जब मायके जाएं तो क्या करें कि आपकी इज्जत भी हो और सम्मान भी…

अकेले रहने वाली 70 साल की गौतमी आजकल अपने घर का रैनोवेशन करवा रही हैं. उन का सादा व साफसुथरा खुला सा घर अच्छी स्थिति में ही है पर फिर भी उन्होंने यह काम छेड़ दिया है. अस्वस्थ हैं पर फिर भी घर में इतनी तोड़फोड़ चल रही है कि शाम तक मजदूरों को देखने के चक्कर में उन की हालत पतली हो जाती है.

छोटा शहर है, आसपास के लोग बारबार पूछने लगे कि क्या जरूरत है ये सब करवाने की तो उन्होंने एक पड़ोसी से मन की बात शेयर कर ली. बताया, ‘‘बेटी सुमन जब भी आती है, नाराज ही होती रहती है कि आप के पास कैसे आएं, आप के पुराने जमाने का बना घर बहुत असुविधाजनक है. इतने पुराने ढंग का वाशरूम, न टाइल्स, न एसी, कोई सुविधा नहीं. आना भी चाहें तो यहां की तकलीफें देख कर आने का मन भी नहीं होता. न आप ने कोई खाना बनाने वाली रखी है. जब भी आओ, खाना बनाना पड़ता है.

‘‘अब एक ही तो बेटी है. बेटा अलग रहता है, उसे तो कोई मतलब ही नहीं. अब सुमन को यहां आ कर कोई परेशानी न हो, सब उस की मरजी से करवा रही हूं, मेरा खर्चा तो बहुत हो रहा है पर ठीक है, कितनी बार ये सब बातें बारबार सुनूं.’’

हर बात में नुक्ताचीनी

सुमन सचमुच जब भी मायके आती है. गौतमी का सिर घूम जाता है. उस की हर बात में नुक्ताचीनी, आप के पास यह नहीं है, वह नहीं है, अभी तक यह क्यों नहीं लिया, वह क्यों नहीं लिया. सुमन आर्थिक रूप से बहुत समृद्ध है, जितनी देर मां के घर रहती है, अकेली रहने वाली अपनी मां को नचाने में कोई कसर नहीं छोड़ती. ऐसा भी नहीं कि मां के घर में कोई आधुनिक बदलाव चाहिए तो खुद रह कर कुछ काम देख ले या अपने पैसों से ही कुछ काम करवा दे. वह भी नहीं. बस फरमाइश. वापस जाने लगती है तो मां से मिले सामान पर बहुत मुश्किल से ही कभी संतुष्ट होती है.

गौतमी कभी बेटी और उस के बच्चों को कुछ सामान दिलाने बाजार ले जाती हैं तो उन्होंने बेटी को अपने बच्चों से साफसाफ कहते सुना कि नानी दिलवा रही हैं, महंगे से महंगा ले लेना.

बेटी के जाने के बाद गौतमी को बहुत देर तक अपना दिल उदास लगता है कि यह कैसी बेटी है जो जब भी आती है, किसी न किसी बात पर मन दुखा कर ही जाती है. उस का लालच है कि जाता ही नहीं, जबकि बेटी को पैसे की कोई कमी नहीं.

रोकटोक क्यों

इस के ठीक उलट मुंबई में रहने वाली नीरू जब रोहिणी, दिल्ली अपने मातापिता के पास मायके जाती है तो जितने दिन भी वहां रहती है उस की कोशिश होती है कि इन दिनों होने वाले हर खर्च को वह खुद देखे. जब उस के लौटने का समय होता है उस की मम्मी उस के हाथ में जो पैसे देती हैं वह उस में से बस क्व100 अपनी मम्मी का आशीर्वाद सम?ा कर ले लेती है और बाकी सब चुपके से एक जगह रख जाती है. बाद में फोन कर के बता देती है कि जितने लेने थे, ले लिए, बाकी आप वापस संभाल लो.

