हा में आई कमाल अमरोही की फिल्म ‘पाकीजा’ में मशहूर शायर कैफ भोपाली ने मीना कुमारी और राजकुमार से यह गाना गवाया भी था कि ‘चलो दिलदार चलो चांद के पार चलो… हम हैं तैयार चलो…’ सोशल मीडिया पर यह गाना वायरल भी खूब हुआ. जैसे ही चंद्रयान-3 ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड किया तो साबित यह हुआ कि सपने देखते तो साहित्यकार हैं पर उन्हें सच कर दिखाने का माद्दा सिर्फ वैज्ञानिकों में ही होता है.

वैज्ञानिक उपलब्धियों का श्रेय लेने की होड़ तो कुछ इस तरह थी मानो किसी हाट में टमाटर लुट रहे हों. इस की शुरुआत 20 अगस्त से ही शुरू हो गई थी. देशभर के मंदिरों में पूजापाठ, यज्ञ और हवनों का दौर था. कई जगह तो शिव के अभिषेक भी हुए जिन के गले में चंद्रमा टाई की तरह लटका रहता है. फिर 21, 22 और 23 अगस्त आतेआते तो लोग पगला उठे.चंद्रमा हमारे लिए आस्था का विषय रहा है. उस के नाम पर व्रत, तीज, त्योहार और दानदक्षिणा बेहद आम हैं.

अब इस की पोल खुलने जा रही थी तो धर्म के दुकानदार घबरा से उठे. लिहाजा उन्होंने भजनकीर्तन कर यह जताने की कोशिशों में कोई कमी नहीं छोड़ी कि वैज्ञानिक तो माध्यम मात्र हैं. दरअसल, में ईश्वर ऐसा चाहता है और बिना उस की परमिशन के चांद को छू पाना नामुमकिन है. यह और बात है कि चंद्रयान की सफलता के आयोजनों में भी दोनों हाथों से दक्षिणा बटोरी गई.

भले ही सालों पहले कोई नील आर्मस्ट्रांग चांद पर उतरा था लेकिन अब हमारी बारी थी और बगैर हरिइच्छा के यह या कोई और मिशन कामयाब हो जाए ऐसा हम होने नही देंगे तो चंद्रयान-3 यों ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड नहीं कर गया बल्कि इस के लिए भक्तों ने 72 घंटे बड़ी मेहनत की. पूजापाठ का हिस्सा क्योंदेश के गलीमहल्लों तक में लोग इकट्ठा थे. बहुतों को तो यह भी नहीं मालूम था कि वे क्यों पूजापाठ का हिस्सा बने हैं. ये वे लोग हैं जो कहीं भी कभी भी उस मंदिर के प्रांगण में हाथ जोड़े जा खड़े होते हैं जहां से जय जगदीश हरे की आवाज आ रही होती है.

इन्हें नहीं मालूम कि लैंडर और रोवर किस बला के नाम हैं. इन्हें यह जरूर मालूम है कि अक्षत कब चढ़ाए जाते हैं और स्वाहा कब बोला जाता है. गलियोंनुक्कड़ों तक के मंदिर आबाद हो उठे.काशी, उज्जैन, मथुरा, वृंदावन, प्रयागराज, नासिक, हरिद्वार, ऋषिकेश सहित अयोध्या में भी स्पैशल अनुष्ठान हुए. वैज्ञानिकों की मेहनत पर भगवान पानी न फेर दे इस के लिए फायर ब्रैंड साध्वी ऋतंभरा ने मथुरा में कई बार हनुमान चालीसा का पाठ किया तो अयोध्या में तपस्वी छावनी के जगतगुरु आचार्य परमहंस के नेतृत्व में चारों वेदों की ऋचाओं का पाठ साधुसंतों ने किया.

इस पर भी जी नहीं भरा तो महामंत्र और विजय मंत्र का भी पाठनवाचन किया गया.श्रेय लेने की होड़छुटभैयों से ले कर ब्रैंडैड मंदिरों में हर कैटेगिरी के साधुसंतों ने ऐसा समां बांधा, इतना हल्ला मचाया कि एक बार तो लगा कि कहीं सचमुच में भगवान खासतौर से कल्कि अवतार जिस की जयंती कुछ दिन पहले ही मनाई गई थी. धरती पर आ कर इन भक्तों के पांव यह कहते न पकड़ ले कि मु   झे बख्शो मेरे बच्चो, चंद्रयान-3 सफल होगा इस का मैं वरदान देता हूं.

सारा श्रेय सनातनी ही ले जा रहे हैं यह खयाल आते ही मुसलिम धर्मगुरु भी जंग के इस मैदान में कूद पड़े. जगहजगह मसजिदों में विशेष नमाज होने लगी. इस से आम मुसलमानों में भी जोश आया कि देश हमारा भी है और कहीं ऐसा न हो कि कल को हमें इस बात पर भी न लताड़ा जाने लगे कि तुम ने तो चंद्रयान-3 की कामयाबी के लिए नमाज तक नहीं पढ़ी इसलिए तुम देशभक्त नहीं हो. दूसरा मकसद ज्यादा अहम था कि हमारा अल्लाह भी तुम्हारे भगवान से कमतर करिश्माई और रसूखदार नहीं.एक दिन में ही पूजापाठ का यह रोग कोरोना वायरस से भी ज्यादा फैला.

