मौडर्न, डिजाइनर लहंगाचुन्नी में वह किसी राजकुमारी जैसी लग रही थी, सब रस्में हुई थीं, गोयल दंपती ने इतने उपहार दिए थे कि वैशाली समेटतीसमेटती थक गर्ई थी, वैशाली को एक डायमंड नेकलेस दिया था, उसे अजीब लग रहा था, वह तो इतने दिन से कोर्ई खुशी महसूस नहीं कर पा रही थी, बहू की अमीरी का डर उस के दिल में बुरी तरह बैठ गया था, जो लड़की अपने घर में किचन में पैर नहीं रखती, जिस के एक बार कहने पर मातापिता ने यह रिश्ता कर लाखों रुपए आज सगाई में खर्च कर दिए, इतने लाड़प्यार में पली लड़की कैसे 4 कमरे के इस फ्लैट में उस के साथ एडजस्ट करेगी, वो तो किचन के सारे काम अपनेआप करती है, एक फुलटाइम मेड है, पर अगर मेड नहीं आती तो झाड़ूपोंछा, खाना भी खुद कर लेती है, अब अमीर बहू आएगी तो क्या होगा. वो बैठी रहेगी और वह सारे काम करती रहेगी, यह भी तो सहन नहीं होगा, फिर क्या होगा, उसे गुस्सा आएगा, घर में कलह होगा, महेश और विपिन तो औफिस चले जाएंगे, अंजलि भी तो इंजीनियर है, अभी तो कहती है, सोचा नहीं हैै क्या करेगी, मन करेगा तो अपने डैड का बिजनैस देखेगी, आज तो वह सगाई में अपने समधियों का वैभव देखती रह गई. उस के सारे परिचितों को अंजलि बहुत पसंद आई थी. अब तक विपिन भी आ चुका था, कितने ही खयालों में डूबतेउतरते उस की आंख लग गई थी.

अगले दिन से रोज के काम शुरू हो गए, साथसाथ शादी की तैयारियां भी, अंजलि अकसर वैशाली से मिलने आ जाती, वैशाली को अच्छा लगता, अपनी शौपिंग के बारे में बताती रहती. मि. गोयल ने एक फाइवस्टार होटल शादी के लिए बुक कर दिया था.

एक दिन अंजलि संडे को वैशाली से मिलने आई हुर्ई थी, कहने लगी, ‘‘आप को पता है मम्मा, मम्मी मुझे बारबार किचन में कुछ काम सीखने के लिए कह रही हैं, मैं किचन में जाती हूं, और फिर तुरंत निकल आती हूं, क्या करूं?’’ वहीं बैठे महेश और विपिन हंस पड़े, विपिन कहने लगा, ‘‘मां, आप का क्या होगा, इस के बस का तो कोई काम नहीं है.’’

वैशाली मन मार मुसकुरा दी, मन में गुस्सा तो तीनों पर आया, इसे कुछ नहीं आता तो हंसने की क्या बात है इस में.

विवाह का दिन आ गया, बहुत ही भव्य तरीके से विवाह संपन्न हुआ और अंजलि दुलहन बन कर घर आ गई, महेश और वैशाली के सारे रिश्तेदारों, पड़ोसियों, किट्टी मेंबरों को गोयल दंपती ने इतने भारी लिफाफे पकड़ाए कि महिलाएं तो कह उठी, ‘‘यह कहां की राजकुमारी आ रही है तुम्हारे घर, भई, नखरे उठाने के लिए तैयार हो जाओ.’’

सब मेहमान एकएक कर चले गए. अंजलि अपनी चीजें वैशाली को दिखा रही थी, हर चीज एक से एक महंगे ब्रांड की, अचानक अंजलि ने वैशाली के गले में बांहें डाल कर कहा, ‘‘मम्मा, आप ने मुझे जो भी चीजें दी हैं, मुझे वे सब से अच्छी लगी, थैंक्यू मम्मा.’’ वैशाली हंस पड़ी उस के भोले से चेहरे पर छाई चमक को देख कर.

अब महेश ने औफिस ज्वाइन कर लिया था, विपिन अभी छुट्टी पर था. विपिन आर अंजलि काफी देर में सो कर उठते. एक दिन महेश कहने लगे, ‘‘वैशाली, बच्चों को मत उठाना, उन के जीवन का यह अनमोल समय है, फिर तो जिम्मेदारियां आ जाती हैं, हम उन्हें डिस्टर्ब नहीं करेंगे,’’ फिर पूछा, ‘‘बच्चों का हनीमून पर जाने का क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘मिसेज गोयल शायद उन्हें स्विट्जरलैंड भेजने की बात कर रही थी, पैसा है जहां चाहे भेजें बेटी को, आज दिन में पता करती हूं कि क्या प्रोग्राम है.’’

10 बजे के आसपास अंजलि और विपिन उठे. अंजलि ने ‘गुडमार्निंग मम्मा’ कहते हुए वैशाली के पैर छुए, तो वैशाली को बहुत अच्छा लगा, फिर अंजलि ने बाथरूम की तरफ जाते हुए कहा, ‘‘मम्मा, मैं नहा कर आती हूं, नाश्ते में क्या है, बड़ी भूख लगी है.’’

