किचन के एक साफ कोने में फर्श पर बिछाए अपने बिस्तर पर मधुवंती करवटें बदल रही थी. क्यों न करवटें बदले, युवा सपनों में डूबी आंखों में कैसे नींद आए जब बैडरूम से ऐसी आवाज़ें आ रही हों कि अच्छाभला इंसान सोते से जग जाए. वह दम साधे लेटी थी. उसे पता था कि अभी  नशे में डूबी नायशा फ्रिज से ठंडा पानी लेने आएगी या उस से उठा नहीं  गया तो मधुमधु चिल्लाएगी या नायशा का बौयफ्रैंड देवांश ही पानी लेने आएगा. अब एक साल में  मधुवंती इतना तो समझ गयी थी कि नायशा जम कर शराब पीने के बाद बौयफ्रैंड के साथ जीभर वह सबकुछ करती है जिसे न करने देने के लिए नायशा के गांव में रहने वाले पेरैंट्स ने उसे अपनी बेटी के साथ भेज दिया था. पर मधुवंती कैसे नायशा की लाइफस्टाइल में दखल दे सकती थी, वह है तो एक नौकर ही. क्या उस की इतनी हैसियत है कि नायशा को ज्ञान दे? इतने में उसे क़दमों की आहट सुनाई दी. उस ने अपनी आंखें बंद कर लीं. किचन में अंधेरा था. पर मधुवंती की आंखें अंधेरे में देखने की अभ्यस्त हो चुकी थीं. देवांश था. उस के डिओ की खुशबू मधुवंती को बहुत पसंद थी. मधुवंती का मन इस खुशबू से खिल उठा था. उस ने धीरे से आंखों को ज़रा सा खोल कर देखा. देवांश फ्रिज से पानी की बोतल निकाल रहा था. उस के  सुगठित शरीर पर मधुवंती की नज़रें टिकी रह गईं. देवांश चला गया. इतने में नायशा के खिलखिलाने की आवाज़ से मधुवंती फिर देर तक सो न सकी. फिर रोज़ की तरह नायशा के बैडरूम की तरफ ध्यान लगाएलगाए उस की आंख लग ही गई.

यह वाशी, मुंबई की एक बिल्डिंग का वन बैडरूम फ्लैट है. नायशा ने इस फ्लैट को मुंबई आते ही अपने कलीग्स की हैल्प से किराए पर  लिया है. वह मालेगांव की रहने वाली है और इस समय एक अच्छे पद पर काम करती है. उस के पेरैंट्स ने अपने घर में काम कर रही मेड की किसी दूर की रिश्तेदार मधुवंती को नायशा की देखभाल के लिए मुंबई साथ भेज दिया है. मुंबई में नायशा कैसे जीती है, इस की भनक उस के सीधेसादे पेरैंट्स को लग ही नहीं सकती. नायशा ने अपनी पढाई पुणे में रह कर की थी जहां उस के काफी बौयफ्रैंड्स रहे. अपनी आज़ाद लाइफ में जो सब से बुरी आदत उसे लगी है, वह है बेहिसाब शराब पीने की. दिन में औफिस, शाम होते ही कोई न कोई बौयफ्रैंड और शराब. बस, यही है नायशा की लाइफ.

मधुवंती हैरान होती है कि गांव की नायशा मुंबई में पहचान में भी नहीं आती. वहां वह इतनी सुशील, संस्कारी बन कर रहती कि लोग कहते कि लड़की हो तो ऐसी, अपने घर से बाहर रहने पर भी कोई बुरी आदत नहीं. वाह. अब मधुवंती मन ही मन हंसती है, उस ने तो अब तक लड़कों के ही ऐसे काम सुने थे, मूवीज में देखे थे लेकिन अब तो नायशा के रंगढंग उसे इतना हैरान कर चुके थे कि पता नहीं उस की भी कौन सी सुप्त इच्छाएं जागने को तैयार थीं.

सुबह मधुवंती ही सब से पहले उठी. फ्रैश हो कर नाश्ता और नायशा के टिफ़िन की तैयारी करने लगी. जब तक नायशा और देवांश सो कर उठे, वह काफी काम निबटा चुकी थी. उस ने दोनों को चाय का कप पकड़ा कर नायशा का टिफ़िन पैक कर के टेबल पर रखा. देवांश ने कहा, “यार नायशा, तुम्हारी बड़ी ऐश है. मधु सब काम संभाल  लेती है. मुझे तो सब काम करना पड़ता है. मधु, यार, तुम मेरे घर चलो,” कह कर देवांश मधु को देख कर मुसकराया तो मधु ने भी बड़ी अदा से उसे देखा और मुसकरा दी. नायशा ने देवांश को बनावटी डांट लगाई, “खबरदार, मधु पर नज़र डाली. वह कहीं चली गई, तो मैं तो मर ही जाऊंगी. अपने काम मुझ से होते नहीं, यह सच है. यार मधु, तुम इस पर ध्यान मत दो. इसे बढ़ावा  न दो. देवांश, मधु मेरी है, मेरी ही रहेगी.”

