‘‘बाजार से खाने के लिए कुछ ले आती हूं,’’  झुमकी पलंग पर लेटे बिछुआ को देख कर बोली और बाहर निकल गई.  बटुए से पैसे निकाल कर गिनते हुए  झुमकी के चेहरे पर चिंता की लकीरें खिंची हुई थीं. उत्तर प्रदेश के कमालपुर गांव से वह अपने बीमार पति बिछुआ का इलाज कराने दिल्ली आई थी. उसे यहां आए हुए 2 हफ्ते हो चुके थे. कोई जानपहचान वाला तो था नहीं, सो अस्पताल के पास ही एक कमरा किराए पर ले कर रह रही थी.

कई दिनों से चल रही जांच के बाद ही पता लग पाया कि बिछुआ के पेट की छोटी आंत में एक गांठ थी. आपरेशन जल्द कराने को कह रहे थे अस्पताल वाले, लेकिन  झुमकी यह सोच कर परेशान थी कि पैसों का जुगाड़ कैसे होगा? सरकारी अस्पताल है तो क्या हुआ… कुछ खर्चा तो होगा ही आपरेशन का. फिर इस कमरे का किराया, खानापीना और बिछुआ की दवाएं… पैसे के बिना तो कुछ मुमकिन था ही नहीं. क्या बिछुआ का इलाज कराए बिना ही वापस लौट जाना पड़ेगा?

सड़क पर चलते हुए अचानक ही  झुमकी को किसी के कराहने की आवाज सुनाई दी. पास जा कर देखा तो एक 35-40 साल की औरत जमीन पर गिरी हुई थी. उठने की भरपूर कोशिश करने के बावजूद वह उठ नहीं पा रही थी.  झुमकी ने सहारा दे कर उसे उठाया और पास ही पड़े एक बड़े से पत्थर पर बैठा दिया.

झुमकी को उस औरत ने बताया कि वह आराम से चलती हुई जा रही थी कि अचानक एक लड़का तेजी से साइकिल चलाता हुआ पीछे से आया और धक्का मार दिया. उस के धक्के से वह इतनी जोर से गिरी कि एक पैर बुरी तरह मुड़ गया और कुहनियां भी छिल गईं.

कुछ देर वहीं बैठने के बाद उस औरत ने  झुमकी से एक रिकशा रोक लेने को कहा. रिकशा रुकते ही वह औरत  झुमकी की मदद  से चढ़ तो गई, लेकिन  हाथों में दर्द के चलते रिकशे को पकड़ नहीं पा रही थी.

झुमकी भी तब रिकशे में बैठ गई और अपने हाथ का घेरा उस घायल औरत की कमर पर बना कर सहारा दे दिया. रिकशा उस औरत के घर की ओर रवाना हो गया.

रास्ते में उन दोनों की बातचीत हुई. उस औरत ने  झुमकी को बताया कि  उस का नाम राधा है. नजदीक के ही  एक महल्ले में वह अपने पति सुरेंद्र  के साथ रहती है. सुरेंद्र की पास के बाजार में किराने की दुकान है.

शादी को 10 साल बीत चुके थे, लेकिन राधा के कोई बच्चा नहीं था, इसलिए घर पर अकेली ऊब जाती थी. अपना समय बिताने और पति की मदद करने के मकसद से वह कुछ देर के लिए दुकान पर चली जाती है. आज भी वह दुकान से वापस लौट रही थी, तब यह घटना घटी.

अपने बारे में बता कर राधा ने  झुमकी से उस का परिचय पूछा, तो  झुमकी ने अपने बारे में सब बता दिया.

झुमकी की बात पूरी होतेहोते ही राधा का घर आ गया.  झुमकी ने चाबी राधा के हाथ से ले कर ताला खोल दिया और उसे सहारा देते हुए कमरे के भीतर ले

आई. जब तक राधा ने सुरेंद्र को फोन किया, तब तक  झुमकी वहां खड़ी रही.

