आज पार्टी में सभी मेरे रंगरूप की तारीफ कर रहे थे. निकिता बोली, ‘‘दीदी, आप की उम्र तो रिवर्स गियर में चल पड़ी है. लगता ही नहीं आप की 4 वर्ष की बेटी भी है.’’

सोनल भी खिलखिलाते हुए बोली, ‘‘आप की त्वचा से आप की उम्र का पता ही नहीं चलता. यह है संतूर साबुन का कमाल,’’ और फिर एक सम्मिलित ठहाके से अनु दीदी का ड्राइंगरूम गूंज उठा.

मैं भी मंदमंद मुसकान के साथ सारी तारीफों का मजा ले रही थी. 32 वर्षीय औसत रंगरूप की महिला हूं तो जब से नौकरी आरंभ करी है तो हाथ थोड़ा खुल गया है. अपने रखरखाव पर थोड़ा अधिक ध्यान देना शुरू कर दिया है. नतीजतन 2 वर्षों के भीतर ही खुद की ही छोटी बहन लगने लगी हूं.

मेरा नाम अदिति है और मैं एक प्राईवेट विद्यालय में प्राइमरी कक्षा के विद्यार्थियों को पढ़ाती हूं. शादी से पहले मैं डंडे की तरह पतली थी, पार्लर बस बाल कटाने ही जाती थी, क्योंकि उन दिनों लड़कियों का पार्लर अधिक जाना अच्छा नहीं समझा जाता था. घनी जुड़ी हुई भौंहें और होंठों के ऊपर रोयों की एक स्पष्ट छाप थी, फिर भी अच्छी लड़की के तमगे के कारण मैं ने कभी उन मूंछों या भौंहों को छुआ नहीं. कपड़े भी अपने से दोगुना बड़े पहनती थी ताकि मेरा पतलापन ढका रहे. अब ऐसे में 10 बार मेरे रिश्ते के लिए न हो चुकी थी पर फिर न जाने मेरे पति कपिल को इस रिश्ते के गणित में क्या नफा दिखा कि उन्होंने मुझे देखते ही पसंद कर लिया.

न न ऐसे मत सोचिए कि कपिल कोई हीरो थे. वे भी मेरी तरह औसत रंगरूप के ही स्वामी थे, पर इस देश में हर ठीकठाक कमाने वाले लड़के को ऐश्वर्य की दरकार होती है. मैं खुश थी और पहली बार फेशियल, ब्लीच, वैक्सिंग इत्यादि कराई और अपनी नाप के कपड़े भी सिलवाए. गलत नहीं होगा अगर मैं कहूं कि शादी में मैं बेहद खूबसूरत लग रही थी, कम से कम आईना और मेरी सहेलियां तो यही कह रही थीं.

शादी के बाद कपिल और उन के परिवार के प्यार और सम्मान ने मुझे आत्मविश्वास के पंख दे दिए और मैं आकाश में उड़ने लगी. कपिल एक सरकारी विभाग में क्लास टू ग्रेड के इंप्लोई थे पर फिर भी उन्होंने खर्चों पर जरा भी टोकाटाकी नहीं की. हर महीने पार्लर जाती हूं और जो भी नई डिजाइनर ड्रैस आती है उस की कौपी जरूर खरीद लेती हूं.

फिर 2 वर्ष के भीतर दीया ने मुझे मां बनने का सुख प्रदान किया पर सुख के साथ बढ़ गई जिम्मेदारियां और खर्चे भी. तब कपिल के कहने पर मैं ने नौकरी के लिए हाथपैर मारे और जल्द ही मुझे एक नामी विद्यालय में शिक्षिका की नौकरी मिल गई. घर पर दीया की देखभाल के लिए उस के दादादादी थे.

