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इधर, अफशां को काफी देर से बेबे की कोठरी में दरवाज़ा बंद कर के बैठे हुए देख कर रजिया की छोटी भाभी ने फ़ौरन अपनी सास के कान भरे और दरवाज़ा खुलवाने को कहा. फौजिया दनदनाती हुई आई और दरवाज़े पर लात मार कर रजिया से दरवाज़ा खोलने को कहा. तो झट से अपना फोन कुरते की जेब में डाल कर अफशां बेबे से शीरमाल की रैसिपी पूछने लगी और रजिया ने दरवाज़ा खोल दिया.

बीकानेर में अपने घर में बैठे किशनचंद मेघवाल ने पोते से पूछा कि उन की बीरी को भारत लाने   का प्रबंध कैसे किया जाएगा? संजय ने अपने दादू को हौसला देते हुए कहा कि वह जल्दी ही भारतीय विदेश मंत्रालय में इस बारे में पत्र लिखेगा और दादू को उन की बीरी से मिलवाने का प्रयत्न करेगा.

कुछ महीनों के प्रयास के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से बात कर के अमीरन उर्फ़ लक्ष्मी के भारत लौटने का प्रबंध करवा दिया और सरकारी हुक्म होने के कारण बेबे के बेटे उस के भारत जाने में कोई रुकावट नहीं डाल सके. मगर अपनी मां को धमकी ज़रूर दे दी कि अगर वह हिंदुस्तान गई तो बेटे वापस उस को अपने घर में कभी नहीं आने देंगे. अपने देश जाने की ख़ुशी में बेबे ने बेटे की बात पर कोई ध्यान ही नहीं दिया और अपने टीन के बक्से में सफ़र पर ले जाने का सामान रखने लगी.

नियत दिन पर रजिया अपनी बेबे को ले कर अपना वादा पूरा करने के लिए चल पड़ी. उस के अब्बू ने तो साथ चलने से इनकार कर दिया, इसलिए अफशां ने अपने अब्बा से गुजारिश की तो अजीबुर्रहमान अमीरन और रजिया को ले कर कराची रेलवे स्टेशन पंहुच  गए. वहां पंहुचने पर पता चला कि दूतावास की तरफ से भारत जाने का प्रबंध केवल लक्ष्मी के लिए  किया गया है, इसलिए और कोई उस के साथ नहीं जा सकता है. रजिया ने बेबे की उम्र का हवाला देते हुए साथ जाने की इजाज़त मांगी लेकिन पाकिस्तान सरकार ने अनुमति नहीं दी. निराश रजिया ने भीगी आंखों से अपनी बेबे को रुखसत किया और अफशां के अब्बा के साथ अपने गांव वापस आ गई. अफशां द्वारा बेबे के आने की सूचना  मिलने पर संजय व उस के पापा अमृतसर के लिए रवाना हो गए.

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