Hindi Story Online : ‘‘ए कदम गंवार, जाहिल और मूर्ख. सच पूछो तो तुम मेरे जैसे व्यक्ति के लिए हो ही नहीं. मैं ने क्या सोचा था और क्या हो गया? रघु क्या सोचता होगा? मैं भी कैसा मूर्ख था कि तुम्हारा बाहरी रंगरूप देख कर भावना में बह गया. सोचा था कि कच्ची मिट्टी को ढाल कर अपने मन के अनुरूप बना लूंगा. पर नहीं, तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया जा सकता. पूजा, सोशल ऐटिकेट तो घुट्टी में पिलाए जाते हैं. बाद में उन्हें ग्लूकोस के इंजैक्शन की तरह खून में नहीं मिलाया जा सकता,’’
मनीष ने क्रोध में चुनचुन कर कठोर विशेषण प्रयुक्त किए.
पूजा एक क्षण को हत्प्रभ बैठी रही. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि उस से ऐसा क्या अपराध हो गया जो मनीष ने इतनी जलीकटी सुना डाली. इतना इंटैलिजैंट जना व्यक्ति और ऐसा गुस्सा. वह पढ़ीलिखी एक छोटे कसबे से नहीं थी, पर जो व्यक्ति इतना क्रोधी हो उस की इंटैलिजैंस का क्या लाभ? उस ने मन ही मन सोचा पर बोलने से कोई फल नहीं निकलने वाला था. अत: चुपचाप बैठी रही.
‘‘अब क्या मूर्खों की तरह शून्य में ताकती बैठी रहोगी? मेरी बात का रिप्लाई क्यों नहीं देती?’’
‘‘किस बात का रिप्लाई?’’ पूजा इतने धीमे स्वर में बोली कि मनीष उस के होंठों के हिलने से ही उस की बात समझ सका.
‘‘कल रघु आया था?’’
‘‘कौन रघु?’’
‘‘मेरा मित्र राघवेंद्र. कितना बड़ा स्कौलर है वह? तुम उसे क्या जानो? अपने विषय का सुपर मास्टर है. बड़ेबड़े व्यक्ति उस की राह में पलकें बिछाने को तैयार रहते हैं.’’
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