‘‘अभीअभी खबर मिली है रुकि…’’

‘‘क्या खबर?’’ रुकि ने बीच में ही सवाल जड़ दिया.

‘‘तुम्हारे ही काम की खबर है. हमारे स्कूल में एक नए रंगमंच शिक्षक आ रहे हैं.’’

‘‘अच्छा सच?’’ रुकि अपने कला के कक्ष में थी. उस ने एक मुखौटे को सजाते हुए प्रतिक्रिया दी. एक के बाद दूसरा मुखौटा सजाती हुई रुकि अपने ही काम में मगन दिखाई दी, तो उसे यह सूचना देने वाली अध्यापिका सरला भी अपना काम करने वहां से चली गई.

सरला के जाते ही रुकि ने मुखौटा एक तरफ रखा और खुश हो कर जोर से ताली बजाई और फिर नाचने लगी थी. 2 दिन तक यही हाल रहा रुकि का. वह सब के सामने तो काम करती पर एकांत ही कमर मटका कर नाचने लगती.

तीसरे दिन प्रार्थनासभा में प्राचार्य ने एक नए महोदय को माला पहना कर उन का स्वागत किया और फिर एक घोषणा करते हुए कहा, ‘‘प्यारे बच्चो, आज हमारे विद्यालय परिवार में शामिल हो रहे हैं माधव सर. ये रंगमंच के कलाकार हैं. इन्होंने सैकड़ों नाटक लिखे हैं. ये आज से ही हमारे विद्यालय के रंगमंच विभाग में शामिल हो रहे हैं.’’

यह खबर सब के लिए सुखद थी. स्कूल में यह एक नया ही प्रयोग होने जा रहा था. सब फुसफुसाने लगे पर आज भी रुकि का चेहरा एकदम सामान्य था. वह एकदम निर्विकार भाव से तालियां बजा रही थी. पूरा विद्यालय बारबार माधवजी के पास जा कर उन से मिल रहा था पर एक रुकि ही थी जो बस अपने कक्ष में मुखौटे ही ठीक किए जा रही थी.

अगले दिन दोपहर बाद जब कक्षा का खेल पीरियड था तो उस समय मौका पा कर माधव लपक कर रुकि के पास जा पहुंचा.

‘‘ओह रुकि,’’ कह कर उस ने जैसे ही उसे बाहों में लिया रुकि के हाथ से मुखौटा गिर गया.

वह एकदम संयत हुई और बोली, ‘‘माधव, हाथ हटाओ, शाम 6 बजे मिलते हैं. मैं फोन पर लोकेशन भेज दूंगी,’’ और फिर वह फटाफट कक्ष से बाहर निकल आई.

माधव ने हंस कर मुखौटा अपने चेहरे पर पहन लिया. शाम को दोनों एकदूसरे के पास बैठे थे.

माधव बोला, ‘‘अच्छा, पगली वहां तो बंद कमरा था… मैं आया था मिलने पर तुम डर कर भाग गई पर यह जगह जहां सबकुछ खुलाखुला है निडरता से मेरे इतने करीब बैठी हो.

रुकि ने उस की नाक पकड़ कर कहा, ‘‘तुम भी न माधव कमाल के दुस्साहसी हो. तुम ने तो आते ही दिनदहाड़े रोमांचकारी कदम उठा लिया. हद है.’’

मगर माधव को तो रुकि से चुहल करने में मजा आ रहा था. वह चहकते हुए बोला, ‘‘अच्छा, हद तो तुम्हारी है रुकि. मैं तो एक फक्कड़ रंगकर्मी था पर यहां आया बस तुम्हारे लिए… तुम्हें उदासी से बचाने के लिए.’’

रुकि सब चुपचाप सुन रही थी.

माधव बोला, ‘‘तुम ने मुझे महीनों पहले ही स्कूल प्रशासन की यह मंशा कि एक रंगकर्मी की जरूरत है और वीडियो भेज कर इस स्कूल के चप्पेचप्पे से इतना वाकिफ करा दिया था कि फोन पर जब मेरा साक्षात्कार हुआ तो पता है प्राचार्य तक सकते में आ गए कि मुझे कैसे पता है कि स्कूल के खुले मंच के दोनों तरफ बोगनबेलिया लगा है.’’

‘‘ओह, माधव फिर?’’ यह सुना तो रुकि की तो सांस ही रुक गई थी.

‘‘फिर क्या था मैं ने पूरे आत्मविश्वास से कह दिया कि मैं ने एक न्यूज चैनल में सालाना जलसे की रिपोर्ट देखी थी.’’

