भले ही भारतीय समाज में लड़कियों की पढ़ाई और करियर के प्रति सोच बदल रही हो जिस वजह से पहले के मुकाबले उच्च शिक्षित लड़कियों की संख्या बढ़ी है. लेकिन जब बात शादी की आती है तो कामकाजी लड़कियों को कम ही पसंद किया जाता है. पढ़ी लिखी, बड़ी डिग्री वाली लड़कियां स्वीकार्य तो होती हैं लेकिन वे शादी के बाद हाउसवाइफ के तौर पर ही रहें इसे ही बेहतर माना जाता है.
हाल में जारी एक स्टडी में यह बात सामने निकल कर आई है कि भारत के शादी के बाजार में आज भी घरेलू लड़कियां ज्यादा पसंद की जाती हैं. कामकाजी महिलाओं को मैट्रिमोनियल साइट्स पर कम पसंद किया जाता है. यानी जो महिलाएं काम करती हैं उन्हें मैट्रिमोनियल वेबसाइट्स पर मैच मिलने की संभावना कम होती है. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के ब्लावतनिक स्कूल ऑफ गवर्नमेंट से डॉक्टरेट कर रही दिवा धर के शोध के मुताबिक भारतीय लोगों में शादी के लिए नौकरीपेशा लड़कियों की मांग बहुत कम हैं.
इस नतीजे पर पहुंचने के लिए दिवा ने मैट्रिमोनियल वेबसाइट पर 20 फेक प्रोफाइल बनाई. सभी की प्रोफाइल्स में उम्र, लाइफस्टाइल, कल्चर, डाइट, खाना जैसी चीजें बिलकुल एक सी लिखी. फर्क बस नौकरी का था. नौकरी करती हैं, करना चाहती हैं और कितना कमाती है, इन फैक्टर्स को अलग अलग रखा. दिवा ने अलग अलग कास्ट ग्रुप के लिए ये प्रोफाइल्स बनाई.
इस स्टडी में पाया गया कि जो लड़कियां काम नहीं करती हैं उन्हें नौकरीपेशा लड़कियों के मुकाबले 15-22 प्रतिशत अधिक पसंद किया गया. सामान्य रूप से हर सौ आदमी ने उस महिला को रिस्पांस दिया जिसने कभी काम नहीं किया है. वहीं कामकाजी महिलाओं की प्रोफाइल पर केवल 78-85 प्रतिशत ही रिस्पांस दिया गया. जिन प्रोफाइल्स में यह लिखा था कि वह नौकरी नहीं करती हैं उन प्रोफाइल्स पर पुरुषों के सबसे ज्यादा रिस्पांस मिले. जिन प्रोफाइल्स पर यह लिखा था कि अभी वे नौकरी कर रही हैं लेकिन शादी के बाद उनकी नौकरी करने की कोई इच्छा नहीं है और वे नौकरी छोड़ देंगी पुरुषों के रिस्पांस के मामले में ऐसी प्रोफाइल्स दूसरे नंबर पर रही . जिन प्रोफाइल पर लड़कियों ने शादी के बाद भी नौकरी करने की बात कही थी उन्हें सब से कम पसंद किया गया. दिलचस्प बात यह है कि जो लड़कियां शादी के बाद काम करना जारी रखना चाहती हैं उनमें ऊंची सैलरी कमाने वाली लड़कियों को मिड रेंज सैलरी वाली से ज्यादा वरीयता दी गई. इसी तरह अध्ययन में पुरुषों का खुद से ज्यादा कमाने वाली लड़कियों की प्रोफाइल्स पर रिस्पांस देने के चांस 10 प्रतिशत कम पाए गए.
दरअसल पितृसत्तात्मक समाज में अगर एक महिला नौकरी नहीं करती है तो यह उस की मर्जी या पिछड़ेपन की निशानी नहीं बल्कि उस के संस्कारी होने का प्रमाण है. अगर लड़की नौकरी और करियर में आगे बढ़ने की आकांक्षाएं रखती हैं तो उसे शादी के लिए रिश्ते मिलने में मुश्किलें आने लगती हैं क्योंकि लड़के वालों को लगता है कि वह ठीक से घर नहीं संभाल पाएगी.