राधा की सुरेंद्र से बात पूरी होते ही  झुमकी  बोली, ‘‘मैडमजी, मैं अब चलती हूं. बिछुआ मेरी बाट देखते होंगे.’’

राधा ने उसे रुकने को कहा. धीरेधीरे चलते हुए उस ने रसोई से ला कर कुछ नमकीन के पैकेट  झुमकी को थमा दिए.

रात को  झुमकी और बिछुआ राधा की दी हुई नमकीन खा कर सो गए. अगले दिन सुबहसुबह  झुमकी के कमरे का दरवाजा खड़का तो दरवाजा खोलने पर वह सामने सुरेंद्र को देख चौंक उठी.

सुरेंद्र ने उसे बताया कि राधा के पैर में पलस्तर चढ़ गया है. वह एक जरूरी बात करने के लिए  झुमकी को घर बुला रही है.

झुमकी बिछुआ को बता कर सुरेंद्र के साथ राधा से मिलने आ गई.

राधा  झुमकी को देख कर बहुत खुश हुई और तुरंत अपनी बात सामने रखते हुए बोली, ‘‘ झुमकी, मैं कल से तुम्हारे बारे में ही सोच रही थी. तुम्हारी परेशानी को ले कर मैं ने सुरेंद्र से भी बात की  है. मेरा एक सु झाव है, तुम्हें जंचे तो ही हां करना.’’

‘‘जी, कहिए…’’  झुमकी बोली.

‘‘मैं ने अपने घर का कुछ हिस्सा पिछले महीने ही बनवाया है. पहले आगे वाले 2 कमरे ही थे. कई दिनों बाद रंगरोगन हुआ तो पीछे की ओर एक कमरा भी बनवा लिया. उसे हम दुकान के गोदाम के रूप में इस्तेमाल करना चाहते हैं.

‘‘अभी वह कमरा खाली है. बस, मकान बनवाने के बाद का कुछ बचाखुचा सामान जैसे रंगरोगन के खाली डब्बे रखे हैं. तुम चाहो तो बिछुआ के इलाज तक उस कमरे में रह सकती हो.

‘‘तुम मेरे घर का काम कर दिया करना, क्योंकि चोट की वजह से मु झ से काम हो नहीं पाएगा. तुम हम दोनों का खाना बनाओगी तो साथसाथ अपना खाना भी बना लिया करना. काम के बदले पैसे तो दूंगी ही मैं तुम्हें.’’

झुमकी को मानो मुंहमांगी मुराद मिल गई हो. खुशीखुशी यह प्रस्ताव स्वीकार कर उसी दिन बिछुआ को ले कर वह राधा के घर चली आई.

राधा ने अपने घर पर रखे सामान में से बिस्तर और कुछ पुराने कपड़े  झुमकी के कमरे में रखवा दिए. अस्पताल के खर्च के लिए उस को कुछ रुपए भी दे दिए.

बिछुआ के पेट में खून रिसने के चलते जल्द ही आपरेशन कर दिया गया. आपरेशन कामयाब रहा और 4 दिन बाद उसे अस्पताल से छुट्टी भी मिल गई. तकरीबन एक महीने के लिए उसे आराम करने की सलाह दी गई. साथ ही, यह भी कहा कि दर्द ज्यादा हो तो तुरंत अस्पताल आना है, वरना एक महीने बाद जांच कराने ही आना होगा.

झुमकी ने पहले दिन से ही खाना बनाने के साथसाथ घर के बाकी काम पूरी जिम्मेदारी से करने शुरू कर दिए. वह सोच रही थी कि राधा के घर पर अगर आसरा न मिला होता तो जाने क्या होता? इधर राधा को भी  झुमकी के रूप में बड़ा सहारा मिल गया था.

एक दिन सफाई करते समय कमरे  में मकान बनने के बाद का बचा हुआ सामान और एक अलमारी में रखे रद्दी अखबार देख  झुमकी कुछ सोच कर मुसकरा उठी. शादी से पहले अपने  पिता से उस ने कुट्टी नाम की कला सीखी थी.