यह सुन कर रुकि की जान में जान आई. बोली, ‘‘माधव तुम सचमुच योग्य थे, इसीलिए तुम्हें चुना गया, अब अलविदा. आज की मुलाकात बस इतनी ही. अब चलती हूं. कल स्कूल में मिलते,है,’’ कह कर रुकि ने अपना बैग लिया, चप्पलें पहनीं और फटाफट चली गई.

अब वे इसी तरह मिलने लगे. एक दिन ऐसी ही शाम को दोनों साथ थे तो माधव बोला, ‘‘रुकि मैं और तुम तो इकदूजे के लिए बने थे न और तुम हमेशा कहती थी कि माधव कालेज में साथसाथ पढ़ते हैं अब जीवन भी साथसाथ गुजार देंगे. जब हम दोनों को एकदूसरे से बेहद प्यार था, तो तुम ने शादी क्यों कर ली रुकि?’’

‘‘तो फिर क्या करती माधव बोलो न. तुम तो बस्तियों में, नुक्कड़ में, चौराहे पर नाटक मंडली ले कर धूल और माटी से खेलते थे. मैं क्या करती?’’

माधव ने फट से कहा, ‘‘रुकि, तुम मेरा इंतजार करतीं.’’

अच्छा, चोरी और सीनाजोरी, मेरे बुद्धू माधव जरा याद करो. मैं ने सौ बार कहा था कि मेरी एक छोटी बहन है. मेरे बाद ही उस का घर बसेगा. मातापिता भी ताऊजी की दया पर निर्भर हैं. मु?ो विवाह करना है. तुम गृहस्थी बसाना चाहते हो तो चलो आज पिताजी से बात करते हैं माताजी से मिलते हैं, पर तुम ने याद है मुझे क्या जवाब दिया था?’’

माधव बेहद प्यार से बोला, ‘‘ओहो, बोलो न, तुम ही बोलो रुकि मैं तो सब भूल गया हूं,’’

‘‘अच्छा तो सुनो तुम ने कहा था कि रुकि यह घरबारपरिवार सब ढकोसला है. मैं आजाद रहना चाहता हूं और उस के 2 दिन बाद तुम 1 महीने की नाट्य यात्रा पर आसाम, मेघालय, मणिपुर चले गए. माधव तुम मुझे मजाक में लेने लगे थे.’’

‘‘रुकि वह समय ऐसा ही था. तब मैं 21 साल का था.’’

‘‘बिलकुल और मैं 20 साल की… मैं ने घर वालों के सामने हथियार डाल दिए. विवाह हो गया,’’ रुकि उदास हो कर बोली.

‘‘हां तो, गबरू जवान फौजी की बीवी बन कर तो मजा आया होगा न रुकि.’’

तुम माधव बारबार यही सवाल किसलिए पूछते हो? हजारों बार तो बताया है कि वे जम्मू में रहते हैं. मैं यहां इस कसबे में निजी स्कूल में कला की शिक्षा देती हूं,’’ रुकि की आवाज में बेहद दर्द भर आया था.

कुछ देर रुक कर रुकि आगे बोली, ‘‘मैं ने 2 साल तक मुंह में दही जमा कर सबकुछ सहा. परिवार, बंधन, जिम्मेदारी, संस्कार, तीजत्योहार सारे नाटक सबकुछ… मगर तब भी मेरे पति मुझे अपने साथ नहीं ले गए तो मैं ने भी एक मानसिक करार सा कर लिया.’’

‘‘मानसिक करार, मैं समझ नहीं रुकि?’’ माधव को अजीब लगा कि आज 30 साल की रुकि ये कैसी बहकीबहकी बातें कर रही है.

‘‘हां माधव करार नहीं तो और क्या. यह एक करार है कि मैं उन की संतान का पालन कर रही हूं. मगर अपनी आजादी के साथ. वे जो रुपए देते हैं अब मैं उन में से एक धेला भी खुद पर खर्च नहीं करती हूं. सारे बच्चों की पढ़ाई में लगा कर रसीद उन के बाप को कुरियर कर देती हूं. ताकि…’’

‘‘ताकि क्या रुकि?’’ माधव ने पूछा.

‘‘ताकि माधव सनद रहे कि रुकि उन के दिए पैसों पर नहीं पल रही. मैं अपनी कमाई खाती हूं… अपने वेतन से कपड़ा खरीद कर पहनती हूं,’’ कहतीकहती रुकि एकदम खामोश हो गई तो माधव ने उस का हाथ थाम लिया.

‘‘ओह माधव,’’ रुकि के पूरे बदन में सनसनाहट सी होने लगी.

‘‘अरेअरे क्या रुकि कोई देख लेगा.’’