हंसीमज़ाक, छेड़छाड़ के साथ सुबह की चाय पी गई और देवांश अपने घर चला गया. वह थोड़ी दूर की ही बिल्डिंग में रहता था. नायशा भी औफिस के लिए तैयार होने लगी. नाश्ता करते हुए वह बोली, ”मधु, तुम्हारे साथ से मेरी लाइफ बहुत इजी रहती है, कोई काम नहीं करना पड़ता, थैंक यू, यार. तुम तो मेरी हमराज़ भी हो. मेरे घरवाले भी यही सोच कर खुश हैं कि मैं अकेली नहीं हूं. और सुनो, अगर रात देवांश मुझ से पहले आ जाए तो उस से खाना खाने को पूछ लेना. मेरी एक मीटिंग है, मुझे टाइम लग सकता है.”

मधु नायशा से 4 साल ही छोटी थी. गांव में उस के मातापिता उस की बड़ी 2 बहनों के विवाह के लिए परेशान थे. सो, वे लोग यही सोच कर तसल्ली कर लेते थे कि मधु फिलहाल जहां रह रही है, आराम से रह रही है. नायशा उसे  अपने घर भेजने के लिए अच्छेखासे पैसे भी दे देती थी.

मधु इस रोमांच से भर उठी थी कि देवांश नायशा से पहले आ सकता है. वह मन ही मन देवांश पर आसक्त थी. पर अपनी हैसियत याद कर के कोई भी गलत हरकत नहीं करना चाहती थी. देवांश को देखना उस के युवामन को खूब भाता. 7 बजे ही देवांश ने डोरबैल बजा दी. मधुवंती शाम से ही नहाधो कर साफ़सुथरे कपड़ों में सजी सी मन ही मन उस का इंतज़ार कर रही थी. सुंदर तो वह थी ही. देवांश आते ही सोफे पर ढह सा गया, बोला, ”नैश तो लेट आएगी न?”

”जी.”

मधुवंती हैरान हुई, जब वह जानता है कि नायशा लेट आएगी तो इतनी जल्दी क्यों आ गया. देवांश ने फिर उठ कर किचन में जा कर एक गिलास में थोड़ी शराब ली, बर्फ डाली और कहा, ”मधु, तुम ने कभी शराब पी है?”

”नहीं.”

”आओ, आज टैस्ट कर लो.”

”नहींनहीं, बिलकुल नहीं.”

”अरे, आओ न,” कहतेकहते देवांश ने अपना गिलास उस के मुंह से लगा दिया. घूंट भरते ही मधुवंती पीछे हटने लगी. देवांश उस के साथ थोड़ी नजदीकी बढ़ाते हुए आगे बढ़ने लगा. जैसे ही मधुवंती की कमर में देवांश ने हाथ डाला, डोरबैल हुई. देवांश तुरंत सोफे पर जा कर बैठ गया. नायशा आई थी, हैरान हो कर बोली, ”तुम जल्दी आ गए?”

”हां, मन नहीं लगता अब अकेले,” कहते हुए उस ने उठ कर नायशा के गाल पर किस कर दिया और मधु को देख कर शरारत से मुसकरा दिया. नायशा ने उस के रोमांस का आनंद उठाते हुए कहा, ”अरेअरे, मुझे हाथ तो सैनिटाइज़ करने दो. कोरोना के केस फिर बढ़ने लगे हैं.”

”अरे, अब क्या चिंता, हमारे  पास तो मधु है, लौकडाउन में लोग मेड के लिए रोते रह गए पर तुम ने तो आराम ही किया.”

”फ्रैश हो कर आती हूं. मेरे लिए भी एक पैग तैयार रखना, लाओ, एक घूंट पी ही लूं,” कह कर नायशा देवांश का पूरा गिलास खाली कर नहाने चली गई. वह हंसता हुआ किचन की तरफ जाने लगा. जातेजाते उस ने मधुवंती को जिन निगाहों से देखा, मधु रोमांचित हो उठी. वह डिनर की तैयारी करने लगी. अचानक देवांश से बोली, ”कुछ चीजें ख़त्म हो गई हैं, दीदी से कहना, अभी ले कर आई.”