कुट्टी का मतलब होता है कागज को कूट कर उस से सुंदरसुंदर चीजें बनाना. पहले बेकार पड़े कागजों को कुछ दिन पानी में भिगो कर कूटा जाता है. इस लुगदी में मुलतानी मिट्टी और गोंद डाल कर गूंद लिया जाता है और किसी भी आकृति में ढाल कर सुखा लिया जाता है. बाद में उस आकृति पर रंग कर देते हैं.

‘इस काम के लिए मु झे जो भी सामान चाहिए, उस में से मुलतानी मिट्टी को छोड़ कर यहां सबकुछ  है, लेकिन उस की जगह एक थैली में  जो सफेद सीमेंट रखा है, उस से काम चल जाएगा.

‘मैडमजी तो यह सारा सामान फेंकने को कह रही थीं. इस का मतलब उन  को इस में से कुछ चाहिए भी नहीं, तो  मैं ही इस्तेमाल कर लेती हूं इसे,’  झुमकी ने सोचा.

डिस्टैंपर के खाली डब्बे में पानी भर कर  झुमकी ने वहां रखे रद्दी अखबार उस में भिगो दिए. 2-3 दिन बीतने पर भीगे कागजों को कूट कर लुगदी बना ली और बाकी सामान मिला कर एक सुंदर बड़ा सा फूलदान बना दिया. सूखने पर वहां रखे पेंट और ब्रश ले कर उसे सुंदर रंगों से रंग दिया.

जब  झुमकी फूलदान ले कर राधा के पास पहुंची, तो पीले, संतरी और सुनहरी रंगों से चमकते फूलदान को देख कर राधा हैरान रह गई. जब उसे पता लगा कि वह  झुमकी ने बचे सामान से बनाया है, तो हैरानी के साथसाथ उस की खुशी का ठिकाना न रहा.

‘‘ झुमकी तुम मु झे सिखाओगी यह कला?’’ राधा ने चहकते हुए पूछा.

‘‘क्यों नहीं मैडमजी, मु झे तो बहुत अच्छा लगेगा,’’  झुमकी को बहुत दिनों बाद एक अजीब सी खुशी महसूस हो रही थी.

अगले दिन से ही  झुमकी ने राधा को कुट्टी कला की बारीकियां बतानी शुरू कर दीं.  झुमकी ने बताया कि उस के पिता ज्यादा सामान बनाते थे, तो तकरीबन 15 दिन भिगोते थे कागजों को. ऐसे में 2-3 दिनों के बाद पानी बदल लेते थे. पुराना पानी वे पेड़पौधों में दे  देते थे.

पानी में कागजों को कुछ दिन भिगो कर जब कलाकृतियां बनाने का समय आया, तो  झुमकी राधा को सहारा देते हुए आंगन में ले आई और एक कुरसी पर बिठा दिया.

झुमकी को छोटेछोटे खिलौने बनाते देख राधा का मन भी खिलौने बनाने को करने लगा.  झुमकी एक टीचर की तरह राधा को सब सिखा रही थी और कुरसी पर बैठेबैठे ही राधा भी  झुमकी को देख कर खिलौने बना रही थी.

झुमकी ने उसे मूर्तियां, कटोरे और प्लेट जैसी और चीजें बनानी भी सिखाईं. सूखने पर रंग करने का आसान तरीका भी  झुमकी ने राधा को सिखा दिया. कुछ रंगों को मिला कर नए सुंदर रंग बनाना और उन का सही ढंग से इस्तेमाल करना भी राधा ने  झुमकी से सीख लिया.

इधर बिछुआ ठीक हुआ, उधर राधा के पैर का पलस्तर भी कट गया.  झुमकी और बिछुआ के गांव वापस जाने का समय आ गया था. जाने से पहले एक बार अस्पताल में जांच कराने के बाद  झुमकी और बिछुआ राधा और सुरेंद्र का अहसान मानते हुए भरे मन से विदा ले कर गांव चले गए.

