लेखक -अमन दीप   

दहेज कहूं या सरेआम दी जाने वाली रिश्वत, बात तो एक ही है. चलिए, सारी लड़ाई ही खत्म कर देते हैं आज. आज सवाल भी खुद कर लेते हैं और उस का जवाब भी खुद दे देते हैं.

तर्क : शादी एक सम  झौता है.

जवाब : चलिए, मान लिया कि शादी एक ‘सम  झौता’ है. ‘डील’ कह लीजिए. सम  झौता करने में शर्म आए न आए, सम  झौता बोलने में शर्म जरूर आती है.

तो भैया, यह कौन सी डील हुई? डील में तो एक हाथ से लेना, एक हाथ से देना होता है. आप तो लड़की भी दे रहे और उस के साथ उस का ‘पेमैंट’ भी आप कर रहे. ऐसे कैसे चलेगा मायके वालो?

तर्क : लड़की पराया धन होती है.

जवाब : भई, जब लड़की है ही उन की, जिन को आप सौंप आए तो किस बात की ‘भुगतान राशि’ भर आए भाईसाहब?

लड़की है कि आप की पौलिसी? भरे जा रहे हैं बिना सोचेसम  झे?

अपना धन भी आप देंगे, पराए लोगों का धन भी आप देंगे और   झुकेंगे भी आप ही जीवनभर? खुद के लिए तालियां भी खुद ही बजा लेंगे न?

ये भी पढ़ें- Miss Universe 2021: हरनाज़ संधू से जानिए सक्सेस का सीक्रेट फार्मूला, पढ़ें लेटेस्ट इंटरव्यू

तर्क : हम यह सब सामान अपनी बेटी की सुखसुविधा के लिए दे रहे हैं.

जवाब : एक बात बताइए, जब सुखसुविधा का सामान आप को ही जुटा कर देना पड़ रहा है, तब या तो आप ने लड़का ही ऐसा देखा है जिस के पास खुद का कुछ सामान नहीं है तब तो ठीक है क्योंकि अपनी जिंदगी में लड़का पैदा कर के बस उन्होंने आप ही के ट्रक भर सामान भेजने का इंतजार किया है.

और अगर आप कहेंगे, लड़का तो संपन्न है, तो भैया, दोदो बार फ्रिज, डबलबैड, डाइनिंग सैट दे कर क्या करिएगा?

तर्क : देना पड़ता है, सामने वाले क्या सोचेंगे?

जवाब : एक काम करिए, सामने वाले की सोच की ही चिंता कर लीजिए आप. अपने बच्चे की खुशी, स्वाभिमान आदि सब बाद में. सब से पहले समाज और ससुराल.

बेहतर होगा, आप सामने वाली ‘पार्टी’ ही बदल लें. हो सकता है इस से अच्छी ‘डील’ आप को मिल जाए.

तर्क : लोग क्या कहेंगे?

जवाब : सब से बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग!

यह बताइए, जो कुछ सामग्री आप वहां डिस्प्ले में लगाने वाले हैं, उन में से कितने का पेमैंट आप के ‘लोग’ करने वाले हैं?

या उन में से कुछ भी उन के घर जाने वाला है? नहीं न. तो वे क्या सोचेंगे, इस से फर्क पड़ने की एक वजह बता दीजिए, बस.

ये भी पढ़ें- सरकारी मकान और औरतों का फैसला

सचाई यह है कि- दहेज न उपहार है न उपकार.

समय आ गया है, सच अपनाने की हिम्मत रखें.

सरासर गलत इस परंपरा को अपने रिवाज, समाज, लिहाज, मुहताज जैसे शब्दों की दीवार के पीछे छिपाना बंद कीजिए.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...