ज्यादातर घरों में मर्द जहां शान से नौकरी कर और पैसे कमा कर अपनी औरत पर धौंस जमाते हैं वहीं औरत पूरे दिन घर का काम संभालने के बाद भी मर्द के पैर की जूती समझी जाती है. वह अपनी मर्जी से कहीं आ जा नहीं सकती, अपने मन का कुछ खरीद नहीं सकती, अपनी बात सामने नहीं रख सकती. उसे केवल सर झुका कर घरवालों और पति का हुक्म मानना पड़ता है. क्योंकि सदियों से चली आ रही सोच के मुताबिक़ औरतों का काम है, बच्चे पालना और खाना बनाना जबकि बाहर से पैसे कमा कर लाना मर्दों का काम है. यह सोच एक बेड़ी की तरह है जो स्त्री को उस की आज़ादी और स्वाभिमान से जीने के हक़ से दूर कर देती है. आज के बदलते दौर में भी कई लोगों को बहुएं पढ़ी लिखी तो चाहिए लेकिन नौकरीपेशा नहीं.
लेबर फ़ोर्स में महिलाओं की भागीदारी है कम
यही वजह है कि आज भी लेबर फ़ोर्स में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है. हाल ही में जारी नेशनल स्टैटिस्टिकल ऑफिस (एनएसओ) के लेबर फोर्स सर्वे में बताया गया कि 15 वर्ष से ऊपर की कामकाजी जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी 28.7 प्रतिशत है जबकि पुरुषों की भागीदारी 73 प्रतिशत है. वहीं नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के अनुसार देश में केवल 32 प्रतिशत शादीशुदा महिलाएं नौकरी करती हैं. वर्ल्ड बैंक के डेटा के अनुसार भी भारत में लेबर फोर्स में लगातार गिरावट देखी जा रही है. साल 2005 के बाद से इसमें लगातार गिरावट देखने को मिल रही है. 2005 में भारत में लेबर फोर्स में 26.7 प्रतिशत महिलाएं थीं. साल 2021 में गिरावट के साथ केवल 20.3 प्रतिशत महिलाएं लेबर फोर्स में हैं.
भारत में पुरुषों में यह आंकड़ा 98 प्रतिशत है. 15 से 49 साल की शादीशुदा महिलाओं में से मात्र 32 प्रतिशत महिलाएं घर से बाहर जाकर नौकरी करती हैं. दूसरी ओर सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के डेटा के मुताबिक 21 मिलियन महिलाएं कार्यक्षेत्र से घट गई. भारत में 15 प्रतिशत कामकाजी महिलाओं को उनके काम का वेतन नहीं मिल पाता है. वहीं पुरुषों में काम के बदले वेतन न मिलने का प्रतिशत 4 फीसदी है.
भारतीय महिलाओं में यह बहुत सामान्य है कि महिलाएं अपनी कमाई खर्च करने का फैसला पति के साथ मिलकर लेती हैं. सैलरी पाने वाली महिलाएं खुद या पति के साथ मिलकर तय करती हैं कि पैसा कैसे खर्च किया जाएगा.
बहू पढ़ी लिखी हो मगर कामकाजी नहीं का कांसेप्ट
ज्यादातर मामलों में देखा जाता है कि ससुराल वाले पढ़ी लिखी लड़की तो चाहते हैं मगर उस का काम पर जाना पसंद नहीं करते. तर्क दिया जाता है कि उन का परिवार संपन्न है तो नौकरी की क्या ज़रूरत है. ये भी समझा जाता है कि नौकरी करने वाली लड़की को घर संभालने का कम वक़्त मिलेगा जिससे घर के कामों में दिक्कत आएगी. क्यूंकि भारत में आम धारणा यही है कि घर संभालना महिलाओं का काम है.