एक नया अध्याय शुरू हुआ जिंदगी का, खुद को सही माने में आजाद महसूस करने

का, खुद के वजूद से रूबरू होने का. शुरू में हर काम में घबराहट होती थी. यहां स्कूल में हर काम लैपटौप पर करना होता था. बहुत पहले किया हुआ कंप्यूटर कोर्स काम आ गया. तनाव और नईनई चीजों को सीखने की कोशिश करते हुए 1 माह बीत गया और पहली सैलरी हाथ में आते ही तनाव और अनिश्चितता के बादल हट गए. नए लोगों से दोस्ती के साथ जीवन को एक नए नजरिए से देखना भी आरंभ कर दिया. सच पूछो तो सबकुछ एकदम सही चल रहा था. आज कपिल की दीदी के यहां हाउसवार्मिंग पार्टी में इन सब तारीफों का आनंद ले रही हूं और साथ ही कुदरत को धन्यवाद भी दे रही हूं मुझे इतना अच्छा घरपरिवार देने के लिए.

रात को बहुत थक कर जैसे ही सोने की कोशिश कर रही थी, कपिल नजदीक आने की मनुहार करने लगे पर मैं ने ठंडे स्वर में कहा, ‘‘यार मन नहीं है. 10 दिन ऊपर हो गए हैं, अब तक डेट नहीं आई.’’

कपिल चुहल करते हुए बोले, ‘‘मुबारक हो, लगता दीया के लिए छोटा भाई या बहन आने वाली है… मम्मीपापा की भी दिल की इच्छा पूरी हो जाएगी.’’

मैं ने कपिल के हाथ को झटकते हुए कहा, ‘‘तुम्हें पता है न अभी मैं दूसरा बच्चा नहीं कर सकती, नहीं तो कन्फर्मेशन रुक जाएगी.’’

कपिल ने प्यार से सिर थपथपाते हुए कहा, ‘‘अरे बाबा तनाव के कारण ये सब हो रहा है. लाओ सिर पर तेल की मालिश कर दूं.’’

ऐसे ही देखतेदेखते 10 दिन और बीत गए, फिर बाजार में उपलब्ध प्रैगनैंसी किट से टैस्ट किया पर नतीजा नैगेटिव था.

रविवार को कपिल और मैं डाक्टर के पास गए. डाक्टर ने सारी बातें ध्यान से सुनीं और फिर कुछ टैस्ट कराने के लिए कहा. मंगलवार को रिपोर्ट आ गई और फिर से हम डाक्टर के सामने बैठे थे. रिपोर्ट पढ़ते हुए डाक्टर के चेहरे पर चिंता की रेखाएं थीं.

चश्मा निकाल कर डाक्टर बहुत स्नेहिल परंतु गंभीर स्वर में बोली, ‘‘ये सारी रिपोर्ट्स पैरिमेनोपौजल की तरफ इशारा कर रही हैं. आप को प्रीमैच्योर ओवेरियन फेल्योर है.’’

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्यों और कैसे यह तूफान मेरी जिंदगी में आ गया है. मैं अब तक एक पूर्ण स्त्री थी. अभी तक तो मैं ने अपने स्त्रीत्व को पूर्णरूप से भोगा भी नहीं था और मेरा शरीर मेनोपौज की तरफ जा रहा है और वह भी मात्र 32 वर्ष की उम्र में. इस उम्र में तो बहुत बार लड़कियों की शादी होती है.

एक टूटा हुआ मन और अधूरा तन ले कर मैं कपिल के साथ घर आ गई. सासससुर बहुत आशा से कपिल की तरफ देख रहे थे, कोई खुशखबरी सुनने की आस में पर कपिल ने कहा, ‘‘कोई खास बात नहीं है.’’

मैं ने कपिल से कहा, ‘‘झूठ क्यों बोला? क्यों नहीं बताया मैं अब कभी चाह कर भी मां नहीं बन पाऊंगी?’’ और यह कहते हुए एक तीव्र दर्द की लहर मुझे भीतर तक हिला गई.