जैन मंदिरों में पूजापाठ हुआ, गुरुद्वारों में अरदास का दौर चला. केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी इस बाबत खासतौर से दिल्ली के गुरुद्वारे बंगला साहिब गए. और तो और रांची में आदिवासियों ने अपनी आराध्य सरना मां से प्रार्थना की. कुछ गिरिजाघरों में भी प्रार्थना की गई.हम भी पीछे क्यों रहेंयोग गुरु बाबा रामदेव ने भी बहती गंगा में हाथ धोते हुए हरिद्वार में हवन कर डाला.

अच्छा तो उन का यह बताना न रहा कि चंद्रमा पर इतनी दुर्लभ जड़ीबूटियां पाई जाती हैं जो संजीवनी से भी ज्यादा करामाती और कारगर होती हैं. जैसे ही चांद पर आवाजाही आम होगी तो वे और बालकृष्ण वहां जा कर इन्हें लाएंगे और पतंजलि चांद की जड़ीबूटियों से बने प्रोडक्ट लौंच करेगी.माहौल स्कूलकालेजों में भी गरमाया जहां शासन के आदेश पर छात्र और अध्यापक टीवी स्क्रीन के सामने बैठे समोसा कुतरते अगली आइटम का इंतजार कर रहे थे जो 23 अगस्त को ठीक 6 बज कर 4 मिनट के कुछ देर बाद ही नुमाया हुई.

ये देश के ‘यशस्वी’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी थे जिन के स्क्रीन पर प्रकट होते ही लगा कि प्रार्थनाएं, पूजापाठ और दुआएं जाया नहीं गई हैं  नीचे वाले तो प्रकट हुए. मोदीजी ने संक्षिप्त सारगर्भित संस्कृतनुमा भाषण दिया. तब वे दक्षिण अफ्रीका के सरकारी दौरे पर थे, लेकिन गौरतलब यह कि देश को और चंद्रयान को नहीं भूले थे.भगवान बड़ा या विज्ञानअसल में हम विश्वगुरु तो तब से ही हैं जब विश्व नाम की कोई चीज अस्तित्व में ही नहीं थी.

बकौल सोमनाथ अफसोस तो इस बात का है कि हमारे ज्ञानविज्ञान को यूरोप और दूसरे विदेशियों ने चुराया. मई में यह कहते वक्त उन्होंने ज्ञानविज्ञान की इस दुर्लभ चोरी का रूट बदल दिया था कि हमारे विज्ञान के सिद्धांत अरब देशों से होते हुए पश्चिमी देशों में पहुंचे जबकि हमारे पूर्वज यूरोपियनों के सिर इस महान चोरी और डकैती का इलजाम मढ़ते रहे थे.

सोमनाथ की मानें तो दुनिया में हम कभी उन्नत विज्ञान के मालिक हुआ करते थे.इस के कारण वे गिना भी सकते हैं कि संजय ने धृतराष्ट्र को महाभारत का जो आखों देखा हाल सुनाया था वह दरअसल में आज की तरह का आम वीडियो कौल थी.

लेकिन वे चाह कर भी यह नहीं बता सकते कि पौराणिक युग में खीर और कान के मैल तक से बच्चे कैसे पैदा हो जाते थे, किसी योद्धा का एक सिर कटता था तो दूसरा वह भी हुबहू कैसे आ जुड़ता था, किसी बच्चे की गरदन पर हाथी का सिर वह भी भारीभरकम सूंड सहित कैसे जोड़ दिया जाता था?अंतहीन सवालऐसे सवाल अंतहीन हैं जिन का चंद्रयान-3 की सफलता का श्रेय लेने वाले लीडर से इतना तअल्लुक भर है कि यह सब था लेकिन हम अज्ञानी वक्त रहते इसे न सम   झ पाए और न ही संभाल पाए.

जाहिर है सोमनाथ भी आस्था या किसी लालच, दबाव या विवशता के चलते वह भाषा बोल रहे हैं जो प्रमाण और परिणाम नहीं देती बल्कि मान्यताओं को थोपती है.हम कथित तौर पर लुटे इसलिए कि हम आज भी जातपात, धर्म के पचड़े में पड़े हैं. यह मिशन इसरो टीम की मेहनत, प्रतिभा और कोशिशों से कामयाब नहीं हुआ बल्कि इश कृपा से हुआ है जिस के लिए खुद सोमनाथ जुलाई में खासतौर से तिरुपति के मंदिर में पूजापाठ कर के आए थे.

