लेखक- नीरज कुमार मिश्रा
“तुम्हारे कष्टों का हल तब ही मिलेगा, जब तुम हमारे साथ भाग कर शहर चलोगी, वरना रोज़ रात की यही कहानी रहेगी तुम्हारे साथ,” कलुआ ने झुमकी को बांहों में लेते कहा.
“हां रे, मन तो हमारा भी यही कहता है कि अब हम वापस घर न जाएं लेकिन अगर न गए तो हमारा बाप हमारी मां को भूखा मार डालेगा,” झुमकी ने एक सर्द आह भरते हुए कहा.
“तेरा बाप, छी, मुझे तो घिन आती है तेरे बाप के नाम से. भला कोई बाप अपनी बीवी और बेटी से ऐसा काम भी करा सकता है? वह कम्बख्त मर जाए तो ही अच्छा है,” कलुआ ने गुस्से से कहा.
“ऐसा मत कहो. वह मेरा बाप है. मेरी मां उसी के नाम का सिंदूर लगाती है. और तुम क्या समझते हो, अगर अम्मा या मैं ने उस की बात मानने से इनकार किया तो, पहले तो वह गालीगलौच करता है और फिर कहता है कि हम लोग ने नीच जाति वाले घर में पैदा हो कर गलती कर दी है और अब ये सब करना तो हमारे करम में लिखा है. हम जब तक जिंदा रहेंगे तब तक हमें ये ही सब करना पड़ेगा,” सिसक उठी थी झुमकी.
झुमकी के बदन पर नोचनेखसोटने के निशान बने हुए थे. उन्हें प्यार से सहलाते हुए कलुआ बोला, “हां, हम तुम्हारी इतनी मदद कर सकते हैं कि तुम्हें यहां से खूब दूर अपने साथ शहर ले जाएं और वहां हम दोनों मजदूरी कर के अपना पेट पालें. तभी तुम इस नरक से मुक्ति पा सकती हो,” झुमकी को बांहों में समेट लिया था कलुआ ने.
झुमकी की उम्र 20 बरस थी. छरहरी काया, पतली नाक और चेहरे का रंग ऐसा जैसे कि तांबा और सोना आपस में घोल कर उस के चेहरे पर लगा दिया गया हो.
झुमकी के बाप को शराब की लत लग गई थी. गांव के पंडित और ठाकुर उसे शराब पिलाते और बदले में वह अपनी पत्नी को इन लोगों का बिस्तर गरम करने के लिए भेज देता. दिनभर दूसरों के खेत और अपने घर के चूल्हेचौके में जान खपाने के बाद जब झुमकी की मां ज़रा आराम करने जा रही होती, तभी नशे में धुत हो कर झुमकी का बाप आता और झुमकी की अम्मा को इन रसूखदार लोगों के यहां जाने को कहता. विरोध करने पर उन्हें उन की नीची जाति का हवाला देता और कहता कि ऐसा करना तो उन के समय में ही लिखा है. इसलिए उन्हें ये सब तो करना ही पड़ेगा. झुमकी की अम्मा समझ जाती कि उस की इज़्ज़त को तो पहले ही शराब पी कर बेच आया है, इसलिए मन मार कर उन लोगों के बिस्तर पर रौंदी जाने के लिए चली जाती.
झुमकी जैसे ही 13 साल की हुई, तो ठाकुर ने तुरंत ही अपनी गिद्ध दृष्टि उस पर जमा दी और झुमकी के बाप से मांग करी कि आज के बाद वह अपनी पत्नी को नहीं, बल्कि झुमकी को उस के पास भेजा करेगा और झुमकी को खुद ठाकुर के पास पहुंचा कर आया था झुमकी का बाप.
एक बार ऐसा हुआ, तो फिर तो मानो यह चलन हो गया. जब भी ठाकुरबाम्हन लोगों का मन होता, बुलवा भेजते झुमकी को और रातरातभर रौंदते उस के नाज़ुक जिस्म को.