पहले मेरी मां बनने की कोई लालसा नहीं थी पर अब मैं दोबारा मां न बन पाने की लिए बिसूर रही थी. सब से ज्यादा साल रहा था एक खालीपन, मेरे स्त्री होने की पहचान मुझ से छूट रही थी वह भी मात्र 32 वर्ष की उम्र में, मैं जब शाम को भी अपने कमरे से बाहर नहीं निकली तो सासूमां अंदर आईं. उन्हें देख कर मैं सकपका गई. बहुत प्यार से उन्होंने सिर पर हाथ फेर कर पूछा तो मैं अपने को रोक नहीं पाई. रोते हुए उन्हें सब बता दिया. वे बिना कुछ बोले कमरे से बाहर निकल गईं. मुझे उन से ऐसी ही प्रतिक्रिया की उम्मीद थी. अब मैं उन्हें उन का दूसरा पोता या पोती नहीं दे पाऊंगी न, फिर वे क्यों परवाह करेंगी मेरी…ये सब सोचतेसोचते मुझे रोतेरोते सुबकियां आने लगीं.

अब मुझे सब समझ आ रहा था कि क्यों मुझे इतना पसीना आता था. क्यों हर समय मैं चिड़चिड़ी रहती थी. क्यों मुझे कपिल का संग अब थोड़ा तकलीफदेह लगने लगा था. मैं इन सारी चीजों को अपने रोजमर्रा के तनाव से जोड़ रही थी पर असली कारण तो पैरिमेनोपौज था.

अगले दिन मैं ने स्कूल में अपनी सब से अच्छी दोस्त से जब यह बात साझा

करी तो उस की आंखों में अपने लिए चिंता और दया के मिलेजुले भाव दिखे पर फिर वह हंसते हुए बोली, ‘‘चल अच्छा है तेरा हर महीने सैनिटरी पैड्स खरीदने का खर्चा बच जाएगा.’’

हर तरफ से बस सहानुभूति मिल रही थी, ‘‘बेचारी अभी उम्र ही क्या थी, अब पति को कैसे बांध कर रख पाएगी.’’

‘‘सुनो अदिति, जिम आरंभ कर लो… इस चरण में तेजी से वजन बढ़ता है.’’

‘‘देखो कहीं जोड़ों का दर्द अभी से आरंभ

न हो जाए, हारमोंस रिप्लेसमैंट थेरैपी करवा लो.’’

मेरा दिमाग चक्करघिन्नी की तरह घूम रहा था. उधर रोज मेरे करीब आने की चाह रखने वाले मेरे प्यारे पति ने पिछले 15 दिनों से मेरे करीब आने की कोशिश नहीं करी. वजह मुझे पता है. उन्हें भी लगता है अब मैं उन्हें सुख नहीं दे पाऊंगी.

न जाने क्यों खिंचेखिंचे से रहते हैं. अगर कुछ बांटना चाहती हूं तो फौरन बोल देंगे, ‘‘अब रोनेबिसूरने से क्या होगा? जो है जैसा है उसे स्वीकार करो और आगे बढ़ो.’’

कैसे समझाऊं उन्हें अपने दिल की बात, मुझे ऐसा लगता है जैसे हरियाली आने से पहले ही मैं बंजर हो गई हूं. यह स्वीकार करना मेरे लिए बहुत मुश्किल हो रहा था कि मेरा यौवनाकाल कुछ ज्यादा ही तेज गति से चला है और जो गंतव्य 47-48 वर्ष के बाद आता है वह 17-18 वर्ष पहले ही मेरे जीवन में आ गया है.

मुझे लग रहा था शारीरिक से ज्यादा मैं मानसिक रूप से कमजोर हो गई हूं. उधर कपिल ने अपनेआप को एक दायरे में कैद कर लिया था. न जाने सारा दिन लैपटौप पर क्या करते रहते हैं. उधर सासूमां ने कहा तो कुछ नहीं पर ऐसा लगता है जैसे मुझ से खुश नहीं हैं या यह मेरा वहम है.