कुछ दिनों तक राधा को घर सूनासूना लगता रहा, फिर धीरेधीरे सब सामान्य हो गया. वह पहले की तरह ही घर संभालने लगी और सुरेंद्र की मदद को दुकान भी पर जाने लगी थी.

अचानक उन की जिंदगी में एक मुसीबत आ गई. सुरेंद्र को दुकान के मालिक ने एक दिन आ कर बताया कि उस की और आसपास की कई दुकानों को गैरकानूनी होने के चलते जल्दी ही गिरा दिया जाएगा.

सभी दुकानदार आपस में सलाह कर इस नोटिस के खिलाफ कोई कदम उठाते, इस से पहले ही अचानक दुकानों को तोड़ने का काम शुरू हो गया.

सुरेंद्र ने बाकी सब की तरह ही अफरातफरी के बीच जल्दीजल्दी अपना सामान बाहर निकाला. उस का काफी सामान इधरउधर बिखर कर खराब हो गया. बाकी बचे सामान को किसी तरह वह घर ले कर आया.

अड़ोसपड़ोस में जा कर उन दोनों ने गुजारिश की कि पड़ोसी रोजमर्रा का कुछ सामान उन से खरीद लें, लेकिन बहुत कम लोगों ने ही सामान खरीदने के लिए उन के घर तक आने की जहमत उठाई. बचे सामान में से कुछ खराब हो गया और बाकी राधा ने घर पर इस्तेमाल कर लिया.

उन की असली चिंता तो अभी भी सामने थी, रोजीरोटी की. वे जान गए थे कि घर पर दुकान खोलने की बात सोचना बेकार है, क्योंकि ग्राहक तो आएंगे नहीं वहां चल कर. कुछ सालों से बचत कर के जो पैसे जोड़े थे, वे अब खत्म होने को आए थे.

एक दिन सुरेंद्र का दोस्त अनवर उस से मिलने घर आया हुआ था. चाय पीते हुए उस का ध्यान  झुमकी के बनाए फूलदान पर चला गया. उस ने बताया कि उस के दफ्तर के पास इस तरह का सामान बेचने वाला बैठता है, जिस की खूब बिक्री होती है. वहां विदेश से घूमने आए सैलानी भी आते हैं. वे लोग इसे ‘पेपर मैशे’ से बना सामान कहते हैं.

अनवर की बात सुन कर राधा की आंखें चमक उठीं. वह सुरेंद्र से बोली, ‘‘क्यों न हम सजावट का सामान बना कर उसे ही बेचने की कोशिश करें?  झुमकी ने कितने आसान तरीके से इतनी सुंदर चीजें बनानी सिखाई थीं हमें. शायद यही हो हमारी समस्या का हल.’’

सुरेंद्र की परेशानी अनवर सम झता था, लेकिन दूर करने का उपाय नहीं मिल पा रहा था. उसे भी यह बात जंच गई. वह बोला, ‘‘आप लोग ऐसा कर सकते हैं, तो मैं आप की बात दफ्तर के पास दुकान लगाने वाले से करवा दूंगा. महेश नाम है उस का.’’

सुरेंद्र ने तुरंत हामी भर दी.

अनवर ने जल्दी ही महेश से सुरेंद्र को मिलवा दिया. महेश  झुमकी के हाथों से बना फूलदान देख कर बहुत प्रभावित हुआ. उस ने कहा कि अगर सुरेंद्र ऐसा ही सामान बना लेगा, तो वह सारा सामान उस से खरीद लेगा. वैसे भी उसे खरीदारी के लिए बहुत दूर जाना पड़ता है. इस से किराए पर बहुत खर्च होता है और सामान टूटने पर नुकसान भी हो जाता है.

महेश की शर्त यही थी कि नया बनने वाला सामान भी फूलदान की टक्कर का हो. बेचने की जिम्मेदारी उस पर होगी. इस में दोनों का फायदा ही होगा.