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वह तो उस दिन झुमकी ने गांव की नदी में डूब कर आत्महत्या ही कर ली होती, अगर उस मल्लाह के लड़के कलुआ ने उसे सही समय पर बचाया न होता. कलुआ ने जान बचाने के बाद जब जरा डांट और जरा पुचकार से झुमकी से ऐसा करने का कारण पूछा तो कलुआ के प्यार के आगे उस की आंसू की धारा बह निकली और रोरो कर सब बता दिया कलुआ को.
“हम नीच जात के हैं, तो भला इस में हमारा का दोष है. और अगर वे लोग बाम्हन और ठाकुर हैं तो वे हमारे साथ जो चाहे, कर सकते हैं का?” झुमकी के इस सवाल का कोई जवाब नहीं था कलुआ के पास.
झुमकी को कलुआ से थोड़ा स्नेह मिला और इस स्नेह में उसे वासना के कीड़े नहीं दिखाई दिए. तो, मन ही मन वह उसे अपना सबकुछ मान बैठी थी. कलुआ भी तो झुमकी पर ही जान न्योछावर किए रहता था. पर उसे ऐसे झुमकी का बाह्मन और ठाकुर द्वारा शोषण किया जाना पसंद नहीं था और इसीलिए वह शहर जाने की ज़िद करता था पर हर बार झुमकी अपनी मां की दुहाई दे कर बात टाल जाती थी.
लेकिन, कल जब झुमकी दालान में बैठी अपने शरीर पर रात में आई खरोंचों पर कड़वा तेल का लेप लगा रही थी, तभी झुमकी की अम्मा आई और बोली, “बिटिया, हम तुम को जने हैं, इसलिए तुम्हारा दर्द सब से अच्छी तरह जानते हैं. और यह भी जानते हैं कि वह कलुआ तुम्हें पसंद करता है. तुम अगर यहां गांव में ही रह गई, तो इसी तरह पिसती रहोगी. शायद, नीच जाति में पैदा होना ही हमारा कुसूर बन गया है. पर अगर सच में ही जीना चाहती तो यहां से कहीं और भाग जाओ और हमारी चिंता मत करो. हम तो बस काट ही लेंगे अपना जीवन. पर तुम्हारे सामने अभी पूरा जीवन है, तू यहां रह गई तो ये मांस के भेड़िए तुझे रोज़ रात में नोचेंगे. इसलिए चली जा यहां से, चली जा…”
अभी झुमकी की मां उसे समझा ही रही थी कि झुमकी का बाप अंदर आ गया. उस ने सारी बातें सुन ली थीं, बोला, “हां, झुमकी ज़रूर जाएगी पर कलुआ के साथ नहीं, बल्कि संजय कुमार के साथ. मैं ने इस की शादी संजय कुमार के साथ तय कर दी है. चल री झुमकी, जल्दी तैयार हो जा. तेरा दूल्हा बाहर बैठा हुआ है.”
यह कैसी शादी थी, न बरात, न धूम, न नाच, न गाना.
झुमकी और उस की मां समझ गई थीं कि झुमकी का सौदा कर डाला गया है. पर झुमकी के लिए आगे कुंआ और पीछे खाई जैसी हालत थी. फिर भी उस के मन में एक दूल्हे के नाम से यह उम्म्मीद जगी कि यहां रोज़रोज़ इज़्ज़त नीलाम होने से तो कुछ सही ही रहेगा कि किसी एक मर्द से बंध कर रहे.
और इसी उम्मीद में झुमकी उस आदमी के साथ चली गई. जाते समय झुमकी का मन तो भारी था पर इतनी खुशी ज़रूर थी कि उसे बेचने के बदले में उस के पिता को जो पैसे मिल जाएंगे उन के बदले वह कुछ दिन आराम से शराब पी सकेगा.
और इस तरह बिहार के एक गांव से चल कर झुमकी उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में पहुंच गई.
