Story In Hindi : सारे काम निबटा कर नीता ने एक बार फिर घर पर नजर डाली. पूरा घर भीनीभीनी खुशबू से महक रहा था. विशेषरूप से उस का एवं उस के पति राजन का कमरा तो फूलों की अनगिनत लडि़यों से महक रहा था. उस ने घड़ी की तरफ देखा, अभी शाम के 5 भी नहीं बजे थे.
राजन की प्रतीक्षा में नीता ऊपर बरामदे में आ कर खड़ी हो गई. आज उस की शादी की दूसरी वर्षगांठ थी. इस खुशी के अवसर पर वह राजन को एक तोहफा देना चाहती थी. उस कृति के शीघ्र निर्माण का तोहफा, जिसे प्राप्त कर हर नारी पूर्ण हो जाती है.
आज सुबह ही तो उसे पता चला था. कपड़े धो कर ज्यों ही वह उठी थी, चकरा कर गिरने लगी थी. वह तो कामवाली ने उसे संभाल लिया. पूरा घर उसे घूमता हुआ सा लग रहा था.
कामवाली ने ही बताया, ‘‘मैडमजी, तुम्हें बच्चा होने वाला है. अपनी सासूमां को बुला लो अब.’’
नीता चुप रह गई. क्या कहती? उस के जीवन में तो सासससुर का प्यार ही नहीं था, अम्मां और बाबूजी भी तीर्थ पर जा चुके थे.
कुहनियों को बालकनी की रेलिंग पर टिका कर ऊपर आकाश की तरफ नीता ने बड़ीबड़ी आंखें टिका दीं. डूबते सूरज के चारों तरफ कितने ही छोटेबड़े बादल के टुकड़े तैर रहे थे. सूरज की लालिमा उसे पीछे अतीत में लौटा ले गई...
उन दिनों नीता 12वीं कक्षा में पढ़ती थी. यह संयोग ही था कि उस के पड़ोस की कोई लड़की उस स्कूल में नहीं पढ़ती थी. वह स्कूटी से अकेली ही जाती थी. उस के पिता मातादीन बाबू की पासपड़ोस में काफी प्रतिष्ठा थी. नीता गंभीर स्वभाव की कही जाती थी, मांबाप की इकलौती संतान होने के बावजूद उस के स्वभाव में जिद्दीपन नहीं था.
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