अगले दिन से ही राधा ने  झुमकी द्वारा सिखाई गई एकएक बात को याद करते हुए काम करना शुरू कर दिया. सुरेंद्र भी उस की मदद कर रहा था. उन्होंने कागज भिगो कर रख दिए. राधा को याद आया कि  झुमकी ने उसे कुट्टी कला के एक और रूप के बारे में भी बताया था, जिस में गुब्बारा फुला कर उस पर कागज की कतरनें गोंद से चिपकाते हुए तकरीबन 7 परतें बना दी जाती हैं. सूखने पर गुब्बारे को फोड़ कर उस ढांचे को बराबर 2 भागों में काट कर दीवार पर सजाने वाले मुखौटे बनाए जाते हैं.

राधा ने सुरेंद्र से कई बड़ेबड़े गुब्बारे बाजार से मंगवा लिए और उन को फुला कर एकएक कर कागज की परतें  चिपका दीं.

कागज की मोटी परतें सूख गईं, तो मुलतानी मिट्टी गूंद कर ढांचे पर आंख, नाक व होंठ बना दिए और उन्हें फिर सुखाने के लिए रख दिया. सूखने पर  पेंट के डब्बों से रंग ले कर उन को रंग दिया गया.

सुरेंद्र ने अपना दिमाग लगाते हुए बोरी के रेशों से मुखौटों की भौंहें व बाल बनाए और बेकार पड़े बिजली के तारों से कानों में कुंडल पहना दिए. अपने बनाए मुखौटे देख कर उन की खुशी का ठिकाना न रहा.

कुछ दिनों बाद पानी में भीगे कागज जब गल गए तो  झुमकी के बताए तरीके से उन दोनों ने मिल कर छोटेछोटे पक्षी, जानवर, फोटो फ्रेम, फूलदान, गिफ्ट बौक्स और सजावट की अनेक चीजें बना कर तैयार कर लीं.

उन चीजों के सूख जाने पर राधा ने पुराना और बेकार सामान जैसे आईना, चूडि़यां, बिंदी व बटन वगैरह ले कर उन को सजा दिया

महेश ने जब उन सब चीजों को देखा, तो बहुत खुश हुआ. उस ने सामान ले जा कर जब अपनी दुकान में रखा तो पाया कि बाकी सामान के मुकाबले सुरेंद्र से खरीदे गए सामान की ओर लोग ज्यादा खिंच रहे हैं. जल्द ही उस ने यह बात सुरेंद्र को बता कर और चीजें बनाने का और्डर दे दिया.

राधा और सुरेंद्र मन ही मन  झुमकी का धन्यवाद करना नहीं भूले. राधा जानती थी कि  झुमकी के पिता कुट्टी कला में माहिर थे. उन के साथ बचपन से काम करती आ रही  झुमकी का हाथ इतना सधा हुआ था कि उस से सीखने के बाद ही आज राधा बेजोड़ सामान तैयार कर पाई है.

इस बार राधा ने मूर्तियां, खिलौने, कटोरे, प्लेट और सजावट की अनेक चीजें बनाईं. इस बार रंगने का काम सुरेंद्र ने किया. उस ने पेंट करने के लिए ब्रश के अलावा पेड़ के पत्तों, भिंडी के कटे भाग व फूलों की पंखुडि़यों का इस्तेमाल भी किया.

महेश के सामान को देख कर दूसरे कारोबारियों ने भी सुरेंद्र से सामान खरीदना शुरू कर दिया. धीरेधीरे धंधा खूब चमकने लगा. घर का नया कमरा, जो उन्होंने दुकान का सामान रखने के लिए बनाया था, उस में अब कुट्टी कला की मदद से सामान बनने लगा था.

झुमकी का अहसान वे न तो भूले थे और न ही भूलना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपने इस नए कारोबार को ‘ झुमकी कला निकेतन’ नाम दिया.

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