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28 साल का अध्यापन अनुभव प्राचार्य की बारबार नुक्ताचीनी के कारण धीरेधीरे अपना विश्वास खोने लगा. प्राचार्य वक्त- बे-वक्त उसे कक्षा से बुला कर ऐडमिशन के सिलसिले में नित नए सवाल पूछ कर, कभी टीचिंग को ले कर बच्चों के सामने अपमानित करने का मौका ढूंढ़ने लगे. जरी पलपल आहत होती रही पर अपने आत्मविश्वास को डगमगाने नहीं दिया.

प्राचार्य और उन के मुंहलगे चमचे एक तरफ तो शिक्षा को व्यापार बनाने पर तुले हुए थे दूसरी तरफ कर्म के प्रति कटिबद्ध और समर्पित जरी भीड़ में भी एकदम तन्हा रह गई थी.

‘तुम प्राचार्य की कंप्लेन क्यों नहीं करतीं असिस्टैंट कमिश्नर से?’ सहेली, दिल्ली की उपप्राचार्या ने फोन पर सलाह दी थी.

‘मेरे रिटायरमैंट को 2 साल रह गए हैं. मेरी कंप्लेन पर इन्क्वायरी होगी. ऐसे में हो सकता है प्राचार्य कोई नया झूठा केस बना दें क्योंकि वे मालिक हैं स्कूल के, गवाह भी उन्हीं के, वकील भी उन्हीं के. नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनेगा? केस के चलते मेरे फंड के पैसे रोक दिए जाएंगे. मेरी पैंशन भी लागू नहीं होगी. नैनी, एक नौकरी ही तो है मेरा सहारा. पैसे न होंगे तो बच्चों को कैसे पढ़ा सकूंगी? उन का भविष्य अंधेरे से घिर जाएगा. इसलिए चुपचाप सहती रही...’ बोलते हुए गला

भर्रा गया जरी का.

‘लेकिन नैना, उस दिन तो हद हो गई. जब चपरासी को भेज कर शाम 6 बजे मुझे अपने चैंबर में बुलवाया प्राचार्य ने,’ जरी ने हिचकियों के बीच अपने पर किए गए जुल्म की कहानी का एक और पृष्ठ खोला.

‘गुड ईवनिंग सर.’

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