रविवार का दिन था. घंटी बजने की आवाज सुन कर मैं ने दरवाजा खोला. सामने समीर खड़ा था. वह पापा से मिलने आया था. आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका जा रहा था. पापा से बातचीत करने के बाद वह चला गया. यह बेहद खुशी की बात थी, पर पता नहीं मैं क्यों नहीं खुश हो रही थी. मैं नहीं चाहती थी कि समीर अमेरिका
जाए. वैसे तो समीर और मैं एकदूसरे को जानते थे और वह मुझे बहुत अच्छा भी लगता था. सब से खुशी की बात यह थी कि हम एक ही कालेज में पढ़ते थे. वह इस साल फाइनल ईयर का टौपर भी था. पापा भी उसी कालेज में प्रिंसिपल थे.

अमेरिका जाने से पहले समीर से एक बार मुलाकात हुई थी. वह बहुत खुश था. मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. मुझे ऐसा लग रहा था कि वह समझ जाए, पर वह नहीं समझा. पता नहीं, शायद समझ कर भी नासमझी दिखाई थी उस ने लेकिन प्यार कहां कुछ मांगता है, प्यार तो बस प्यार होता है.

वह बोल रहा था,”अरे नेहा, नाराज हो क्या?” मैं ने कहा,”नहीं,” तो उस ने अपने अंदाज में कहा,”अरे, मैं गया और अभी 2 साल में वापस आया. तब तक तुम अपनी पढ़ाई पूरी करो.”

मैं ने कहा,”मुझे भूलोगे तो नहीं न?”

वह बोला,”क्या बात करती हो नेहा, तुम भी कोई भूलने की चीज हो. तुम मुझे हमेशा याद आओगी. पहले मैं उस लायक बन जाऊं कि सर से तुम्हारा हाथ मांग सकूं,” समीर की यही बातें मेरी उम्मीद को और पक्का कर गईं. एक उम्मीद ही तो होती है जो इंसान को जीने का हौसला देती है और जिस के बल पर वह बरसों जी सकता है.

एक नए जोश के साथ मैं फिर से पढ़ाई में बिजी हो गई. मेरा सैकंड ईयर पूरा हुआ. फिर फाइनल ईयर पूरा हुआ. मैं और पढ़ना चाहती थी. एक से एक अच्छे रिश्ते आ रहे थे पर मुझे शादी नहीं करनी थी. मैं पढ़ना चाहती थी. मुझे किसी तरह से समीर के आने तक का समय निकालना था. मैं मम्मी को बारबार बोल रही थी कि मुझे शादी नहीं करनी है. लेकिन पापा और सारे रिश्तेदारों का कहना था कि शादी समय पर हो जानी चाहिए, नहीं तो अच्छेअच्छे रिश्ते हाथ से चले जाते हैं. दादी उधर राग अलाप रही थीं,”बेटा, मेरे जाने से पहले शादी कर दे. नेहा को दुलहन बना देखना चाहती हूं फिर सुकून से जा सकूंगी.”

मैं ने कहा,”दादी, तुम्हें कुछ नहीं होगा, 2 साल मुझे और पढ़ लेने दो फिर तुम जिस से कहोगी उस से शादी कर लूंगी. मगर कोई मानने को ही तैयार नहीं था और न कोई मेरा सुनने वाला. मां मेरी बात को समझ सकती थीं पर उन की भी किसी ने नहीं सुनी.

मैं ने मम्मी से कहा,”मैं समीर से शादी करना चाहती हूं, तो मम्मी ने उलटा मुझे ही समझाया कि बेटा, वह अगर नहीं लौटा तो हम क्या करेंगे? उस ने वहां पर ही किसी से शादी कर ली तो तुम क्या करोगी? तुम इतने इंतजार के बाद क्या करोगी? मैं ने कहा कि ऐसा नहीं होगा और अगर ऐसा कुछ होता है तो मैं शादी हीं नहीं करूंगी. क्या लड़कियां अकेली नहीं रह सकतीं? अगर कोई लड़की पढ़ीलिखी हो, अपने पैरों पर खड़ी हो तो अकेली भी इस समाज से लड़ सकती है.

