‘तुम को सौगंध है कि आज मोहब्बत बंद है…’, ‘शायद मेरी शादी का खयाल दिल में आया है इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पे बुलाया है…’ फिल्म ‘आप की कसम’ की मोहब्बत भी क्वारंटीन यानी संगरोध में हो कर बंद होगी. और फिल्म ‘सौतन’ के गीत में तो राजेश जी को पंछी अकेला देख कर चाय पर बुलाया गया था, लेकिन आजकल छींक, खांसी और किसी के नजदीक जा कर बात तक करना किसी सौतन से कम नहीं है.

जो मित्र बातबात पर मिलते ही गले लग कर हग करते थे, वह भी आजकल दूर से ही ‘नमस्ते जी’ कह कर पास से निकल जाते हैं.

अब नकारा लोगों को तो छींक मारने जैसा एक अहिंसक हथियार मिल गया है, वह अपने बौस के पास जा कर बस छींक या खांस देते हैं तो बौस खुद अपनी जेब से नया रूमाल निकाल कर दूर से पकड़ाते हुए उन्हें अपने चैंबर से बिना कुछ कहे तुरंत बाहर भेज देते हैं. खुद ही उन के घर पर रहो और ‘वर्क फ्राॅम होम’ का आर्डर भी निकाल देते हैं.

कोरोना संपर्क में आने पर मार डालता है, पत्नी संपर्क में आ कर मरने नहीं देती. जिन्हें घर से बाहर रह कर हाथ साफ करने की आदत थी, वह भी अब घर पर रह कर पत्नी से नजरें मिलते ही हाथ धोने बाशरूम में भाग जाते हैं, क्योंकि आंखों का पुराना इशारा कहीं उन्हें भावनाओं में बहा कर नजदीक ला कर गले न मिला दे.

आपने  सुना ही होगा, -‘पति, पत्नी और वो’. तो जनाब, ये कोरोना भी पति, पत्नी को ‘वो‘ की तरह ही परेशान करता है.

मगर यहां एक नई परेशानी यह है कि यह ‘वो’ ऐसी है जो किसी को भी कहीं भी दिखती ही नहीं ससुरी. अदृश्य रहती है.

कोरोना के सामने सांस लेना दूभर होता है, तो पत्नी के सामने बात करना. ऐसे में किसी की पत्नी यदि चिड़चिड़ी, तुनकमिजाज हो तो उस बेचारे को तो दूर से ही बातबात पर एक के बाद एक इतने आदेश मिलते हैं कि वह उस के आदेशानुसार प्रत्येक काम  करने के बाद खुद ही बारबार कई बार हाथ धोता है. वह सारे झूठे बरतन और बाथरूम के सेनेटरी पाॅट भी खुद धोता है. बाद में बारबार हाथ धोता है. सेनेटाइजर लगाता है, जनाब.

आजकल कोरोना ने पतियों को घर में क्वारंटाइन कर रखा है, तो पत्नियां तो पहले भी बातबात पर अपने पति से नाराज हो कर अपनेआप को धाड़ से तुनक कर शयन कक्ष में बंद कर लेतीं थीं यानी जबतब शयन कक्ष का ‘कोप पलंग’  उन्हें अपने आगोश में शांत रखता था. और फिर घर का कामकाज बेचारे पति को ही संभालना पड़ता था.

हां, यह बात अलग है कि इस बार क्वारंटाइन में रह कर समस्त पति प्रजाति अपने नाकमुंह को मास्क से ढक कर व कानों में मोबाइल का ईयर फोन ठूंस कर गीतसंगीत सुनते हुए आराम से चुपचाप एकांतवास फीलिंग में काम कर रही है. बेचारे पति जाएं भी तो जाएं कहां. घर में तुनकमिजाज पत्नी है, बाहर जानलेवा कोरोना. दोनों तरफ ही उस की जान पर बन आई है, जी. बस, उस ने अपने कोरोनाघात निरोध के लिए सेनेटाइजर की बोतल को अपनी जेब में सुरक्षित कर रखा है और दिनभर में कई बार अपने हाथों पर मल कर भविष्य हेतु पुनः समर्थ और सुरक्षित महसूस करता है.