नायशा का फ्लैट चौथी फ्लोर पर था. नीचे जा कर मधु ने थोड़ी सब्जी खरीदी. उस के पास इतना पैसा रहता था कि वह घर के सामान ला सके. वापस लौटते हुए वह बिल्डिंग के वौचमैन सुधीर से बातें करने लगी. वह भी उसी की उम्र का था और दोनों में 3 महीने से काफी नजदीकी आ चुकी थी.

मुंबई की सोसाइटी में जो वौचमैन ड्यूटी करते हैं, ज़्यादातर वे सब दूर राज्यों के छोटे गांवों से अकेले, बिना परिवार के आए होते हैं. एकएक रूम को कई लोग शेयर कर लेते हैं. सुधीर यहां दिन की ड्यूटी करता था और विमल रात की. दोनों ही वौचमैन से मधुवंती के नजदीकी संबंध बन चुके थे. आजकल इस सोसाइटी में अकेले रहने वाले बैचलर्स को फ्लैट किराए पर नहीं दिए जा रहे थे पर नायशा और मधुवंती को सब लोग बहुत शरीफ समझते थे, ये किसी को भी शिकायत का मौका नहीं देती थीं. नायशा के बौयफ्रैंड भी हमेशा चुपचाप आते, चुपचाप चले जाते. ये लोग साथ में कभी नहीं आतेजाते थे, इसलिए किसी की नज़रों में लड़कों का फ्लैट में आनाजाना ज़्यादा नहीं आ पाया था. नायशा के फ्लोर पर रहने वाले एक परिवार में बुजुर्ग दंपती ही थे. बाकी दोनों फ्लैट्स बंद रहते. सुधीर ने मधुवंती से कहा, ”कल दिन में आ जाऊं, तेरी मैडम औफिस जाएगी न?”

”आ जाना,” मधु ने शरारत से कहा, “और हां, आएगा तो थोड़ी मस्ती करेंगे, काफी सामान मैडम ने ला कर रखा है.”

”वाह, आता हूं,” सुधीर हंसा. आजकल नायशा के रंगढंग देख कर मधु भी  पूरी तरह वही सब करने लगी थी जो नायशा करती. ऊपर आने पर मधु ने देखा, देवांश और नायशा बैडरूम में बंद हो चुके थे. वह भी लाया हुआ सामान संभालने लगी. डिनर के समय ही दोनों बैडरूम से निकले. देवांश की आंखों की खुमारी देख मधु का मन उस की तरफ खिंचा. वह भी उसे ही देखता रहा. दोनों डिनर कर के, थोड़ी देर टी वी देख कर सोने चले गए. रात फिर वैसी ही थी, जैसी रोज़ होती थी.

देररात मधु की आंख एक झटके से खुली. उस के पास देवांश बैठा, उसे छू रहा था. वह झटके से उठ कर बैठी तो देवांश फुसफुसाया, “वह सो रही है. मधु, मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूं.”

नींद में डूबी मधु इस बात पर पूरी चौकन्नी हो गई, बोली, ”नहीं साब, आप अभी जाओ.”

”ठीक है, दिन में मिलता हूं.”

मधु को फिर नींद नहीं आई. उसे लगा, देवांश जैसा लड़का उस के पास आया है. वह अगर उसे थोड़ी ढील दे दे तो वह अपना जीवन बदल सकती है. सुधीर और विमल जैसे वौचमेन उसे जीवन में क्या देंगे. सब अपना टाइम पास ही तो कर रहे हैं, वह भी उन के साथ कौन सा सीरियस हो कर जीवन में आगे बढ़ने वाली है. ऐश तो देवांश के साथ ज़्यादा हो सकती है. उस ने बाकी की रात अपने भविष्य के बारे में सोचते हुए बिताई.

नायशा रोज़ की तरह शराब पी कर नशे में धुत सोई थी. वह सीधे सुबह ही उठती थी. अगली सुबह दोनों निकल गए तो मधु ने इंटरकौम से सुधीर को जल्दी आने के लिए कहा, सुधीर ने दूसरी बिल्डिंग के वौचमैन से कहा, ”मैं अभी आता हूं, तू इधर का भी ध्यान रखना.”

सब वौचमेन की आपस में खूब बनती थी.

