Social Story :  सुभाष अपनी पत्नी और दोनों बच्चों समेत अपने दोस्त साहिल के यहां ‘पाट लक’ डिनर पर जा रहा था, जहां उस के अन्य मित्र भी जुटने वाले थे.जब से अमेरिका आगमन हुआ था तभी से उस ने उन लोगों से संपर्क करना प्रारंभ कर दिया जिन्हें वह पहले से जानता था. इन में से कुछ सुभाष के स्कूल के साथी थे, कुछ कालेज के और कुछ कार्यस्थल के सहयोगी थे.

वक्त बीतने के साथ इन की आपसी घनिष्ठता बढ़ती गई बल्कि अब तो ये एकदूसरे की जिंदगी का हिस्सा थे. अपने देश से दूर रहने पर इन्हें एकदूसरे के करीब रहना अच्छा लगता था, आपस में भावनात्मक स्तर पर सहारा और किसी जरूरत या मुश्किल घड़ी में एकदूसरे का साथ मिलता था.

छुट्टी वाले दिन अकसर ये अपना समय साथ ही व्यतीत करते थे. मौसम अनुकूल हो तो इकट्ठे बाहर घूमने जाते थे या सारे मिल कर किसी एक के घर पर खानापीना करते यानी ‘पाट लक’ डिनर या लंच का आयोजन कर लिया करते थे. इस तरह आपस में मिल कर मौजमस्ती करते, बातें करते, गेम खेलते और हर बरतन में अपने किस्मत आजमाते थे, जो ‘पाट लक’ का शाब्दिक अर्थ है.

मगर यहां हरकोई जानता था कि कौन क्या लाने वाला है ताकि वे बिना किसी गड़बड़ी के स्वादिष्ठ भोजन का आनंद ले सकें और इन्हें खाने में किसी तरह का ‘लक’ आजमाना न पड़े. सभी को लजीज खाना खाने की चाहत होती. अकेले खाना बनाते, काम करते बोरियत हो जाती थी और इस तरह के ब्रेक का सभी को इंतजार रहता था, जब उन्हें एक ही व्यंजन पकाना होता पर अनेक प्रकार के व्यंजन खाने को मिलते.

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