मां ने कहा,”नेहा, ऐसा नहीं है. समाज को क्या मुंह दिखाएंगे? हमारा समाज हजारों प्रश्न खड़ा करेगा. किसकिस को उत्तर देंगे और पापा और दादी तो सुनेंगे ही नहीं. उचित यही है कि तुम पापा और दादी की बात मान लो.”

फिर मैं ने पापा को मनाने की कोशिश की और कहा,”पापा, मैं 2 साल शादी नहीं करूंगी. मुझे पीजी कर लेने दो फिर मैं शादी करूंगी,” मैं ने किसी तरह से अपनी शादी 2 साल न करने के लिए पापा को राजी कर लिया. अपनी पढ़ाई पूरी की. बीचबीच में समीर से बातें होती रहती थीं. मैं ने पूछा कि कब आओगे समीर? तो उस ने अभी और 2 साल का वक्त मांगा. इतने दिन और रुकना असंभव था क्योंकि पापा रुकने वाले नहीं थे. उन्होंने अच्छा रिश्ता देख कर मेरी शादी तय कर दी. राहुल बहुत नेक इंसान थे. पढ़ेलिखे थे. मुझे शादी करनी पड़ी.

राहुल एक जानेमाने डाक्टर थे. उन को कई बार औपरेशन के लिए बाहर जाना पड़ता था. कभी दिल्ली, कभी मुंबई. वे रिसर्च के काम में भी व्यस्त रहते थे. मैं घर में अकेली बोर हो जाती थी. फिर मैं ने भी जौब करने का निर्णय ले लिया. धीरेधीरे 2 साल कब बीत गए पता भी नहीं चला. मैं जौब में मस्त रहने लगी और राहुल अपने काम में खूब बिजी रहते. कितनेकितने दिनों तक तो हम लोग मिलते भी नहीं थे. इस तरह हमारे आपस की दूरियां बढ़ती गईं. उसी समय समीर भी भारत लौटा था. मैं बहुत खुश थी. हम लोग आएदिन मिला करते थे. वह यहां एक कंपनी खोलना चाहता था. वह हर बात में मेरी राय लेता. कभीकभी मैं जब बहुत उदास हो जाती तो समीर को फोन करती. वह प्यार से मेरी बात सुनता और मुझे बोलता कि ज्यादा टैंशन मत लो. जो हुआ सो हुआ. हम अब एक अच्छे दोस्त तो बन कर रह ही सकते हैं न…

लेकिन पता नहीं मैं क्यों उस के दोस्ती को दोस्ती नहीं बना कर रखना चाहती थी. वह तो मेरा ख्वाब था. समीर को अपने पति के रूप में देखना चाहती थी. वह कभी भी मुझ से नाराज नहीं होता. मेरी बात को अच्छे से सुनता और मेरी फीलिंग्स भी समझता.

अब मैं ज्यादा खुश रहने लगी थी. मुझे औफिस के बाद उस का साथ बहुत अच्छा लगता था. शायद वह भी मेरे साथ अच्छा महसूस करता था. मेरा इंतजार शायद खत्म हुआ था, पर यह भी सच था कि मैं अब वह नेहा नहीं थी जिस पर समीर का पूरा अधिकार हो, फिर भी ऐसा कौन सा हमारे बीच में एक रिश्ता था जो हमें जुदा होने से रोकता था. मेरा भी एक घर था. मैं भी अपने दायरे को नहीं लांघ सकती थी. फिर भी समीर से अलग होना बहुत तकलीफ देता. समीर भी मेरा साथ चाहता था.

