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कहते हैं कि कच्ची उम्र कच्ची मिट्टी के समान होती है, उसे जो भी आकार मिल जाए उस में ही ढलने लगती है. मातापिता कुम्हार के समान होते हैं उसे सही रूप में ढालने वाले. मनाली का मन किस ओर भाग रहा है इस बात की चिंता से दूर उस के मातापिता मंदिरों में दर्शन का कार्यक्रम बना व आएदिन घर में पूजापाठ रखवा कर व्यस्त रहते. इस के अतिरिक्त उन की नजरों में संतान पर किशोर अवस्था में अंकुश लगाना ही उन को सही दिशा दिखाना था.

मनाली की मां रोजरोज सत्संग में भाग ले कर जीवन दर्शन समझने का प्रयास तो करतीं, लेकिन इस बात को समझने का प्रयास उन्होंने कभी नहीं किया कि नाजुक उम्र के इस दौर में मनाली के मनमस्तिष्क में अनेक जिज्ञासाएं जन्म ले रही हैं. स्त्रीपुरुष संबंधों के विषय में जानने की उस की दबीछिपी उत्सुकता कौतुहल जगाने के साथ ही उस की कामभावना को भड़का सकती है और ऐसे प्रश्नों के उत्तर पाने की उत्कंठा उसे अनुचित राह का राही भी बना सकती है.

मनाली प्रतिदिन सायंकाल छत पर जा गमलों में पानी देती थी. उस दिन साथ वाले घर की छत पर बने कमरे से एक लड़के को निकलते देख मनाली को उस के विषय में जानने की उत्सुकता हुई. जानबूझ कर वह ऐसे स्थान पर खड़ी हो गई जहां से लड़के का कमरा स्पष्ट दिखाई दे रहा था. अपनी दृष्टि वहां गड़ा वह कुछ समझने का प्रयास कर ही रही थी कि लड़का कमरे से बाहर आ गया. औपचारिकता से भरी मुसकराहट के बाद उस ने मनाली को अपना परिचय दिया. अभिषेक नाम था उस का. प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के साथ ही वह बीए कर रहा था. पड़ोस की छत पर बना कमरा उस ने किराए पर लिया था.

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