स्टोर पर लंबी लाइन लगी थी. अभी भी कोविड-19 का आतंक खत्म नहीं हुआ था. लोग भरभर कर खरीदारी कर रहे थे. चिलचिलाती धूप के कारण लोग पसीने से नहा रहे थे. ऐसी हालत में अगर कोई व्यक्ति किसी को अपने आगे खड़ा होने दे तो निश्चय ही आश्चर्य की बात थी. ऐसी शराफत की आशा करना इस युग में सपने की ही चीज है. किंतु उन 2 व्यक्तियों ने मुझे अपने आगे खड़े होने दिया. वे मेरे गांव के ही थे और जानते थे कि मुझे आमतौर पर जल्दी होती है.

इन दोनों के साथ मैं ने जाने कितनी रातें गुजारी हैं और ये जानते थे कि मेरी मालकिन जब चली जाती है तो फ्लैट पर बुला लेती है. और तो और कोई दूसरी लड़की को ले कर आए तो उसे भी आने देती हूं.

ऐसा नहीं कि इस युग में ये कालिदास के समान नारी को कोमलांगी समझ कर दया करते हैं. मैं ने तहेदिल से कामना की कि इन लफंगों का भला हो वरना आजकल तो मर्द बस में भी औरतों की सीट पर से उठने पर ताने देने लगे हैं कि जब औरतें मर्दों से कदम से कदम मिला कर चल रही हैं तथा हर मामले में बराबरी की होड़ कर रही हैं तो बस में खड़ी रहने से गुरेज क्यों? मैं ने आंख मार कर दोनों को धन्यवाद किया.

मैं अभी ठीक से खड़ी भी न हो पाई थी कि उन की खिलखिलाहट की आवाज सुनाई पड़ी. वे कितने मस्त और फक्कड़ हैं न गरमी की परवाह, न लंबी लाइन की. ऊपर से यह मुफ्त हंसी. उन के इसी फक्कड़पन की वजह से मैडम की सभी कविता की लाइनें याद दिला दीं.

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