लौकडाउन अवस्था में क्वारंटाइन में रह कर भी मोहब्बत बंद है. एकांतवास में रह कर सबकुछ डाउन है, इसलिए पहले अपनेअपने फेफड़ों और सांसों को बचाने का लगाव है. क्या करें, जान है तो जहान है, न जनाब मेरे भाई.

कोरोना से बचने का सही और सुरक्षित इलाज है कि लौकडाउन में रहते हुए पत्नी से भी 1 मीटर की शारीरिक दूरी बनानी बहुत जरूरी है.

वैसे जो समझदार अच्छे पति हैं, वह पत्नी के नजदीक खास मौके पर पहले ही सुरक्षित हो कर आते हैं या सुरक्षित साधनों को जेब में रख कर ही उन के नजदीक आते हैं. सावधानी हटी, परिवार बढ़ा का सिद्धांत यहां लगता है.

समझदार पति तो प्रत्येक माह की पहली और दूसरी तारीख को अपनी पत्नी के नजदीक बिलकुल भी नहीं फटकना चाहता. फिर भी पत्नी समझदार होती है, इसलिए वह इन दिनों में पति से ज्यादा उस के बटुए पर अपनी पैनी नजर रखती है. कार्यालय से पति बेचारे को घर पहुंचते ही अपनी तनख्वाह से हाथ धोना पड़ता है.

समझदार पत्नी कुछ रुपए तो घरेलू मासिक खर्च के नाम पर ले लेती हैं और कुछ अच्छे सौंदर्य प्रसाधनों की खरीद के नाम पर. वह बेचारा पति इसलिए भी दे देता है कि आज नहीं तो कल जब नजदीकियां बढ़ेंगी तो इन के सौंदर्य प्रसाधन काम तो मेरे ही आने हैं. वह जानता है कि अच्छा सौंदर्य प्रसाधन पत्नी के चेहरे की सुंदरता के साथसाथ पति के स्वास्थ्य को भी नुकसान नहीं पहुंचाता.

वैसे, कोराना ने परमाणु बमों की ताकत को भी बौना बना दिया. कोराना अदृश्य दानव बन कर सामने आया तो हम सब उस से बचने के लिए अपनेअपने घरों में छिपने लगे. घरों में ही रहना एकमात्र सहारा बताया गया. बाहर निकले तो हमारी सांसों पर ऐसा आक्रमण हो सकता है कि सांसें फूल कर समाप्त हो सकती हैं और हमारी विश्व रंगमंच की पात्रता एकदम समाप्त हो सकती है. रोल खत्म हो सकता है यानी खेल समाप्त न हो, इसलिए बड़ेबड़े परिवारों तक में लोग ‘दालरोटी खाओ, प्रभु के गुण गाओ’ को अब फोलो कर रहे हैं. यहां ’बने रहो अपनी कुटिया में वरना दिखाई दोगे लुटिया में‘ का कोरोनायुग नवसिद्धांत जगहजगह लागू हो गया है.

कुल मिला कर, हमारे फेफड़ों पर हुआ इस भयानक वायरस का आक्रमण हमें अपने परस्पर मानवीय मूल्यों, आपसी संबंधों, जीवजंतुओं, पेड़पौधों और तरहतरह के भूगर्भ वैज्ञानिकी शोध, रहस्य और विज्ञान को फिर से समझने का मौका दे गया.

आज नहीं तो कल कोरोनासुन वापस जाएंगे और हम पुनः नवसंदर्भों के साथ जीवनयापन फिर शुरू कर देगें. जो इस बार तामसिक नहीं, पवित्र और सात्विक होगा. और मेरा विश्वास है कि मेरे नव शोध प्रबंध को भी जरूर गति मिलेगी.

ये भी पढ़ें- लैफ्टिनैंट सोना कुमारी: क्या हुआ था सोना के साथ

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...