‘‘अरे नहीं, माधव. यही तो एक पूरी तरह से सुरक्षित जगह है. इधर हमारा कोई भी परिचित नहीं आ सकता,’’ कह कर वह भी भावुक हो गई और माधव से लिपट गई.

कुछ पल तक दोनों ऐसे ही खामोश रहे और अचानक रुकि बोली, ‘‘अब चलती हूं. मेरी छोटी बिटिया केवल 7 साल की है. वह मुझे देख रही होगी.’’

समय इसी तरह गुजरता रहा. माधव को लगभग 3 महीने हो गए थे. उस ने इस दौरान बच्चों को रंगमंच के अच्छे गुर भी सिखा दिए थे. माधव ने इतना बढि़या प्रशिक्षण दिया था कि स्कूल के सीनियर छात्र अब खुद ही नाटक लिख कर तैयार करने लगे थे. स्कूल में तो हरकोई माधव को पसंद करने लगा था. हरकोई माधव को अपने घर बुलाना चाहता, उस के साथ समय बिताना चाहता, पर इस माधव का मन एक जगह कभी टिकता ही नहीं था.

एक दिन रुकि ने पूछ ही लिया, ‘‘माधव एक निजी स्कूल में पहली बार काम कर रहे हो. तुम ने अभी तक बताया नहीं कि कैसा लग रहा है? वैसे प्रिंसिपल सर ने तुम्हें अपने बंगले के साथ लगा कमरा मुफ्त में रहने को दे दिया है तो ऐसी तंगी तो शायद रहती नहीं होगी न?’’

‘‘ओहो रुकि, यह भी कोई सवाल हुआ? मुझे धनदौलत से भला कैसा लगाव और इस निजी स्कूल की नौकरी की ही बात की है तुम ने तो रुकि मेरी जान, अरे मैं तो बस तुम्हारी गुहार पर ही यहां आया हूं.’’

‘‘पर माधव तुम ने यह सब कैसा जीवन कर लिया. न रुपया न पैसा. बस सारा समय नाटक लिखना और मंचन करना यह कैसा जीवन है?’’

‘‘रुकि मेरी बात समझने के लिए तुम्हें एक घटना सुननी होगी.’’

‘‘तो सुनाओ न,’’ रुकि बैचैन हो कर बोली.

‘‘मैं तो सुनाने और सुनने के ही लिए आया पर तुम बीच में ही उठ कर चली जाओगी कि घर पर बच्चे अकेले हैं.’’

‘‘अरे नहीं तुम आज की शाम एकदम बिंदास हो कर सुनाओ.’’

‘‘आज तुम ने घर नहीं जाना?’’

‘‘जाना है पर बच्चों की कोई चिंता नहीं है. वे दोनों आज एक जन्मदिन समारोह में गए हैं. खाना खा कर ही वापस आएंगे.’’

‘‘अच्छा,’’ यह सुन कर माधव को बेहद सुकून मिला. बोला, ‘‘रुकि, मैं जब 7 साल का था न तब से नानाजी के गांव जरूर जाता था. मेरे नानाजी के पास सौ बीघा खेत और 2 बीघे का एक बगीचा था. कुल मिला कर नानाजी के पास दौलत ही दौलत थी.’’

‘‘अच्छा,’’ रुकि बीच में बोल ली.

‘‘एक बार गांव में भयंकर बारिश हुई और बाढ़ के हालात हो गए. जो जहां था वहीं रह गया. मैं भी तब नानाजी के गांव गया था. सड़क जाम हो गई थी. 2 बसें भर कर कुछ कलाकार मदद की गुहार लगाते हुए हमारे गांव आ गए. वे सब फंस गए थे. आगे जा नहीं सकते थे. उन की बात सुन कर नानाजी तथा उन के कुछ दोस्तों ने उन्हें रहने की जगह दे दी. वे अपना भोजन बनाते थे और दोपहर में रियाज करते थे. इस तरह जब तक सड़क ठीक नहीं हुई यानी 7 दिन तक वह नाटक मंडली गांव में रही. तब मैं ने देखा कि नानाजी उन कलाकारों में ही रमे रहते थे. नानाजी उन के साथ तबला बजाते थे, ढोल बजाते थे, नाचते थे, गाते थे.

