Mobile : मोबाइल चैटिंग, मोबाइल गेम्स, मोबाइल रील्स, मोबाइल पोर्न असल में होता ही बड़ा अट्रैक्टिव है पर क्या काम का होता है? अगर दुनिया के यूथ आज अनइंप्लौयमैंट फेस कर रहे हैं तो इसलिए कि वे अनइंप्लौऐबल हैं. उन की नौलेज सिर्फ मोबाइल तक लिमिटेड है. वे सिर उठा कर देखते तक नहीं कि उन के साथ या उन के सामने क्या हो रहा है.
मोबाइल पर जो कंटैंट आ रहा है वह बहुत ज्यादा रैगूलेटेड है. वह कुछ लोगों की सोच पर डिपैंड करता है जो आप के देश, समाज, फैमिली से कहीं भी कनैक्टेड नहीं है. वे आप की चाहत को अपने ऐडवर्टाइजर्स की मांग के अनुसार मोल्ड करते हैं. वे आप को बदल रहे हैं, आप अपनी इच्छानुसार कुछ भी नहीं देख रहे या देख सकते.
यह मैंटल स्लैवरी है और जो जैनरेशन उस की गुलाम हो जाए चाहे वह खुद को जैडजैड कह कर बैंड बजा ले पर असल में बैंड उस का बज रहा है. उसे स्लेवों की तरह घटिया काम करने को मजबूर किया जा रहा है और 40-45 तक होतेहोते वे अंधे और बहरे से होने लगें तो कोई सरप्राइज नहीं होगा.
यह जानकारी भी आप को मोबाइल पर नहीं मिलेगी क्योंकि मोबाइल प्लेटफौर्म हर इन्फौर्मेशन को सैंसर कर सकते हैं. वे आप को आधेअधूरे जवाब दे कर टरका सकते हैं.
जैनरेशन जैड अब कई बार्स के पीछे बंद होने वाली है. मैंटल बार्स जो लोहे की छड़ों से ज्यादा मजबूत हैं और जिन की चाबी किसी के पास नहीं है.
हर समय कान में इयर पैड्स लगाए रखना न केवल यूजुअल ऐटीकेट के खिलाफ है, यह कानों के लिए भी डैंजरस है. अब लगभग सारी दुनिया के डाक्टर और साइंटिस्ट इस बात को दोहरा रहे हैं कि हर समय कानों पर केवल मैकैनिकल साउंड सुनना अननैचुरल है और यह ह्यूमन सेफ्टी नैचुरल इंस्टिक्ट को किल भी कर रही है. बहुत छोटे बच्चों में यह स्पीच डिले और वर्चुअल औटिज्म जैसी बीमारियां पैदा कर रही है.
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