आजकल राहुल गांधी मणिपुर से मुंबई न्याय यात्रा पर निकले हुए हैं. यह वैसे कोई सैरसपाटा नहीं है क्योंकि जैसे नरेंद्र मोदी मंदिरों के दर्शनों से देश को देखना चाहते हैं और वोट पाना चाहते हैं वैसे ही राहुल गांधी देश के शहर, गांव, जंगल, पहाड़, मैदान, नदि देखते हुए वोट की चाहत रखते हैं.

मोदी के दर्शन जहां एक प्रार्थना है कि हे प्रभु, हमारी झोली सीटों से भर दो, हम आप के मंदिर बनाएंगे, मंदिरों के बाहर रास्ते ठीक कराएंगे, मंदिरों के लिए रेलवे स्टेशन, हवाईअड्डे बनवाएंगे, वहीं राहुल गांधी वोट के साथसाथ लोगों के साथ भी जुड़ रहे हैं.

एक आम आदमी, खासतौर पर आम परिवार को भारत की यात्रा करनी चाहिए. यह पर्सनैलिटी डैवलपमैंट के साथसाथ हरेक को अपना होराइजन बड़ा करने के लिए जरूरी है. हर टूर और ट्रैवल आप को नए लोगों से मिलाता है, नई भौगोलिक स्थिति से परिचित कराता है, नई भाषा सिखाता है और सब से बड़ी बात है कि आप को अनजान लोगों के साथ रहना सिखाता है.

अपने से अलग, अलग धर्म के, अलग भाषा के, अलग रंग के लोगों से जब मिलना होता है तो बहुत कुछ नया सीखना होता है. किसी भी पर्यटन पर आप को गैरों के बीच रहने की आदत डालनी होती है. आप को समझने को मिलता है कि आप के घर की सुरक्षा का घेरा आप के पास नहीं है. आप के दोस्त, रिश्तेदार, कलीग आप के आसपास नहीं हैं. आप जिस जगह हैं वहां क्या है यह नहीं जानते. पर्यटन, यात्रा आप को ऐडजस्ट कराना सिखाती है.

मंदिरोें में जब दर्शन करने जाते हैं तो आप का उद्देश्य अपना सुख होता है. भगवान मुझे कुछ दे दो. मेरे पापों को क्षमा कर के मरने के बाद मेरे पापों का फल अगले जन्म न दें इसीलिए तुम्हारी शरण में आया हूं, मुझ से दक्षिणा लो. मैं दरवाजे पर सोने की कील लगवाऊंगा, चांदी का छत्र चढ़ाऊंगा, पंडितों को दक्षिणा दूंगा. मैं…मैं… मैं…

पर्यटन पर आप यह नहीं कहते कि आप जिस तरफ जा रहे हैं या हैं वहां कुछ कराएंगे. वहां से आप ज्ञान प्राप्त करेंगे. वहां के ऐटमौसफियर को जानेंगे, वहां की डाइवर्सिटी और वैरायटी को सम?ोंगे. खास खानपान को चखेंगे. अच्छा लगेगा तो खाने के 2-4 डब्बे दूसरों के लिए ले जाएंगे. गैरधार्मिक यात्रा हरेक को नया बनाती है.

खर्च तो धार्मिक यात्रा में ज्यादा होता है क्योंकि आनेजाने, रहने के अलावा दानदक्षिणा में जेब ढीली करनी होती है. दूसरे टूर में आप उस जगह की निशानी ले कर आते हैं. वहां से सीख कर आते हैं, कुछ मांगते नहीं हैं.

राहुल गांधी की यात्रा का उद्देश्य जनता की सेवा करना हो, ऐसा नहीं लगता पर मंदिरों में भरपूर सरकारी पैसे से आयोजनों से जनता को कुछ नहीं मिलेगा यह पक्का है. कुछ को यह सुखद भाव मिल सकता है कि वे 1000 या 2000 साल की गुलामी के निशान मिटा रहे हैं पर जब पूरे देश पर बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी, भूख, करप्शन, अन्याय की जंजीरें लगी हों, औरतें, लड़कियां पिता या पति के घर में भी सुरक्षित न हों, तो वैसा 1000-2000 साल में क्या रिवैंज?

दर्शनों के लिए अपनों के जत्थों के बीच रेलों, हवाईजहाजों, बसों, कारों के काफिलों और प्राइवेट व पब्लिक जेटों से कहीं भी पहुंचें पर आप को भारत के दर्शन नहीं होंगे, आप को सिर्फ मोमैंट्री एहसास होता कि हम ने इतिहास का बदला ले लिया पर क्या उस से लिया जिस ने आप के पुरखों को नुकसान पहुंचाया, जिस के बारे में आप खुद नहीं जानते, आप ने उसे देखा नहीं, आप ने उस के अत्याचार भुगते नहीं. आप ने बारबार पढ़ा था कि जुल्म हुआ पर यह भी संभव है कि आप का ब्रेनवाश किया गया है.

इस से अच्छा तो यह है कि आप डल लेक देखिए, आप ताजमहल देखें, अजंता की गुफाएं देखें, गोवा के तट देखें, राजस्थान का रेगिस्तान देखें, मध्य प्रदेश की भीम बैटका (भीम बैठका) गुफाएं देखें. हरेक से आप को अभूतपूर्व आनंद मिलेगा बिना नकली रोकटोक के, अपने प्राकृतिक सौंदर्य के बीच, बिना दक्षिणा के.

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