जुलाई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात के मामले में एक महत्वपूर्ण जजमैंट दिया कि शादी होना या न होना एक गर्भवती के अधिकारों को कमबढ़ती नहीं करता अगर वह गर्भपात कराना चाहे गर्भवती का गर्भपात कराना न जाने क्यों आज भी सरकारों के हाथों में है, मरीजों और डाक्टरों के हाथों में नहीं. मेडिकल टर्मिनेशन औफ प्रैगनैंसी एक्ट और इस के अंतर्गत बने रूल्स गर्भवती को दरदर ठोकरें खाने को मजबूर करते हैं और कितनी बार गर्भवती को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ता है जहां उस की इज्जत भी तारतार होती है और जमापूंजी स्वाह होती है.

सैक्स करना मौलिक व मूलभूत प्राक्रतिक अध्धिककार है और जो सरकार, समाज, घर, रीतिरिवाज इस के बीच में आड़े आता है वह अपने को प्रकृति के ऊपर खुद को काल्पनिक भगवान का सा दर्जा देता है. दुनिया के कितने ही देशों में, जिस मेंं  वैज्ञानिक सोच के लिए जाना जाने वाला अमेरिका भी शामिल है, औरतों के इस हक पर खुलेआम डाका डालते हैं.

शादी अपनेआप में एक लीगल फिक्शन. है, यानी समाज व सरकार के कानूनों द्वारा दिया नकली प्रमाणपत्र है कि अब 2 जने सैक्स कर सकते हैं. यह बदलाव नया नहीं है पर सदियों से इस की गाज आदमी पर नहीं औरतों पर ज्यादा पड़ती रही हैं. सदियों से तलाकशुदा, विधवा, कुआंरियों के सैक्स संबंधों पर समाज सिर्फ इसलिए नाकमौं चढ़ाता रहा है कि उन्होंने सैक्स का सामाजिक, कानूनी, धार्मिक लाइसेंस नहीं लिया. सैक्स की वजह से गर्भ हो जाए तो सजा औरतों को मिलती है आदमियों को नहीं.

पहले गर्भपात का अठलन तरीकों में कूएं में कूदना, नदी में बह जाना या रस्सी गले में बांध कर लटक जाना था. आज सेफ एबोर्शन मिल रहा है. यह चिकित्सा जगत का औरतों को उपहार है पर जैसे पंडेपादरी हर खुशी के मौके पर टांग अड़ाते हैं, इस खुशी में भी टांग अड़ाने आ गए. अमेरिका में प्रेमनाटक मूवमैंट चर्च जीवन रहा है और वह काफी अफैक्टिव है. औरतों को चर्च की शरण में जाना पड़ रहा है और इस मूवमैंट से चर्च को डोनेशन भी बढ़ गई है.

आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें

डिजिटल

(1 साल)
USD10
 
सब्सक्राइब करें

डिजिटल + 24 प्रिंट मैगजीन

(1 साल)
USD79
 
सब्सक्राइब करें
और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...