Healthy Cooking Oil : स्वास्थ्य को लेकर लोग जागरूक हो चुके हैं। स्त्रीपुरुष से ले कर आज के यूथ भी इस दिशा में काफी जागरूक हो चुके हैं, लेकिन बाजार में आएदिन नएनए खाना पकाने वाले तेलों की भरमार है, जिस में हरकोई अपने तरीके से तेल से जुड़े हैल्थ इशूज को कम करने का दावा करते रहते हैं, ऐसे में हर युवती के आगे एक ही प्रश्न होता है कि खाना पकाने के लिए तेल कौन सी चुनी जाए.

इस बारे में खार मुंबई की पीडी हिंदुजा अस्पताल एवं चिकित्सा अनुसंधान केंद्र के डाइटीशियन ऋतु धोड़पकर कहती हैं कि सुपरमार्केट की अलमारियों पर अनगिनत तेल के विकल्प हर व्यक्ति को पजल करते हैं, जिस में हर दिशा से उन्हें अलगअलग सलाह मिलते रहते हैं, ऐसे में स्वास्थ्य के लिए सही तेल को चुनने का निर्णय लेना चुनौतीपूर्ण बन चुका है. यह हर घर और परिवार की परेशानी है, जिसे समझना आज जरूरी हो चुका है.

तो आइए, जानते हैं खाना पकाने वाले तेलों की दुनिया में कौन सा तेल वास्तव में प्रयोग करना सही रहता है.

बौडी मास इंडैक्स से फैट मापना मुश्किल

ऋतु कहती है कि केवल बीएमआई (बौडी मास इंडैक्स) को जानने से शरीर में वसा प्रतिशत को सही तरीके से मापा नहीं जा सकता, क्योंकि इस में कई अलग चीजों पर भी ध्यान देना पड़ता है, जो निम्न हैं :

* मांसपेशियों में फैट का अनुपात अलगअलग होता है.

• शरीर की बनावट फैट के डिस्ट्रीब्यूशन को नहीं दर्शाती, जैसे कि कुछ मामलों में पेट की चरबी अधिक हो सकती है, जिसे हम देख कर अंदाजा लगा सकते हैं कि शरीर में फैट की मात्रा अधिक है.

• जैंडर के आधार पर भी शरीर में वसा की संरचना भिन्न होती है.
फैट प्रतिशत को अधिक सटीक रूप से अन्य तरीकों से मापा जा सकता है, मसलन डैक्सा स्कैन। यह सटीक होता है। यह वसा, हड्डियों और मांसपेशियों का भार मापता है.

* स्किन फोल्ड कैलिपर शरीर के विशिष्ट हिस्सों में संचित फैट को मापने में सहायक होता है. फैट के आधार पर तेल का चयन करने के तरीके अधिकतर न्यूट्रिशनिस्ट बताते हैं, जिस का दैनिक जीवन में प्रयोग करना सही रहता है.

ऋतु कहती हैं कि तेल अधिकतर ट्रैडिशन, साइंस और हैल्थ का तालमेल के साथ प्रयोग किया जाता है जिस में खाना पकाने की विधि, लोकल कल्चर और व्यक्तिगत स्वास्थ्य लक्ष्य के अनुसार अलगअलग प्रकार के तेलों का उपयोग करना उचित होता है, जैसे उत्तर भारत में सरसों का तेल परंपरागत रूप से इस्तेमाल होता है, जबकि दक्षिण भारत में नारियल तेल का अधिक प्रचलन है. यह सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि जलवायु और शरीर की जरूरतों पर आधारित वैज्ञानिक निर्णय के अनुसार प्रयोग होता आया है, लेकिन समय के साथसाथ रिसर्च से पता चला है कि हमें अपने आहार में कुछ अलग प्रकार के गुणवत्तापूर्ण तेलों को भी शामिल करना चाहिए. इन की प्रमुख चार श्रेणियां हैं :

सैचुरेटेड फैट्स (Saturated Fats) : घी और मक्खन का हमेशा सीमित मात्रा में सेवन करें। अधिक सेवन से खराब कोलेस्ट्रोल (LDL) बढ़ता है.

नारियल तेल का शरीर पर पौजिटिव इफैक्ट होता है, जो मीडीयम चैन्ड ट्राइग्लिसराइड्स से भरपूर होती है, जो तेजी से ऊर्जा देते हैं और ऐंटीमाइक्रोबायल प्रौपर्टी होती है और यह स्वास्थ्य के लिए गुणकारी होता है.

मोनोअनसैचुरेटेड फैट्स (MUFA) : सब से स्वास्थ्यप्रद तेल जिसे साइंस ने भी प्रूव किया है-
जैतून का तेल, जो सलाद ड्रैसिंग और अब खाना पकाने में भी प्रयोग किया जाता है.

कैनोला तेल, जो पकाने के लिए उत्तम है. एवोकाडो तेल, जो थोड़ा महंगा है लेकिन विटामिन ई और ऐंटीऔक्सीडेंट से भरपूर होता है.
मूंगफली तेल, जो उच्च तापमान पर स्थिर रहता है. तिल का तेल सीमित मात्रा में ही करें.

