6 Days Working : सुबह 9 बजे से 9 बजे रात तक सप्ताह में 6 दिन काम करना सही है या गलत इस पर दुनियाभर में विवाद छिड़ गया है. यह वर्कर्स के हितों के खिलाफ माना जा रहा है और बहुत से मैनेजर क्वालिटी वर्क और क्वांटिटी टाइम की तुलना कर के इस कंसैप्ट को नकार रहे हैं.
यह ठीक है कि ज्यादा काम लोगों को थका सकता है पर यह न भूलें कि आज जो पक्के मकान और सामान से भरे मकान, बिजली, इंटरनैट, एअरकंडीशनिंग, गाडि़यां, रेलें, हवाईजहाज सब इसी 9/9/6 की देन हैं.
24 घंटों 365 दिनों मिलने वाली फैसिलिटीज अपनेआप चमत्कार से जमीन पर नहीं उतरीं. कहीं किसी ने जमकर काम किया, जबरन गुलाम बन कर या फिर अपनी इच्छा से तब जा कर ये सुविधाएं मिलीं.
अब हर सुविधा पा चुका जना चाहता है कि उस की जिंदगी या तो पुरोहितों की तरह हो जाए या राजाओं और उन के दरबारियों की तरह. यूरोप में 4 दिन का सप्ताह बारबार मांगा जा रहा है. वर्क फ्रौम होम का दावा ठोका जा रहा है. भरपूर सुविधाओं की तो मांग की जा रही है पर घर में बैठ कर वीडियो गेम्स खेलने या रेस्तरां में पैग पर पैग पीने का समय मांगा जा रहा है.
9/9/6 या 90 घंटे काम अव्यावहारिक हो, प्रैक्टिकल न हो पर यह जरूरी है कि काम के घंटे बढ़ें, अगर लोग ज्यादा सुविधाएं चाहते हैं. पहले के दौर में मानव ने आग और पशुओं को पालतू बना कर काम चलाया था, आज इंडस्ट्रीयलाइजेशन से लाभ मिल रहा है. इंडस्ट्रीयलाइजेशन प्रकृति के दोहन पर निर्भर थी, आज प्रकृति ने जवाब दे दिया है. अब यही लाइफस्टाइल बनाए रखने के लिए ज्यादा काम करना होगा.
चीन ने पिछले 40 सालों में बहुत तेजी से उन्नति की बिना जबरन, गुलाम लेबर के. यह लंबे घंटों के कारण हुआ. यूरोप ने दुनिया फतह की क्योंकि जहाजों पर चढ़ कर जाने वाले लोग घंटों के अनुसार काम नहीं करते थे. अमेरिका ने गुलामों से 90 घंटे काम कराया तो उसे सफलता मिली. श्रमिकों का हित चाहने वाली रूसी कम्युनिस्ट पार्टी ने काम को प्रैफरैंस न दे कर मुंह बंद रखने की नीति अपनाई
तो वह यूरोपीय देशों में सब से पिछड़ा रहा. भारत का तो कमाल ही है. यहां तो गुणगान उन का होता है जो 1000 वर्ष तक बिना कामधाम किए तपस्या कर के ईश्वर को खुश करते रहे थे. ऋषिमुनियों ने कभी काम नहीं किया पर समाज के ठेकेदार बने रहे. राजा भी या तो लड़ते थे या मौज करते या फिर पूजापाठ में समय बरबाद करते रहे हैं. आज फिर हम उसी रास्ते पर चल रहे हैं.
करोड़ों की तादाद में लोग पानी में एक डुबकी लगाने के लिए अपने दिन के 20-22 से ज्यादा घंटे बरबाद कर रहे हैं. वे 90 घंटे काम करने के विचार पर टिकेंगे नहीं तो क्या करेंगे. हमारी औरतें 90 घंटे सदियों से काम करती रही हैं पर किसी ने उन के लिए आंसू नहीं बहाए. सुबह 6 बजे से रात 11 बजे तम काम करने पर उन्हें फटकार और मार ही मिलती थी. उन की तरह काम करने की बात पर पुरुष क्यों भड़क रहे हैं?