‘‘रकि ने अपने नानाजी को इतना खुश पहले कभी देखा ही नहीं था. जब मंडली चली गई तो मैं भी अपने घर जाने की तैयारी करने लगा. मैं, नानाजी के कमरे में उन से यही बात करने गया तो पता है नानाजी अपनेआप से बातें कर रहे थे. इतनी दौलत है. इस का मैं आखिर करूंगा क्या. मैं तो कलाकार हूं. मैं ने अपने भीतर का कलाकार दबा कर रख दिया. मैं यह सुन कर ठिठक गया. वहीं खड़ा रहा और लौट गया. उस दिन मेरे दिल में एक बात आई कि धन और विलासिता सब बेकार है. अपने भीतर की आवाज सुननी चाहिए.’’

‘‘हूं तो इसीलिए तुम रंगकर्मी बन गए. मगर जीने के लिए तो रुपए चाहिए न माधव,’’ रुकि ने अपनी बात रखी.

‘‘अरे, बिलकुल,’’ माधव ने रुकि की हां में हां मिलाई.

‘‘तो माधव तुम अपने लिए न सही मातापिता के लिए तो कमाओ.’’

‘‘पर रुकि उन के पास बैंकों में भरभर कर रुपया है.’’

‘‘अरे वह कैसे?’’

‘‘अरे मेरी मां मेरे नानाजी की अकेली औलाद तो सब खेतबगीचे मेरी माताजी के और अब मेरे बडे़ भाई ने डेयरी और खोल ली है. बडे़ भाई के बच्चे भी खेतखलिहान पसंद करते हैं. इस तरह मेरे मातापिता को न अकेलापन सताता है और न पैसे की कोई तंगी है.’’

‘‘तो इसीलिए तुम अपने मातापिता की तरफ से लापरवाह हो कर ऐसे खानाबदोश बने हो. है न?’’ रुकि ने उसे उलाहना दिया.

‘‘नहींनहीं रुकि, मुझे नाट्य विधा पसंद है और मैं सड़क का आदमी ही बनना चाहता हूं. मैं जरा से वेतन पर बेहद खुश हूं.’’

‘‘अच्छा माधव तुम भी न मुझे लगता है कि मैं तुम्हारे साथ 3 साल तक पढ़ती रही पर तुम्हें समझ ही नहीं सकी. जब मैं ने रिश्ते की बात कही थी तब तुम ने कहा कि मैं तो फकीर आदमी हूं. यह नानाजी के खेतखलिहान और धनदौलत की बात तब ही बता देते तो मैं अपने मातापिता को समझ कर मना लेती,’’ रुकि को अफसोस हो रहा था.

‘‘यह तो और भी गलत होता रुकि. तब तुम्हें सब की गुलामी करनी होती, जबकि तुम तो खुद भी आजाद रहना चाहती हो.’’

‘‘हां यह तो सही है माधव. पर मैं अपने प्रेमी माधव के लिए शायद यह कर लेती.’’

‘‘शायद का तो कोई पकका मतलब होता नहीं रुकि कह कर माधव खड़ा हो गया.

‘‘अरे… माधव आज तो तुम अलविदा कह रहे हो.’’

‘‘ओह रुकि, अब चलता हूं अलविदा,’’ कह कर माधव ने अपनी चप्पलें पहन लीं और दोनों अलगअलग दिशा में चल दिए.

अगले दिन रुकि स्कूल आई तो एक सनसनीखेज खबर सुनने को मिली कि माधव सर सुबह ही दक्षिण भारत की तरफ रवाना हो गए हैं. वे अपना इस्तीफा भी सौंप गए हैं.

‘‘हैं, रुकि को सदमा लगा. उस ने खुद को सामान्य किया, जबकि सारा दिन स्कूल में यही चर्चा का विषय रहा. हरकोई माधव सर का फैन बन गया था. रुकि जानती थी कि यह फक्कड़ एक जगह नहीं रुकता. स्कूल की छुटटी के बाद घर लौटते हुए रुकि ने माधव को फोन लगाया.

‘‘अरे रुकि मैं बस में बैठा हूं. अभी दिल्ली जा रहा हूं. रात को केरल के लिए रवानगी.’’

‘‘तुम तो अब एक थप्पड़ खाने वाले हो माधव… कल रात तक मेरे साथ थे और बताया भी नहीं.’’

‘‘अगर बताता तो बस एक उसी बात पर अटक जाते हम दोनों और कोई बात हो ही नहीं पाती रुकि. बाकी तुम अब वह पुरानी रुकि तो रही नहीं. तुम एक मजबूत औरत, एक बेहतरीन माता और एक सजग प्रेमिका हो गई हो… तुम और मैं जीवनभर प्रेमी रहने वाले हैं. यह वादा है. कल फोन करता हूं,’’ कह कर माधव ने फोन बंद कर दिया.

रुकि को उस पर प्यार और गुस्सा दोनों एकसाथ आ रहे थे.

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