देश भर में आटो रिक्शा इस्तेमाल करने वालों को एक बड़ी मुसीबत यह रहती है कि आटो वाले इस तरफ कभी नहीं जाना चाहते जिधर सवारी चाहती है और दूसरी दिक्कत होती है कि मीटर या तो होते ही नहीं या ओवर बात करते हैं. इस के लिए दोषी हमेशा आटो ड्राइवरों को ठहराया जाता है और उन की पूरी कोम को मन ही मन 20 गालियां दे दी जाती हैं.

शहरों को ङ्क्षजदा रखने वाली यह सेवा देने वाले बेइमान हैं तो इस का जिम्मेदार इन के उन पर सारा सिस्टम है. शहर में कोई भी आटो बिना परमिट के नहीं चल सकता और यह परमिट हर साल रिन्यू कराना पड़ता है. सुप्रीम कोर्ट ने न जाने किस वजह से शहर में आटो की संख्या पर सीधा लगा रखी है जो दिल्ली में 1 लाख है. परमिट इशू करने वालों के लिए यह सीधा और हर साल रिन्यूअल एक वरदान है, लक्ष्मी का बेइमानी की सोने की मोहरे देने वाला है.

इस परमिट को पाने के लिए ढेरों रुपया चाहिए होता है. शहर बढ़ रहा है पर परमिटों की संख्या नहीं तो पुराने परमिटों की जमकर बिक्री होती है. जो परमिट होल्डर मर जाए उस का परमिट दूसरे के नाम करने के 15-20 लाख तक लग जाते हैं जिस में ये मुश्किल से 10000 रुपए मृत होल्डर ने परिवार को मिलते हैं.

उवर ओला ने इन नियमों को ताक पर रख कर टैक्नोलौजी के बल पर टैक्सियां तो उतार दी पर वे आटो की संख्या कहीं भी नहीं बढ़वा पाए. बढ़ते फैलते शहरों की जरूरत को हट करने के लिए इस सॢवस के लिए तो सरकार को सब्सिडी देनी चाहिए पर सरकार और सरकार के मुलाजिम लगभग पूरे देश में पैसा बनाते है. यही पैसा आटो रिक्शा वाले सवारियों से बसूलते हैं और इस सॢवस को बहुत नाकभौं ङ्क्षसकोड़ कर लिया जाता है.

आटो रिक्शा अगर मैले, टूटे, बदबूदार है तो इसलिए कि सरकारी अगला जिस में ट्रांसपोर्ट अर्थारिटी से ले कर नुक्कड़ का ट्रैफिक पुलिसमैन शामिल हैं, नियमों के नाम पर भरपूर कमाई करते है और आटो रिक्शा वालों के पास वह पैसा नहीं बचता जो बचाना चाहिए.

आटो रिक्शा ड्राइङ्क्षवग में वैसे भी 50 प्रतिशत औरतों को आना चाहिए ताकि औरतें उन के साथ चलने में उचित समझें. आज औरतों के लिए यह व्यवसाय सहज सुलभ है जिस में वे अपनी मर्जी के घंटों के साथ काम कर सकती हैं और घरों की घुटन भरी सांस से बच सकती है. वे सडक़ों, टै्रफिक से जूझ सकती है और ट्रांसपोर्ट अर्थोरिटियों की माफियानुमा जंजीरों को शायद, नहीं तोड़ सकतीं और इसीलिए कम औरतें ही इस लाइन में आ रही हैं. कभीकभार बड़े मान से औरतों को परमिट दिए जाते है पर लगता है सही ही वे बिकबिका जाते.

आटो रिक्शा सॢवस औरतों के लिए एक बहुत जरूरी सेवा है जो उन्हें घरों की कैद से निकाल सकती है और जब तक यह ठीकठाक न हो, शहर सुरक्षित नहीं होंगे पर शहरों के मालिकों के लिए यह साॢवस वह दुलारू गाय है जो दान में पंडित जी को मिली जिसे छुए और फिर सडक़ों पर छोड़ दो.

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