Film Maa: काला जादू और तंत्रमंत्र पर आधारित अजय देवगन की पिछली फिल्म ‘शैतान’ के बाद अजय अपने प्रोडक्शन तले एक बार फिर अंधविश्वास को बढ़ावा देने वाली फिल्म ‘मां’ ले कर प्रस्तुत हुए हैं, जिन्हें दर्शकों ने पूरी तरह नकार दिया. इस की खास वजह यह है कि आज के दर्शक कहानी के नाम पर अंधविश्वास पर आधारित बेकार की कहानी जिस में डर के बजाय ऐसी बातों का प्रचार हो जिस पर कोई विश्वास नहीं करता, को बिलकुल भी पसंद नहीं करते.
काजोल अभिनीत ‘मां’ फिल्म की चर्चा काफी समय से हो रही थी कि यह एक भूतिया फिल्म है, जिस में पौराणिक विषय का भी समावेश है. लिहाजा, कई लोगों ने सोचा था कि काजोल की यह फिल्म डराने वाली होगी जिस में पौराणिक विषय को भी घुसेड़ा गया होगा, लेकिन इस के विपरीत ‘मां’ फिल्म में न तो कुछ हौरर या डराने वाला था और न ही कहानी का कोई सिरपैर.
आदम जमाने की कहानी
फिल्म की कहानी एक मांबेटी की कहानी है, जो अपनी बेटी को बचाने के लिए हर मुसीबत से टकरा जाती है। कहानी की शुरुआत बाबा आदम के जमाने की तरह पुरानी कहानी से शुरू होती है. फिल्म ‘मां’ की कहानी भी 4 दशक पहले से शुरू होती है, जो बंगाल के एक काल्पनिक गांव चंद्रपुर से शुरू होती है, जहां पर लड़कियों की उस वक्त बलि दे दी जाती थी.
जब उन की पहली माहवारी होती है, काजोल यहां पर उस बेटी की मां बनी है जिस से उस की बुआ की बली के तार जुड़े हैं. काजोल किसी कारणवश चंद्रपुर जाने के लिए अपनी बेटी के साथ कार से निकलती है, तो रास्ते में उन की बेटी को पहले माहवारी की वजह से पेट में दर्द शुरू हो जाता है, जिस वजह से काजोल एक भूतिया होटल में पहुंच जाती है जबकि उन को पता है कि यह होटल भूतिया है इसलिए वह अपनी बेटी से उन से बिना पूछे कहीं भी बाहर निकलने के लिए मना करती हैं, लेकिन जैसा कि भूतिया फिल्मों में होता है, जो चीज के लिए मना किया जाता है भूतिया फिल्मों के कलाकार वही चीज बारबार करते हैं और मर भी जाते हैं.
न कहानी अच्छी न ऐक्टिंग
ऐसा ही कुछ इस फिल्म में भी दिखाया गया है। काजोल के मना करने के बावजूद भी बेटी होटल में तफरी करने निकल जाती है और बलि देने वाले राक्षस नुमा इंसान के कब्जे में आ जाती है। उस के बाद काजोल पौराणिक कथाओं का सहारा ले कर देवी शक्तियों के जरीए अपनी बेटी को बचाने का काम करती हैं और इस के साथ कई रहस्य के परदे भी खोल देती हैं.
विशाल फूरियां के निर्देशन में बनी इस फिल्म को देख कर दर्शकों ने सिर पीट लिया, क्योंकि उन की फिल्म की कहानी चूल्हे में चढ़ी दाल जैसी थी जो धीरेधीरे पक रही थी। ओटीटी के जमाने में 2 घंटे से ज्यादा समय के लिए बनी थकी हुई कहानी पर आधारित यह फिल्म डराने के बजाय बोरियत फैला रही थी.
ऐक्टिंग या टाइमपास
काजोल के अभिनय की अगर बात करें तो वह मां के रोल में फिट नहीं बैठती क्योंकि उन का खुद का चेहरा नटखट बच्चों जैसा है, इसलिए स्पैशली मांबेटी के सीन के दौरान उन के ऐक्सप्रेशन जबरदस्ती वाले लग रहे थे। इस फिल्म में काजोल को देख कर ऐसा लगता है कि वह अपनी कजिन रानी मुखर्जी के साथ कंपीटिशन की वजह से इक्कादुक्का फिल्मों में रानी मुखर्जी की तरह ही टाइमपास के लिए अभिनय कर रही हैं, ताकि इंडस्ट्री में अपनी पहचान बरकरार रख पाएं, वरना उन के अभिनय को देख कर ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा कि वह अपने इस फिल्म में निभाए किरदार को ले कर वे जरा भी उत्साहित हैं.
इस फिल्म के जरीए हौरर फिल्म का प्रोपेगेंडा कर के दर्शकों को थिएटर तक खींचने की कोशिश की गई है. लेकिन फिल्म के किसी भी पहलू में दमखम न होने की वजह से और अंधविश्वास का ढकोसला दर्शकों को परोसने की वजह से फिल्म दर्शकों और आलोचकों द्वारा ज्यादा पसंद नहीं की जा रही है और बौक्स औफिस पर फ्लौप है. Film Maa