हरि ने उन की सुन ली तो मुमकिन है वे जल्द ही मन्नत पूरी होने पर फिर तिरुपति जाएं और सूर्य मिशन की तैयारियों में जुट जाएं जिसे हनुमान ने फल सम   झ कर मुंह में ले लिया था. इस पर वे या कोई और यही कहेगा कि हनुमान का मुंह फायरपू्रफ था.अब अहम सवाल यह कि हम बच्चों को क्या पढ़ाएं और युवाओं को क्या सम   झाएं? यह कि एक तरफ तो चंद्रमा उपग्रह साबित हो चुका है और भारत ने उस के दक्षिणी धु्रव पर दस्तक दे दी है. दूसरी तरफ हमारे धर्मग्रंथ कहते हैं कि चंद्रमा ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक अत्रि की संतान था, जिस की शादी कर्दम मुनि की बेटी अनुसुइया से हुई थी.

चंद्रमा इन्हीं दोनों का बेटा है. चंद्रमा की शादी दक्ष प्रजापति की 27 बेटियों से हुई थी जिन्हें नक्षत्र कहा और माना जाता है. कभी गणेश ने चंद्रमा को श्राप दिया था और कभी चंद्रमा ने अपने गुरु बृहस्पति की खूबसूरत पत्नी तारा को अगवा कर उस से ही शादी कर ली थी जिस से बुध पैदा हुआ था. इसे भी ज्योतिष में ग्रह माना गया है.इन किस्सेकहानियों से तो यही जाहिर होता है कि चंद्रमा व्यभिचारी था और तब एकसाथ कई शादियां की जाती थीं.

उधर चंद्रयान से ऐसी कोई तसवीर अभी तक तो सामने नहीं आई है जिस में शादी का मंडप तो दूर की बात है मानवजीवन होने के भी संकेत मिलते हों. हां, इस की संभावनाएं जरूर जताई जा रही हैं कि वहां आदमी को बसाया जा सकता है. कुछ लोगों ने तो चंद्रमा पर जमीन बेचने और खरीदने का भी कारोबार शुरू कर दिया है. चंद्रयान-3 की कामयाबी के बाद तो लगता है कि चंद्रमा रियल ऐस्टेट का केंद्र बन कर रह जाएगा.पौराणिक मान्यताएंमगर 23 अगस्त को एक खास बात यह भी हुई है कि हमारी धार्मिक और पौराणिक मान्यताएं ध्वस्त हो गई हैं.

लेकिन इस से लोग तार्किक सोच पाएंगे ऐसा लग नहीं रहा. यह बात 1 नवंबर को करवाचौथ पर सिद्ध भी हो जानी है. इस दिन महिलाएं चंद्रमा का पूजापाठ करेंगी.लोगों ने चंद्रयान के रोमांचक क्षणों को जीया है तो बाद में उस पर स्वस्थ हंसीमजाक भी जम कर किया है. लेकिन इस पर राजनीति भी जम कर हुई जिस की शुरुआत न्यूज चैनल्स पर बाइट्स दे रहे आम लोगों ने की कि यह तो मोदीजी का कमाल है.

हम उन्हें बधाई देते हैं व उन का आभार व्यक्त करते हैं. मोदीजी के स्क्रीन पर अवतरित होने के बाद तो भक्त ऊपर वाले को भूल कर नीचे वाले इन भगवान का गुणगान करते दिखे जैसे मोदीजी न होते या न चाहते तो चंद्रयान अभियान परवान नहीं चढ़ पाता.व्यक्तिपूजा की मिसालमध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने तो मोदीजी का आभार व्यक्त करते सभी अखबारों में एक पेज का सरकारी विज्ञापन भी छपवा दिया. चाटुकारिता, खुशामद और व्यक्तिपूजा की इस से बड़ी मिसाल शायद ही कहीं मिले. इस खेल में बेचारा इसरो औपचारिक बधाई का पात्र बन कर रह गया.

राहुल गांधी ने तो अपने संदेश में खासतौर से यह कहा कि अंतरिक्ष गतिविधियों ने 1962 में जो जोर पकड़ा था वे अब फलीभूत हो रही हैं. इस बहाने उन्होंने अपने पूर्वजों की योगदान को याद दिलाने की कोशिश की.मगर नेहरू, इंदिरा और राजीव गांधी भगवा गैंग के लिए कोसने के किरदार भर हैं. उन्हें तभी याद किया जाता है जब किसी परेशानी का ठीकरा फोड़ना होता है.

ऐसे में राहुल को यह उम्मीद  नहीं करनी चाहिए कि चंद्रयान की सफलता और इसरो की जहमत कोई उठाएगा.अब चांद पर बसने की सुगबुगाहट ने बहुतों को और रोमांचित कर दिया है. लोग मीना कुमारी और राजकुमार की तरह चांद पर बसने जाने तैयार हैं क्योंकि वे धरती की आपाधापी, नफरत और रोजरोज दुश्वार होती जिंदगी से आजिज आ चुके हैं.

लेकिन लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर आदमी चांद पर बसा तो वह धरती से धर्म और भगवान जरूर ले जाएगा और वहां भी मंदिरमसजिद और चर्च वगैरह बनाएगा. फिर शुरू होगा जातपात का फसाद, धार्मिक दुकानदारी और रंगभेद सहित अमीरीगरीबी का भी भेदभाव. आज जो कल्पना है वह साकार भी होती है यह बात कैफ भोपाली के सच होते शेर से भी साबित होती है.

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