सुधीर के साथ बैठ कर मधुवंती ने पहले थोड़ीथोड़ी शराब पी, फिर नायशा के बैड पर ही सारी दूरियां ख़त्म कर उसी के साथ बैठ कर खाना खाया. ऐसा वे कई बार करते. नायशा के बैड पर आज लेटते हुए वह कल्पना कर रही थी कि बहुत जल्दी देवांश भी उस के साथ यहां होगा. कई बार किसी वीकैंड पर नायशा और देवांश लोनावला या माथेरान चले जाते तो नायशा रात के वौचमैन विमल को भी ऐसे ही अपने पास बुला लेती. दोनों उस पर बुरी तरह मरते. अब मधुवंती गांव जल्दी जाना न चाहती. उसे शहरी आबोहवा, ये रंगढंग खूब अच्छे लगते. इस के कुछ ही दिनों बाद नायशा को एक रात के लिए पुणे जाना था, क्लाइंट मीटिंग थी. नायशा उसे सब निर्देश दे कर चली गई. रात 8 बजे देवांश आया. वह चौंकी नहीं. वह तो मन ही मन इस बात के लिए सजसंवर कर  तैयार थी. देवांश दीवाना सा उस का हाथ पकड़  कर प्रेम निवेदन करने लगा. वह सुंदर सपनों में डूबतीउतराती रही. फिर वही सब हुआ, जो होना ही था. देवांश वही था, वही बैडरूम, वही बैड, वही शराब के पैग. बस, नायशा की जगह मधुवंती थी जो इस समय खुद को नायशा की जगह पा कर अपनेआप को धन्य मान रही थी. धीरेधीरे यही रूटीन शुरू हो गया. दोनों बहुत जल्दी एकदूसरे में इतना डूबे रहने लगे कि अब तो कई बार मधुवंती ही नायशा के औफिस जाने के बाद देवांश के फ्लैट पर चली जाती. उस के घर की हर चीज की देखभाल अपने हाथों से करती. ऐसी बातें कब तक छिपतीं. एक रात नायशा की आंख खुल गई, देखा, देवांश बैड पर नहीं था. वह नशे में लड़खड़ाती लिविंगरूम में आई. सोफे पर देवांश और मधुवंती को जिस हालत में देखा, उस का नशा हिरन हो गया. ज़ोरज़ोर से चिल्लाने लगी. देवांश ‘सौरी नायशा’ कहता हुआ, अपने कपड़े ठीक करता हुआ, अपना सामान तुरंत ले कर फ्लैट से निकल गया. नायशा मधुवंती पर चिल्लाए जा रही थी. थोड़ी देर तो वह सुनती रही, फिर खुल कर मैदान में आ गई, बोली, ”मुझे जाने को कहोगी, दीदी, मैं चली जाऊंगी. कोई बात नहीं. करना फिर खुद सारे काम.  गांव जा कर आप की बोतलों का हिसाब सब को बताऊंगी न, तो देखना, कैसे आप के घरवाले आप को सुधारते हैं. खुद नशे में डूबी रहती हो, अपने घरवालों से इतने झूठ बोलती हो. मुझे रहना ही नहीं आप के साथ. मैं देवांश साब के घर में जा कर रह लूंगी. सोसाइटी वाले भी आप को ज़्यादा  दिन अकेले यहां रहने नहीं देंगे. आप की सारी बुरी आदतें सब को पता चल जाएंगी. मैं तो कल सुबह ही देवांश साब के घर चली जाऊंगी.”

नायशा सिर पकड़ कर बैठ गई, जिसे कम पढ़ीलिखी समझ कर अपने साथ नौकर की ही तरह रखा हुआ था, वह अब शेरनी की तरह गुर्रा रही थी. मधुवंती किचन में अपनी जगह जा कर लेट गई. नायशा सोफे पर सिर पकड़ कर बैठी थी. बुरी आदतों ने कहीं का न छोड़ा था उसे. इस से पहले जितने भी बौयफ्रैंड्स से रिश्ता ख़त्म हुआ था, उन का कारण कहीं  न कहीं आज़ादी के नाम पर कई बौयफ्रैंड्स से रिश्ते रखना और खूब शराब पीना था. लाइफ को बिलकुल फ्री हो कर जीने में यकीन रखने वाली नायशा को अभी कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मधु का क्या करे. उसे पास रखने में भी नुकसान थे, निकाल देने में भी. वह गांव जा कर उस के रहनसहन की सारी पोल खोल सकती थी. बहुत बुरी फंसी थी वह. मधु जाती, तो मधु से मिलने वाले आराम ख़त्म होने वाले थे. देवांश का साथ भी छूट गया था. नुकसान ही नुकसान हुआ था.

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