Latest Hindi Stories : पता नहीं कि तुम ही नए आए थे उस लाल तिकोनिया बंगले में या मुझे ही हर पुरानी चीज के नए अर्थ तभी समझ में आने शुरू हुए थे. पिछले 12 सालों से नित्य नियम से सुबहशाम मेरी वैन उसी रास्ते से, उन्हीं पेड़ों के झुरमुट के बीच से होती हुई तुम्हारे तिकोनिया बंगले के सामने से स्कूल जाती थी. मगर तब मुझे वह कभी महज किसी सड़क, दुकान या बेरौनक वीरान मकानों से ज्यादा कुछ नहीं लगा था. उस घुसी हुई वैन में मैं हमेशा

उस तरफ बैठती थी जहां से तिवोनिया बाग दिखता था. कुछ वक्त से मुझे वह लाल रंग का छिली ईंटों वाला बंगला व उस के तीनों ओर आम, अमरूद व बेरिया के हरे झाड़ कुछ ज्यादा ही खुशगवार लगने लगे थे. वहां आड़ू के पेड़ पर उस की नंगी शाखाओं पर हजारों नन्हे मोतियों से जुड़े बैगनी रंगत के गुलाबी फूलों पर आंखें अटक कर रह जाती थीं. मेरे लिए हर चीज का अर्थ बदलता जा रहा था? यह हैरानी मेरी छोटी उम्र

में बड़ीबड़ी आंखों में छोटी उम्र में जैसे समाती नहीं थी.

फिर एक दिन मेहंदी की महीन झाड़ के पीछे परशियन गुलाब की छतनार शाखाओं के साए में सफेद टीशर्ट और शौर्ट्स में मेज पर लैपटौप खोले किताबों के गट्ठर के बीच सिर झुकाए तुम भी मेरे उस फोटो फ्रेम में शामिल हो गए थे.

अभी मैं ने तुम्हारा चेहरामुहरा कुछ नहीं देखा था. पर तुम... तुम... ही थे जिस का वहां बैठे दिखना मुझे जरूरी सा लगने लगा था. जिस दिन तुम नहीं दिखते थे, हर वक्त एक खाली बेचारगी सी मेरे दिमाग में घूमती रहती थी. तुम ने मुझे व हमारी वैन को शैतान स्कूली लड़कियों की कही निकलती टोलियों में से एक समझ कर कभी देखने या झांकने की जरूरत नहीं समझ थी. वैसे भी वैन को गुजरने में लगते ही कितने सैकंड्स थे पर आमतौर पर तुम्हारे घर के सामने जाम रहता या और वैन खड़ी रहती थी. हां, तुम्हारी चाची जरूर फाटक पर खड़े हो अकसर हम लोगों की वैन को आतेजाते देखा करती थीं. घर में शायद और कोई नहीं था. बच्चे के नाम पर एक तुम ही थे जो संजीदगी में बुजुर्गों से भी बढ़ कर रहे होगे.

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