पौलीअनसैचुरेटेड फैट्स (PUFA) ओमेगा-3 फैटी एसिड युक्त तेल (Anti-inflammatory) : अलसी का तेल, जो चिया सीड्स का तेल होता है, अखरोट का तेल जो दिल, मस्तिष्क और जोड़ों के लिए लाभकारी माना जाता है.

ओमेगा-6 फैटी एसिड युक्त तेल : इस में मक्का का तेल, सोया तेल, सूरजमुखी और सनफ्लावर तेल, जो अधिकांश प्रोसेस्ड फूड्स में पाए जाते हैं.

औयल को ब्लैंड कर प्रयोग कितना सही

डाइटीशियन ऋतु का आगे कहना है कि कुछ लोग कई तेल एकसाथ मिला कर खाना पकाते हैं, ऐसे में वह स्वास्थ्य के लिए कितना फायदेमंद होता है, उसे भी समझना जरूरी है। आज न्यूट्रीशन साइंस परिष्कृत मिश्रणों (blends) और विटामिंस से युक्त तेलों के पक्ष में है, इसलिए कई बार इस का प्रयोग निम्न तरीके से भी किया जा सकता है.

• राइस ब्रान तेल के साथ सनफ्लावर और औलिव औयल को थोड़ीथोड़ी मात्रा में मिलाया जा सकता है.

• सरसों के साथ कैनोला, सूरजमुखी और अलसी के तेल को भी मिलाया जा सकता है.

औयल खरीदने से पहले

हमेशा लेबल पढ़ें और जानें आप कौन सा तेल का प्रयोग अपने भोजन में कर रहे हैं. वैसे तो घी को आंतों की सेहत के लिए लाभकारी बताया जाता है, लेकिन रोजाना 1-2 चम्मच से अधिक घी का सेवन करने से बचना चाहिए.

एवोकाडो तेल में MUFA और ऐंटीऔक्सीडेंट्स से भरपूर होता है, जो वजन घटाने में सहायक, शाकाहारियों के लिए उपयुक्त, हृदय स्वास्थ्य के लिए लाभदायक माना जाता है.

इस के अलावा केवल कोल्ड-प्रेस्ड सरसों तेल चुनें। प्रयोग से पहले त्वचा पर पैच टेस्ट करें। नारियल तेल में मिला कर उपयोग कर सकते हैं।

गरमियों में अधिक तेल के उपयोग से बचें। बादाम, नारियल या तिल के तेल को प्राथमिकता देना अच्छा होता है.

तेल और मिथक

तेल को ले कर कोलेस्ट्रोल के कई मिथक हैं, लेकिन इस की सचाई कुछ और है.

सब से महत्त्वपूर्ण बात यह है कि तेल में खुद कोलेस्ट्रोल नहीं होता. कोलेस्ट्रोल केवल पशु उत्पादों में पाया जाता है. जैतून, सूरजमुखी, एवोकाडो, कैनोला, अलसी और नारियल जैसे सभी वनस्पति तेल प्राकृतिक रूप से कोलेस्ट्रोल रहित होते हैं.

असल दोष सैचुरेटेड और ट्रांस फैट्स का होता है, जिस में अत्यधिक मात्रा में घी, मक्खन और पाम तेल हानिकारक होते हैं. हाइड्रोजैनेटेड और प्रोसेस्ड फूड्स में पाए जाने वाले ट्रांस फैट सब से खतरनाक होते हैं.

इसलिए तेल का एक आदर्श संतुलन को समझना आवश्यक है मसलन 1:1:1:1 यानि सैचुरेटेड, मोनोअनसैचुरेटेड, ओमेगा-3 और ओमेगा-6 फैट्स किसी तेल में होना आवश्यक है.

तेल से नुकसान कब

तेल के बाहरी प्रतिक्रियाओं को समझना जरूरी है, क्योंकि हर तेल से खाना पकाने से नुकसान नहीं होता, लेकिन कई बार किसी तेल की वजह से कुछ लोगों में त्वचा पर ऐलर्जी या जलन भी हो सकती है, जिस में पाम औयल का नाम सब से पहले आता है। यह तेल कम गुणवत्ता वाले सौंदर्य प्रसाधनों और फ्राइड फूड्स में पाया जाता है। इस से खुजली, सूखापन और फंगल इन्फैक्शन हो सकते हैं. इसलिए इस तेल को पूरी तरह से अवौइड करना जरूरी है.

सरसों का तेल में ऐलिल

आइसोथायोसाइनेट नामक गरम तत्त्व होता है, जो ठंडी जगहों में उपयोगी है, लेकिन गरम जलवायु में त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है.

इस प्रकार किसी एक परफैक्ट तेल की तलाश में कभी न रहें, बल्कि विभिन्न तेलों के गुणों को समझ कर उन का संतुलित और सामंजस्यपूर्ण उपयोग करें, क्योंकि तेल का चयन जलवायु, भोजन की शैली, आप की सेहत और शोध पर आधारित होता है. इन सब में आप को याद रखना है कि कुछ लोगों को तेल के प्रयोग से कई प्रकार की समस्याएं हो जाती हैं, ऐसे में डाइटिशियन से सलाह लेना उचित रहता है.

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