“यह रहा हमारा कमरा,” संजय ने एक छोटे से कमरे में घुसते हुए कहा.
उस कमरे में कोई भी बिस्तर नहीं था, सिर्फ एक गद्दे पर चादर डाल कर उसे लेटने की जगह में तबदील कर दिया गया था. और इस समय उस गददे पर 2 आदमी बैठे हुए झुमकी को फाड़खाने की नज़रों से देख रहे थे.
“अरे, इन से शरमाने की ज़रूरत नहीं है. ये दोनों हमारे बड़े भाई हैं- विजय भैया और मनोज भैया. हम लोग मजदूरी करते हैं और ये दोनों भी हमारे साथ इसी कमरे में रहते हैं. और एक बात बता दें तुम्हें कि तुम्हें हमारे साथसाथ इन का भी ध्यान रखना होगा,” संजय कुमार ने ज़मीन पर बैठते हुए कहा.
“हम भाइयों ने दिन बांट रखे हैं. हफ्ते के पहले 2 दिन तुम को बड़े भैया के साथ सोना होगा और उसके बाद के 2 दिन तुम मझले भैया के साथ सोओगी और मैं सब से छोटा हूं, इसलिए सब से बाद में मेरा नंबर आएगा. तुम को शर्म न आए, इस के लिए हम बीच में एक परदा डाल लेंगे,” संजय ने बड़ी सहजता से ये सारी बातें कह डाली थीं.
“क….क्या मतलब,” चौंक उठी थी झुमकी.
“यही कि हम 3 भाई हैं और हमारे आगेपीछे माईबाप कोई नहीं हैं जो हम लोगों का ब्याह करवा सके और न ही हम लोगों के पास इतना पैसा है कि हम लोग अलगअलग रहें और अपने लिए अलगअलग बीवी रख सकें. इसीलिए हम ने 3 भाइयों के बीच में एक ही बीवी खरीद कर रखने का प्लान बनाया.”
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संजय कुमार की बात सुन कर जब झुमकी ने 3 पतियों की बीवी बनने से इनकार किया
तो तीनों ने उस के पिता को पूरे पैसे देने की बात कह कर बारीबारी से झुमकी के साथ मुंह काला किया और बाद में तृप्त हो कर गहरी नींद में सो गए और जब वे तीनों आधी रात के बाद नींद की आगोश में थे, तब झुमकी दबेपांव वहां से भाग निकली और ढूंढतेढांढते पुलिस स्टेशन पहुंची और थानेदार को पूरी कहानी बताई.
“अरे, तो इस में बुराई ही क्या थी. और फिर, तुम्हें तो गांव में भी ऊंची जाति के लोगों के साथ सोने की आदत थी ही. यहां भी तीनों को खुश कर के रहतीं, तो वे सब रानी बना कर रख़ते. तुम छोटी जाति वालों के साथ यही समस्या है कि ज़रा सी बात में ही शोर मचाने लगते हो. अब रात के 3 बजे तू यहां आई है और मैं ने तेरी रिपोर्ट भी लिख ली है. अब अगर बदले में तू मुझे थोड़ा खुश कर देगी, तो तेरा कुछ घिस थोड़े ही जाएगा,” यह कह कर थानेदार ने मेज़ पर ही झुमकी को लिटा दिया और उस का बलात्कार कर डाला.
रोती रही झुमकी. आज उसे कलुआ बहुत याद आ रहा था. उस ने एक नज़र थानेदार पर डाली
जो अपनी शर्ट और पैंट को संभालने की कोशिश कर रहा था.
सुबह हो रही थी. झुमकी भारी मन से उठी और बाहर निकल गई. कमज़ोरी, थकान और अपने ऊपर हुए जुल्मों के कारण उस से चला भी न जा रहा था. झुमकी किसी तरह सड़क तक पहुंची और सड़क पर ही गिर कर बेहोश हो गई.