लोगों को लगता है कि अगर बहू नौकरी करने घर के बाहर जाएगी और उसके हाथ में पैसे होंगे तो वह घर वालों को कुछ समझेगी नहीं. जब लड़की आर्थिक रूप से इंडिपेंडेंट होगी तो अपने लिए खुद फैसले लेगी और इस से उस पर ससुराल वालों का अधिकार कम हो जाएगा. घर की इज्ज़त का नाम दे कर बहुओं का जम कर शोषण किया जाता है जो कामकाजी बहुओं के साथ संभव नहीं हो सकेगा.
कई पुरुषों में यह सोच हावी रहती है कि महिलाएं नौकरी करेंगी तो उन का संपर्क अधिक बढ़ेगा. घर से बाहर निकल कर बाहर के पुरुषों से बात करेंगी. यह उन्हें बर्दाश्त नहीं होता है.
पुरुषों को लगता है कि नौकरी करने पर महिलाएं उन पर आश्रित नहीं रहेंगी. वो खुद फैसले ले सकेंगी और उनकी चलेगी नहीं. इसलिए वे नौकरीपेशा महिलाओं को पसंद नहीं करते.
कुछ लोगों को लगता है कि घर की औरतों का काम घर संभालना है. बाहर जाकर काम करने पर कैसे कैसे लोग देखते हैं और वैसे भी औरतों की कमाई से क्या कभी घर चलता है?
कुछ लोग शादी के लिए वर्किंग वुमेन प्रेफर करते हैं मगर कंडिशन यह होती है कि उसका जो काम हो वह पति के बिजनेस से जुड़ा हो. वह जो काम करे पति के साथ मिलकर करे तो बेहतर होगा. वह घर से बाहर जाकर काम न करे.
कामकाजी पत्नी होने के फायदे
पति को यह बात समझनी चाहिए कि अगर पत्नी नौकरी करेगी तो कहीं न कहीं इकोनॉमिकली हेल्प मिलेगी. कभी किसी वजह से यदि पति की नौकरी चली जाए या पति को कुछ हो जाए तो पत्नी घर परिवार को अच्छी तरह संभाल सकती है.
पूरे दिन इधर उधर की बातों में समय बर्बाद करने से अच्छा है कि वह चार लोगों से मिले, कुछ नया सीखे और अपनी काबिलियत दिखाए. वैसे भी यदि किसी को अफेयर करना है तो वह बाहर जा कर ही नहीं बल्कि घर में रह कर भी कर सकती है.
पत्नी कामकाजी होगी तो पति की समस्याओं को समझ सकेगी. कोई समस्या आने पर उस का हल निकालने में मदद कर सकेगी.
पति के साथ बात करने के लिए उस के पास हजारों विषय होंगे. घरेलू महिलाएं अक्सर पति के आते ही उस से घर वालों या सास ननद की बुराई करे में लग जाती हैं या फिर दूसरी घरेलू समस्याओं का रोना ले कर बैठ जाती हैं. मगर एक कामकाजी महिला के पास फ़ालतू बातों के लिए समय ही नहीं होगा.
पति अक्सर इस बात से भी परेशान रहते हैं कि पत्नी सैटरडे संडे आराम नहीं करने देती. कहीं न कहीं जाने की जिद करती है. मगर ज़रा सोचिए जब पत्नी खुद ही 5 दिन काम कर के थकी होगी तो वह कहीं जाने को कैसे कहेगी? वह तो खुद ही छुट्टी के दिन अपनी नींद पूरी कर रही होगी.
कामकाजी पत्नी के साथ फिल्म देखने या कहीं पार्टी में जाना भी आसान होता है. घरवालों की सहमति लेने की जरूरत नहीं. बस दोनों ऑफिस से एक समय छुट्टी ले कर निकलें और वहीं से कहीं भी चले जाएं. रात आने में देर हो तो पेरेंट्स से कह दें कि ऑफिसियल काम था. पेरेंट्स साथ नहीं रहते तो और भी किसी को जवाब देने की जरूरत नहीं.