2020 में दिल्ली के उत्तर पूर्व इलाकों में हिंदू मुस्लिम दंगे हुए और मुसलिमों की बहुत सी संपत्तियां जलाई गई. मजेदार बात यह है गिरफ्तार भी ज्यादातर मुसलिम ही हुए और इस दंगे को भडक़ाने वालों में से एक कपिल मिश्रा को अब भारतीय जनता पार्टी की दिल्ली शाखा का उपाध्यक्ष बना दिया गया है और सरकार लगातार गिरफ्तारों को जेल में रख रही है.

धर्म के नाम पर कुरबानी कोई नई बात नहीं है. हर काल में हर धर्म के अंधभक्तों ने दी है ताकि धर्मों को चलाने वालों का पाखंड बना ही नहीं रहे, फलदाफूलता भी रहे. हर समाज में धर्म के नाम पर उकसाया गया पर धर्म के मुख्य केंद्र आमतौर पर बचे रहे. मंदिर, मसजिद, चर्च, गुरूद्वारे, मठ, आश्रम हमेशा बचे रहे. धर्म के नाम पर उकसा कर मारने वालों को कहा यही जाता रहा कि आम विधर्मी को मारो, आम विधर्मी की औरत का बलात्कार करो, आम विधर्मी की लड़कियों को अगवा कर जीत की निशानी बना कर गुलाम बनाओ.

हर मामले में अंतिम शिकार औरतें ही होती हैं. धर्म को सब से बड़ी सौगात औरतें देती हैं पर सब से बड़ी शिकार भी वही ही होती है. धर्म इस कदर रीतिरिवाजों, किस्से कहानियों से जकड़ लेता है अपने ही धर्म की औरतें धर्म का आदेश पूरी तरह न मानने वाली औरतों को दोषी मान लेती हैं.

आज देश में वह दौर फिर आ गया है. गृह युद्ध तो नहीं हो रहा है पर धर्म युद्ध के निशान सारे देश में दिखने लगे हैं प्रचार स्तंभ ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केरला स्टोरीज’ जैसी अतिश्योक्ति से भरी कहानियों को दोहराता रहता है. धर्मेंदी मीडिया जिस ने  शक कर तबलीगियों को कोविड फैलाने के लिए जिम्मेदार सुबूतों सहित ठहरा दिया था. धर्म प्रचार और धर्म की खाई खोदने में लगा है. इस खाई में औरतें मर रही है.

मणिपुर हो या हरियाणा का नूंह, या उत्तर प्रदेश के आतिक के घर, हर धाॢमक विवाद के बाद आफत औरत की होती है कि वह कैसे बच्चों की रोटियों का इंतजाम करें, कैसे कपड़े धोए, कैसे खाने का इंतजाम करे. औरतों का कोई धर्म लंबाचौड़ा हक नहीं देता पर शिकार बनती हैं तो मुंह पर टेप लगा लेता है. घर टूटते या जलते हैं तो छत का इंतजाम औरतों को करना होता है.

अफसोस यही है कि पढ़ीलिखी समझदार औरतें भी धर्म की इस चालबाजी को नहीं समझा पा रहीं. अमेरिका में चर्च के आदेश पर गर्भपात कराने पर प्रतिबंध लगाने में औरतें आगे है, भारत में विधवाओं को अछूत मानने में औरतें ही आगे हैं.

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