झुमकी को होश आया, तो उस ने अपनेआप को बिस्तर पर पाया और उस की आंखों के सामने एक युवक खड़ा मुसकरा रहा था.
युवक की आंखों पर हलके लैंस का चश्मा और चेहरे पर घनी दाढ़ी थी.
“घबराओ नहीं, तुम सुरक्षित जगह हो. तुम सड़क पर बेहोश हो गई थीं. संयोग से मैं वहीं से गुज़र रहा था. तुम्हें देखा, तो यहां ले आया.” वह युवक इतना बोल कर चुप हो गया.
झुमकी अब भी उस को प्रश्नवाचक नज़रों से देख रही थी.
“मैं एक समाजसेवक हूं. मेरा नाम मलय है और तुम जैसे गरीब व पिछड़े लोगों की मदद करना ही मेरा काम है. थोड़ा आराम कर लो और फिर मैं तुम से पूछूंगा कि तुम्हारी यह हालत किस ने कर दी है.”
वह मुसकराता हुआ वहां से चला गया और झुमकी की देखभाल के लिए एक नर्स वहां आ गई. कुछ घंटों बाद जब मलय वहां आया तो झुमकी अपनेआपको तरोताज़ा महसूस कर रही थी और पहली बार उसे ऐसा लग रहा था कि वह सुरक्षित हाथों में है.
झुमकी ने अपने साथ बीती हुई सारी बातें मलय को बता दीं. सुन कर मलय काफी दुखी हुआ और उस को न्याय दिलाने का वादा किया.
झुमकी की सेहत भी अब ठीक हो रही थी और अब भी वह मलय के सर्वेंटरूम में ही रह रही थी.
एक रात को 10 बजे मलय उस सर्वेंटरूम में आया. वह अपने साथ एक बाम ले कर आया था.
“मेरे सिर में बहुत दर्द है, ज़रा बाम तो लगा दो झुमकी, ” मलय ने झुमकी के बिस्तर पर लेटे हुए कहा.
झुमकी बाम लगाने लगी मलय के माथे पर. मलय उसे लगातार घूरे जा रहा था. अचानक कुछ अच्छा नहीं लगा झुमकी को.
“मैं सोच रहा हूं कि भले ही तुम नीच जाति की हो, तुम्हारे साथ इतने लोगों ने बलात्कार किया, तो ज़रूर तुम में कोई कशिश रही होगी और मुझे लगता है कि उन्होंने कोई गलती नहीं करी,” कह कर मलय चुप हो गया.
झुमकी ने बाम लगाना बंद कर दिया और दूर जाने लगी.
तभी पीछे से उस ने अपनी पीठ पर मलय का हाथ महसूस किया. वह कुछ बोल पाती, इस से पहले ही मलय ने झुमकी को पकड़ कर बिस्तर पर गिरा दिया और उस का बलात्कार कर दिया.
झुमकी एक बार फिर उस नरक के अनुभव से गुज़र रही थी. लेकिन इस बार वह सहेगी नहीं,
वह बदला लेगी. पर कैसे?
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गुस्से में झुमकी ने कोने में पड़ा हुआ एक छोटा सा चाकू उठाया और पूरी ताकत से मलय पर वार कर दिया. मलय के हाथ पर हलाकि सी खरोंच आई. मलय नशे में तो था ही, खरोंच लगने से उसे और क्रोध आ गया और उस ने अपने दोनों हाथ झुमकी के गरदन पर कस दिए और अपना दबाव बढ़ाता गया. एक समाजसेवक बलात्कारी के साथसाथ खूनी भी बन गया था.
और झुमकी, जो एक गांव में जन्म ले कर शहर तक आई, पिता से ले कर उस के जीवन में जो भी आया उसे झुमकी में सिर्फ वासनापूर्ति का साधन दिखाई दिया. यह उस के एक औरत होने की सज़ा थी या एक गरीब होने की या एक दलित महिला होने की एक प्रश्नचिन्ह अब भी बाकी है???