पीछे से विपिन की आवाज आई, ‘‘मम्मामम्मा छोड़ो, नहा कर मां के साथ किचन में देखो कि नाश्ते में क्या है,’’ लेकिन अपनी नईनई बहू का मम्मामम्मा करना वैशाली के मन को तृप्त कर रहा था, लग रहा था एक बेटी है घर में, जिस पर उस का दिल अपार स्नेह लुटाने के लिए तैयार है. बेटी पाने की कसक मन में ही रह गई थी, जो अब बहू के मुंह से मम्मामम्मा सुनने पर पूरी होती हुई लग रही थी.

वैशाली ने बहूबेटे को प्यार से नाश्ता करवाते हुए पूछा, ‘‘बेटा, कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम है क्या?’’

जवाब अंजलि ने दिया, ‘‘मम्मा, अभी आप के साथ टाइम बिताएंगे, कुछ दिन बाद शायद कहीं जाएंगे.’’

इतने में मेड लतिका भी आ गई. वैशाली घर की साफसफाई करवाने लगी. अंजलि ने न्यूजपेपर उठा लिया. विपिन ने अंजलि को मां का हाथ बंटाने का इशारा किया, जिसे वैशाली ने देख लिया. वह कहने लगी, ‘‘रहने दो बेटा, मैं कर लूंगी.’’

अंजलि चहक उठी, बोली, ‘‘आई लव यू, मम्मा.’’

वैशाली को हंसी आ गई, कितनी सरस और सहज भी है यह लड़की, जो मन में आता है बोल देती है. इतने में अंजलि ने अपनी मम्मी को फोन मिला दिया था और वैशाली की तारीफों के पुल बांध दिए थे.

मई का महीना था. इस महीने में मुंबई में अधिकतर मेड छुट्टी पर गांव चली जाती हैं, उन की जगह थोड़े दिन काम करने के लिए दूसरी मेड तैयार नहीं होती, लतिका ने भी बताया कि वह जा रही है, वैशाली परेशान हो गई. महेश भी बोले, ‘दूसरी ढूंढ़ लेते हैं,’ वैशाली ने कहा, ‘‘मिलती कहां है आजकल, एक तो शादी के घर में मैं अभी सामान समेट नहीं पार्ई हूं, कैसे करूं सब.’’

महेश हंसे, ‘‘अब तो तुम्हारी बहू भी है हाथ बंटाने के लिए.’’

‘‘देख नहीं रहे हो उसे एक हफ्ते से, मम्मामम्मा सारा दिन करती है, लेकिन काम के समय या तो सो जाती है या मोबाइल पर चिपकी रहती है या फिर अपनी मम्मी से मिलने चली जाती है. और उसे तो कोई काम मुझ से कहा भी नहीं जाता, अपने घर में उसे कोई काम नहीं करना पड़ा. अब कैसे उसे इतनी जल्दी किचन में ले जाऊं.’’

लतिका चली गई, इस के दो दिन बाद ही वैशाली बाथरूम से जैसे ही नहा कर बाहर आई, फर्श भी शायद गीला था और पैर भी, बुरी तरह फिसली और चीख निकल गई. महेश औफिस जा चुके थे, विपिन अपनी कार से उसी समय मां को डाक्टर के यहां ले गया. अंजलि घर पर ही रुकी. वैशाली को दर्द में देख उस की आंखों से आंसू बह निकले, एक्सरे हुआ, स्लिपडिस्क की वजह से डाक्टर ने वैशाली को बेडरेस्ट बता दिया, तो पहले से दर्द में परेशान वैशाली और परेशान हो गई, लतिका भी छुट्टी पर थी, क्या होगा अब, वैशाली घर पहुंची तो अंजलि वैशाली के गले में बांहें डाल कर उसे पुचकारती हुई बोली, ‘‘डोंट वरी, मम्मा, मैं हूं न.’’

यह सुन कर विपिन हंसते हुए बोला, ‘‘तुम तो रहने दो.’’

अंजलि ने उसे घूरते हुए कहा, ‘‘मम्मा, आप बस आराम करो, मैं सब देख लूंगी.’’

वैशाली को इस दर्द में भी मन ही मन हंसी आ गई. सोचा, इसे कुछ और आता हो या न आता हो, अच्छी बातें करना आता है. अंजलि ने वैशाली को बेड पर लिटाया और कहा, ‘‘आप लेटो, मैं नाश्ता बना कर लाती हूं, फिर आप दवाई लेना.’’

विपिन ने कहा, ‘‘लेट जाओ मां, इस के बनाए नाश्ते के लिए अपनेआप को तैयार कर लो.’’

‘‘चुप रहो,’’ विपिन को कहती हुई अंजलि किचन में चली गई. थोड़ी देर में बड़ी अच्छी तरह से ट्रे सजा कर लाई, ‘‘मम्मा, नाश्ता.’’

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