नीरू की मम्मी उसे हर बार ऐसा करने पर टोकती हैं पर नीरू कहती है, ‘‘जब मेरे रिटायर्ड पेरैंट्स अपने आप अपना खर्चा चला रहे हैं, मेरा जाना किसी भी हालत में उन पर बो?ा नहीं होना चाहिए. मैं जितना कर सकती हूं, उतना कर आती हूं. उन्होंने पढ़ालिखा कर, शादी कर के अपने सब फर्ज पूरे कर दिए हैं अब मेरा फर्ज बनता है कि जब भी जाऊं, उन्हें आराम ही दूं.’’

कोमल जब भी सहारनपुर मायके जाती है जाते ही कह देती है, ‘‘मां, भाभी, मु?ा से किचन के किसी काम की उम्मीद मत करना, अपने घर तो करते ही हैं, यहां भी करेंगे तो कैसे पता चलेगा कि मायके आई हूं.’’

वे तो उस की भाभी सरल स्वभाव की हैं जो हंसते हुए कह देती हैं, ‘‘हां, आप आराम करो, अपने घर ही काम करना. मायके का कुछ आराम मिलना ही चाहिए.’’

कोमल जितने भी दिन मायके रहती है मजाल है कि 1 कप चाय भी बना ले.

रिश्ते में मिठास जरूरी

उधर जयपुर में रेखा जितने दिन भी मायके रहती है उस के मायके में एक अलग ही रौनक रहती है. भाभी के साथ मिल कर नईनई चीजें बनाती है, कभी भाभी और मां को किचन से छुट्टी दे कर कहती है, ‘‘देखो, मैं ने क्याक्या सीख लिया है, आज सब मेरे हाथ का बना खाना खाएंगें.’’

किसी न किसी बहाने से हर रिश्ते में मिठास घोल देती है. कभी घर के सब बच्चों को कुछ खिलानेपिलाने ले जाती है. उस के पति जब उसे लेने आते हैं तो घर में कोई काम न बढ़े, सब सहज रहें, इस बात का विशेष ध्यान रखती है. सब को उस के आने का फिर दिल से इंतजार रहता है.

मायका आप का है, जहां कुछ दिन बिता कर आप फिर एक बच्ची सी बन जाती हैं, एक रिचार्ज हुई बैटरी की तरह अपने घरसंसार में लौट आती हैं. एक वयस्क महिला भी मायके जाते  हुए एक चंचल तरुणी सा अनुभव करती है. पर मायके जाएं तो ऐसे जाएं कि घर के किसी प्राणी पर आप का जाना बो?ा न लगे.

असुविधा हो तो सहन करें

आप अब मायके से जा चुकी हैं, आप का अपना घर है, आप के जाने के बाद आप के पेरैंट्स अकेले होंगें या भाभी होंगी तो इस बात का ध्यान जरूर रखें कि आप के जाने से उन्हें किसी तरह की असुविधा न हो. आप को असुविधा हो भी तो सहन कर लें.

मायके के रिश्ते बहुत सहेज कर रखने लायक होते हैं. कुछ बुरा भी लगे तो मुंह से कुछ कड़वा कह कर किसी का दिल न दुखाएं. अगर आप मायके से ज्यादा समृद्ध हैं तो घमंड और दिखावे से दूर रहें. ये चीजें अकसर रिश्तों में दीवार खड़ी कर देती हैं. मायके में रहने वाले हर सदस्य को स्नेह, सम्मान दें.

ऐसा भी न हो कि आप भी इतना खर्च कर के मायके जा रही हैं, उन का भी खर्च हो रहा है और कोई भी खुश नहीं है. रुपएपैसे को इतना महत्त्व न दें कि भावनात्मक दूरी आए. आप को अपने हिसाब से अपने घर में रहने की आदत है तो मायके के भी हर सदस्य को अपने रूटीन की आदत है. वह मां का घर है, वहां प्यार, मुहब्बतें होनी चाहिए न कि कोई स्वार्थ या हिसाबकिताब. न ईगो, न दिखावा.

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