज की अपनी दुनिया है. इन सब कारणों से तुम्हारे मन में नकारात्मक विचारों ने अपना घर बना लिया है… तुम्हें इस से उबरना पड़ेगा… तुम घर से बाहर निकलो. अनेक हौबी क्लासेज है… अपनी रुचि की क्लास जौइन कर लो… तुम्हें पहले घर सजाने का बड़ा शौक था… तुम इंटीरियर डिजाइनिंग का कोर्स जौइन करो. इस समय तुम खाली दिमाग शैतान का घर वाली कहावत को चरितार्थ कर रही हो.

‘‘जब तुम रोज घर से निकलोगी. 10-20 लोगों से मिलोगी, उन की समस्याओं और बातों को सुनोगी तो तुम्हें समझ में आएगा कि दुनिया उतनी बुरी भी नहीं है. अपने को व्यस्त रखोगी तो दिन भर कुहू के लिए होने वाली चिंता अपनेआप कम हो जाएगी.

‘‘तुम कुहू की सहेली बनने का प्रयास करो. वह 21वीं शताब्दी की लड़की है. वह अपने भविष्य के लिए पूरी तरह जागरूक है.

‘‘मेरी वह निशि कहां खो गई है, जो बड़ीबड़ी बहसों में सब को हरा कर प्रथम आती थी? यदि मेरी बात कुछ समझ में आई हो तो दोनों मांबेटी मिल कर फेसबुक के कौमैंट्स पर ठहाके लगा कर देखो, कितना मजा आता है. अच्छा निशि, बातों में समय का पता ही नहीं लगा… चलती हूं… किसी दिन मेरे घर आना.’’

पीछेपीछे कुहू भागती हुई आई… शायद वह हम दोनों की बातें सुन रही थी. उस की आंखों की मासूम चमक देख अच्छा लग रहा था. वह मेरा हाथ पकड़ कर मेरे कान में फुसफुसाई, ‘‘थैंक्स आंटी.’’

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