1 माह होने को आ गया और मैं ने अपने मन को समझा लिया था कि अब ये ही मेरी जिंदगी है. आईने को रोज घूरघूर कर देखती थी कि कहीं झुर्रियों ने अपना जाल तो नहीं बना लिया. तेज चलने से डरने लगी कि कहीं गिर कर हड्डी न टूट जाए. आखिर हड्डियां रजोनिवृत्ति के बाद तेजी से कमजोर होती हैं.

आज पूरे 1 महीने बाद ठीक से तैयार हो कर स्कूल के लिए निकली तो पुरुषों

की निगाहों में अपने लिए प्रशंसा के भाव देखे. खुद को अच्छा भी लगा कि अभी भी मैं सराहनीय हूं. आज कुछ मन ठीक था तो दीया को ले कर पार्क जाने लगी. सासूमां भी मुसकरा कर बोलीं, ‘‘ऐसे ही खुश रहा करो, पूरा घर चुप हो जाता है तुम्हारे चुप रहने से और बेटे उतारचढ़ाव का नाम ही तो जिंदगी है, मन को स्थिर रख कर समस्या का समाधान खोजो.’’

मैं ने बुझे मन से कहा, ‘‘पर मम्मी अगर कोई समाधान ही न हो…’’

वे मुसकराते हुए बोलीं, ‘‘यानी कोई समस्या ही नहीं है.’’

रात के 10 बज गए थे पर कपिल का कुछ अतापता नहीं था. आज जब वे आए तो मैं ने आते ही आड़े हाथों लिया, ‘‘तुम्हें याद है कि तुम्हारा एक परिवार भी है?’’

कपिल व्यंग्य कसते हुए बोले, ‘‘हां, अच्छी तरह याद है एक परिवार है और एक रोतीबिसूरती कमजोर बीवी.’’

मैं खड़ीखड़ी कपिल को देखती रह गई… कहां गया यह प्यार और दुलार का… क्या औरत और मर्द का रिश्ता बस दैहिक स्तर तक ही सीमित है? खुद के ही शरीर से पसीने की गंध आ रही थी तो नहाने चली गई. आईने में फिर से खुद को पागलों की तरह देखने लगी. अभी तो शरीर में कसावट है पर शायद 2-3 वर्ष में शरीर ढीला पड़ जाएगा, जब ऐस्ट्रोजन हारमोंस बनना बंद हो जाएगा.

बाहर आई तो कपिल गहरी नींद में सोए थे, बहुत मन हुआ कहूं कि मुझे तुम्हारे साथ की जरूरत है, मुझे अकेला मत छोड़ो.

आज फिर कपिल देर से आए पर मैं ने बिना कुछ कहे खाना लगा दिया. खाना खाते हुए कपिल बोले, ‘‘मुझे तुम से कुछ जरूरी बात करनी है. कल का डिनर हम बाहर करेंगे.’’

मेरा दिल धकधक कर रहा था कि कहीं कपिल किसी और से तो नहीं जुड़ गए हैं. यदि हां तो मैं उन्हें रिहाई दे दूंगी, कोई हक नहीं है मुझे उन से कोई सुख छीनने का. पूरी रात इसी उधेड़बुन में बीत गई और सुबह मैं ने काफी हद तक अपनेआप को तैयार कर लिया था.

अगले दिन कपिल टाइम से घर आ गए थे और फिर हमारी कार एक बिल्डिंग के बाहर खड़ी थी. हम लोग लिफ्ट में ऊपर गए तो देखा वह काउंसलर का औफिस था. मैं कपिल को देखने लगी, कपिल मेरा हाथ पकड़ कर अंदर ले गए. एक बेहद ही खूबसूरत और जहीन महिला थी. कपिल ने मेरा परिचय दिया और मुझ से बोले, ‘‘अदिति, तुम बात करो, मैं थोड़ी देर में आता हूं.’’

