Hindi Suspense Story: रात काली होती ही है लेकिन वह रात मुझे जरूरत से ज्यादा काली लग रही थी. केवल काली ही नहीं, भयावह भी. सन्नाटा दिल को चीर रहा था. पलकें नींद से बोझिल थीं पर मन की बेचैनी आंखों और नींद के बीच एक दूरी स्थापित किए हुए थी. मस्तिष्क पर इधरउधर के खयालों का ऐसा बोझ था कि माथे की नसें चटकती सी महसूस हो रही थीं, उफ, मैं ने भी यह क्या कर डाला. शाम को जब अरुण और में दोनों दफ्तर से एकसाथ घर में समय से पहले ही आए तो मैं ने हड़बड़ाहट में अपना मोबाइल किचन कैबिनेट में रख दिया. अकसर हम दोनों एकदूसरे की मोबाइल रिंग बजने पर उठा लेते थे. दोनों को एकदूसरे के पासवर्ड भी पता थे.
चायनाश्ता करने के बाद मैं रात के खाने की तैयारी में लग गईर् और जब मैं ने खाना मेज पर लगाया तो देखा कि अरुण उसी कैबिनेट में कुछ खोज पढ़ रहे हैं. मेरा सिर चकराने लगा. मुझे ऐसा लगा कि मेरे पैरों के नीचे से जमीन खिसक रही है. मुंह से यह भी नहीं निकला कि खाना लग गया है. अचानक अरुण की निगाह मुझ पर पड़ी और बोले, ‘‘अरे आशा, तुम ने कहा क्यों नहीं कि खाना लगा दिया? बस, जरा यह बींस का कैन निकाल लूं. कल सुबह टोस्ट और बींस का ब्रेक फास्ट करूंगा.’’
बींस का कैन निकालते समय मोबाइल अरुण के हाथ नहीं लगा. उस के बाद अरुण ने खाना खाया और रोज की तरह थकेहारे से बिस्तर पर लेट गए. वे सो रहे थे और मैं एक आशंका से घिरी आकाश में टिमटिमाते हुए तारों को निहार रही थी. यह सोच कर दिल धकधक करने लगता कि कहीं अरुण ने मोबाइल उठा कर खोल तो नहीं लिया. उन्होंने यह भी नहीं पूछा कि मोबाइल वहां क्यों रखा है.
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