राहुल कभीकभी तो 2-3 दिनों के बाद घर लौटते थे. हां, उन का काम था, उन की प्रसिद्धि थी पर इन सब के बीच मैं भी तो थी. शायद इतने सब टैंशन के बीच वे मुझे समय ही नहीं दे पाते थे. उन्हें इस बात का दुख भी था लेकिन वे अपने काम के आगे कुछ भी सोच नहीं पाते थे. मैं भी कुछ पल उन के साथ बिताना चाहती थी. कुछ अपने मन की बात उन्हें बोलना चाहती थी लेकिन वे सुनना ही नहीं चाहते थे. फिर दिनोंदिन दूरियां बढ़ती गईं. मैं ने जौब छोड़ दिया था और समीर के साथ ही काम करने लगी थी. समीर के साथ बिताए लम्हों को याद कर के बस उस में ही खोई रहती.

कई बार जब राहुल घर में रहते थे तब वे मेरा साथ चाहते थे लेकिन मैं अपने काम में व्यस्त रहती थी. मेरी और समीर की दोस्ती का उन को पता चल गया था. वे नहीं चाहते थे कि मैं समीर के साथ काम करूं. मैं सोचती थी कि राहुल खुद डाक्टर हैं लेकिन घर में रहने वाले मरीज को ही नहीं देख पाए कि उस की बीमारी क्या है? अब वे मेरा साथ चाहते थे, मुझे खुशियों से भर देना चाहते थे. मगर जिंदगी एक ऐसे मोड़ पर खड़ी थी कि मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या करूं और क्या नहीं…

समीर से मिलनाजुलना अब राहुल को पसंद नहीं था. एक दिन समीर अमेरिका चला गया. मैं समझ नहीं पाई कि उस ने ऐसा क्यों किया. उस का मैसेज आया था, जिस में उस ने लिखा था,’नेहा, जब कभी जिंदगी में किसी चीज का सल्यूशन नजर न आए तब शायद दूरियां बनाना ही उचित होता है. दुख तो बहुत होता
है, लेकिन जो भी होता है सब के लिए अच्छा होता है और हम को जो रास्ता दिखता है वह सही जगह पहुंचाता है. इसलिए कभीकभी दूरियां भी बहुत कुछ दे जाती हैं…’

मैं मायूस हो कर रास्ते से घर लौट रही थी. तभी राहुल का फोन आया,”तुम जल्दी घर आ जाओ. मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हूं.”

घर जा कर देखा तो उन्होंने मेरे लिए एक नईनवेली दुलहन जैसा घर सजा रखा था. मुझे देखते ही अपने आगोश में ले कर कहने लगे,”नेहा, मुझे अपने रिसर्च के लिए बैस्ट अवार्ड मिला है और सब तुम्हारी ही वजह से है. तुम नहीं होतीं, तो शायद मैं यह नहीं कर सकता था. यह अवार्ड तुम्हारे लिए है…”

मैं मन ही मन सोच रही थी कि यह मैं क्या कर रही थी? समीर मेरा अतीत था मगर राहुल मेरा वर्तमान. उस दिन उन्होंने मुझे रानी की तरह रखा. जब हम सोने के लिए गए तो हमारे बीच में एक अलग ही रिश्ता था. पता नहीं, कौन किस का गुनहगार था. राहुल ने कहा,” नेहा, मैं ने तुम्हें बहुत दुख दिया. प्लीज, मुझे माफ कर दो. यह सब तुम्हारे लिए ही था. आज से हमारी नई जिंदगी होगी और हर खुशी तुम्हारी होगी और सच, उस दिन हम दोनों सही रीती से एकदूसरे के हो गए. अब तो जिंदगी में खुशियां ही खुशियां थीं. जल्दी ही घर में फूल खिलने वाला था जो हमारी खुशियों को और चार चांद लगाने वाला था. कभीकभी समीर का फोन आता था. लेकिन अब हम एक दोस्त की तरह थे. उस ने अच्छी दोस्ती निभाई थी और एक अच्छे दोस्त की तरह मुझे संभाला और सही रास्ता दिखाया था. अब मैं अपनी जिंदगी से खुश थी. समीर को ले कर कभीकभी सोचती हूं कि कुछ लोग जिंदगी में आते हैं और सही राह दिखा जाते हैं.

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