हम लोग भी लिव इन रिलेशनशिप के पक्ष में बहुत कुछ लिखते रहते हैं पर यह रिलेशनशिप बहुत से खतरों से दूर नहीं क्योंकि कानूनी ढांचा इस तरह बना है जिस में कोई भी अधिकार कानूनन विवाह करने पर ही मिलता है. लिव इन रिलेशनशिप को कोई भी कानूनी संरक्षण देने को न सरकार तैयार है न अदालतें और न ही जोड़े आपस में कोई कौंट्रैक्ट कर सकते हैं.

गुजरात का मैत्री करार एक पुराना तरीका है पर यह भी कानूनन मान्य नहीं है क्योंकि सोशल पौलिसी के खिलाफ किया गया कौंट्रैक्ट कौंट्रैक्ट ही नहीं है.

हां, अब लिव इन रिलेशनशिप में रहने को गैरकानूनी अपराध नहीं माना गया है और यदि दोनों बालिग, शादीशुदा हों या न हों साथ रह सकते हैं. शादीशुदा हों तो दूसरे का जीवनसाथी द्वारा हद से हद ऐडल्ट्री के नाम पर तलाक मांग ही सकती है.

एक मुश्किल तब आई जब एक विवाहिता को लिव इन रिलेशनशिप के बाद बच्चा हुआ. उस ने चाहा कि बच्चे के बर्थ सर्टिफिकेट पर लिव इन पार्टनर और बायोलौजिकल फादर का नाम आए पर न मुंबई की म्यूनिसिपल राजी हुई, न मजिस्टे्रट की अदालत और न ही शायद हाई कोर्ट राजी होगा. इस की बड़ी वजह यह है कि शादी के दौरान हुए बच्चे कानूनन पति के होते हैं चाहे स्पर्म किसी का भी हो. पहले यह सुविधाजनक था और अब स्पर्म डोनरों की बढ़ती गिनती के कारण और ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है कि बच्चा नाजायज न कहलाए. उसे उस पुरुष की संपत्ति में पूरा हक मिलेगा जिस में कंसीव होते समय उस की मां लीगली शादीशुदा थी.

उस बच्चे का भरणपोषण लीगल पिता को करना होगा न कि बायोलौजिकल फादर को. अगर यह न हो तो तलाक के हर मामले में पति कह सकता है कि उस के बेटेबेटी उस के हैं ही नहीं. अगर वास्तव में न भी हों तो भी जिम्मेदारी उन्हीं की होगी.

लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली लड़कियों को डोमैस्टिक वायलैंस से भी संरक्षण नहीं मिलता. पार्टनर की मारपीट पर पुलिस आनाकानी करे कि डोमैस्टिक वायलैंस ऐक्ट नहीं लगेगा तो गलत नहीं. हां, आईपीसी का साधारण मारपीट वाला मुकदमा चल सकता है जिस में तुरंत जेल की गारंटी नहीं होती. हाई कोर्ट के कुछ जज तो लिव इन रिलेशनशिप के बहुत खिलाफ हैं और कुछ बहुत उदार.

लिव इन रिलेशन में दोनों परिवारों के रिश्तेदार कट जाते हैं और दोनों पक्षों को अपने रिश्तेदारों के यहां अकेले जाना होता है. विवाहित रिश्तेदार कम घर आते हैं क्योंकि अभी भी समाज में दोनों पार्टनरों को छुट्टा सांड या छुट्टी औरत सम?ा जाता है जो किसी पर डोरे डालने में स्वतंत्र है.

क्या इस पर कोई कानून बनाना चाहिए? हमारी राय तो यही है कि नहीं क्योंकि कानूनी लिव इन रिलेशनशिप असल में एक शादी ही होगी जो दोनों की इच्छा नहीं है. हद से हद दोनों को कौंट्रैक्ट करने दिए जाएं पर उस के लिए जो कौंट्रैक्ट ऐक्ट आज हैं उन्हीं के अंतर्गत रहने की सुविधा हो. कौंट्रैक्ट का एक फायदा तो यह होना चाहिए कि फीमेल रेप का चार्ज न लगा सके और दूसरा यह कि जब रिलेशनशिप टूटे तो जौइंट खरीदे सामान को बांटने में आसानी हो. कौंट्रैक्ट के आधार पर ही लिव इन के दौरान के बच्चों का खर्च और विजिटिंग राइट्स तय होने चाहिए, वे केवल मां की जिम्मेदारी नहीं हो सकते.

हमारे पुराणों में लिव इन रिलेशनशिप के उदाहरण भरे पड़े हैं. मेनका और विश्वमित्र का लिव इन वाली संतान शकुंतला का बेटा भी दुष्यंत से एक रात की लिव इन रिलेशनशिप की देन था जिसे दुष्यंत ने 3 साल बाद अपना लिया क्योंकि उस के पास राज था पर वारिस नहीं. उन दोनों के ही पुत्र का नाम भारत था, जो अब सनातनी सरकार देश का अकेला रखना चाहती है और इंडिया हटाना चाहती है.

इसे पाप कहना तो बिलकुल गलत है. यह न अनैतिक है और

न गैरसामाजिक. हां, कुछ हद तक अव्यावहारिक है पर यदि लड़की

में दमखम है तो गलत नहीं. फिल्म ‘जवान’ में शाहरुख खान का विवाह ऐसी ही लड़की से होता है जिसे बेटी लिव इन रिलेशनशिप में हुई.

इस से पहले अमिताभ बच्चन और अभिषेक बच्चन की फिल्म ‘पा’ में विद्या बालन से पुत्र लिव इन रिलेशनशिप में हुआ था और दर्शकों ने कोई आपत्ति नहीं की थी. यह एक सभ्य उदार समाज की निशानी है जिसे कुछ कट्टरपंथी समाप्त करना चाहते हैं और वैलेंटाइन डे पर लाठियां ले कर जोड़ों को पीटते रहते हैं कि या तो अलग हो जाओ या फिर यहीं शादी कर लो.

असल में यूनिफौर्म सिविल कोड मुसलिम समाज के पुरुषोंस्त्रियों के लिए नहीं चाहिए जिन का कानून हमेशा से वैसे भी औरतों के पक्ष में काफी है, कम से कम 1956 से पहले हिंदू सनातनी विवाह और विरासत के कानून से. उन में खुली मैरिज भी है जो एक तरह से लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी ढांचा देती है. लेकिन हमारी सनातनी सरकार औरतों के पक्ष में कभी कानून नहीं बनाएगी. उन के लिए तो सीता जैसी देवी भी लक्ष्मणरेखा में रखने लायक है.

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