काउंसलर से मैं ने अपने मन की सारी बात कर दी. वह बिना कुछ बोले बहुत धैर्य से मेरी बात सुनती रही और फिर बोली, ‘‘अदिति, तुम स्त्री होने से भी पहले एक इंसान हो… तुम्हारी पहचान बस तुम्हारे स्त्रीत्व तक सीमित नहीं है.

‘‘यह जरूर है कि तुम्हें इस दौर का सामना थोड़ा जल्दी करना पड़ रहा है. पर खानपान में थोड़ा बदलाव, थोड़ा व्यायाम करने से तुम्हारी जिंदगी सही पटरी पर आ जाएगी… यह जिंदगी का एक नया अध्याय है. इसे समझो, स्वीकार करो और मुसकराते हुए आगे बढ़ो.’’

थोड़ी देर बाद कपिल आ गए और फिर

हम दोनों आज काफी दिनों बाद एकसाथ डिनर कर रहे थे. कपिल वर्षों बाद मुझे प्यार से देख रहे थे.

मैं ने भीगे स्वर में कहा, ‘‘कहो क्या कहना था?’’

कपिल बोले, ‘‘ध्यान से सुनना… बीच में मत टोकना. तुम मेरी जिंदगी का सब से महत्त्वपूर्ण पन्ना हो. तुम स्त्री हो और मैं पुरुष हूं? इसलिए समाज ने हमें विवाह के बंधन में बांध दिया है पर तुम मेरे लिए एक स्त्री नहीं हो मेरा सबल भी हो. अगर मैं किसी समस्या से गुजर रहा हूंगा तो क्या तुम मुझे अकेला कर दोगी या मेरे साथ खड़ी रहोगी?

‘‘मैं तुम्हारे साथ खड़े रहना चाहता हूं पर तुम ने मुझे अपने से बहुत दूर कर दिया है, अपने इर्दगिर्द इतनी नकारात्मक ऊर्जा इकट्ठी कर ली है कि मैं तो क्या कोई और भी चाह कर तुम्हारी सहायता नहीं कर सकता है.’’

मैं आंखों में आंसू भर कर बोली, ‘‘पर तुम तो खुद मुझ से कटेकटे रहते हो?’’

कपिल हंसते हुए बोले, ‘‘पगली, तुम्हारे रोने की आदत के कारण से कटाकटा रहता हूं, तुम्हारे कारण नहीं? यह जिंदगी में एक मोड़ आया है, थोड़ा सा ज्यादा घुमावदार है तो क्या हुआ हम एकसाथ पार करेंगे… तुम एक शरीर नहीं हो, उस से भी ज्यादा तुम्हारी पहचान है.

‘‘स्पीडब्रेकर पर रुकना पड़ता है न पर संभल कर चलने से पार कर लेते हैं न?’’

कपिल की बातों से यह तो मुझे समझ आ गया था कि क्यों हुआ, कैसे हुआ से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है उस समस्या का समाधान कैसे कर सकते हैं.

आज इस बात को 3 वर्ष हो गए हैं.

अभी भी मैं रजोनिवृत्ति के दौर से गुजर रही हूं पर डाक्टर की सलाह और उचित खानपान से काफी हद तक समस्या सुलझ गई है.

अब मेरा वजन पहले से कम हो गया है और मेरी त्वचा भी दमकने लगी हैं, क्योंकि अपनेआप को मेनोपौज के लिए तैयार करने के लिए मैं ने पूरा खानपान ही बदल दिया है. जो है, जैसा है मैं स्वीकार करती हूं, यह सोच अपनाते ही सबकुछ बदल गया और बदल गई मेरी पहचान.

मेरी पहचान न आंकी जाए मेरे स्त्रीत्व से, यह है बस मेरे अस्तित्व का एक हिस्सा, जिंदगी का बचा हुआ है अभी भी, एक और नया सकारात्मक किस्सा.

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