Dr. Babita Singh : उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डाक्टर बबीता सिंह चौहान उत्तर प्रदेश के आगरा की रहने वाली हैं. इन का जन्म बुलदंशहर के शिकारपुर गांव में हुआ था. बबीता की शादी एटा जिले के सोंहार गांव के रहने वाले जितेंद्र चौहान के साथ हुई. वे समाजसेवी हैं. बबीता सिंह चौहान की बेटी शगुन सिंह आयरलैंड के डबलिन शहर में माइक्रोसौफ्ट कंपनी में बडी अधिकारी है. बेटा प्रद्मुन सिंह अभी अपनी शिक्षा पूरी कर रहा है.
बबीता सिंह ने अपनी राजनीति 2013 में भारतीय जनता पार्टी से शुरू की. 2014 में प्रदेश कार्यसमिति की सदस्य बनीं. 3 साल बृज प्रांत महिला मोरचा की अध्यक्षा रहीं. इस के बाद महिला मोरचा उत्तर प्रदेश की उपाध्यक्ष बनाई गईं. विधानसभा, लोकसभा और स्थानीय निकाय चुनावों में कई क्षेत्रों की प्रभारी रहीं. 2024 में उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्षा बनाई गईं.
पेश हैं, डाक्टर बबीता सिंह चौहान के साथ हुई बातचीत के प्रमुख अंश:
अध्यक्ष के रूप में आप का पहला ही फैसला महिला टेलरों को ले कर काफी विवादों में रहा. कैसे देखती हैं अपने इस फैसले को?
आज के समय में महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला कर चल रही हैं. तमाम महिलाएं ऐसी हैं, जिन के पास रोजगार के अवसर नहीं हैं. कमजोर वर्ग की महिलाएं भी हैं जो हुनरमंद हैं. मैं चाहती हूं कि इन के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध हों. इसलिए मैं ने सरकार से कहा कि यह नियम बनाए जाए जिस से टेलर की शौप पर कपड़ों की नाप लेने का काम महिलाएं भी करें.
अगर कोई महिला किसी पुरुष से अपने कपड़ों की नाप कराने में सहज महसूस नहीं कर रही तो उस के पास यह अवसर होना चाहिए कि वह दुकान पर काम करने वाली महिला को अपने कपड़ों की नाप दे सकें. मैं ने यह नहीं कहा कि वहां केवल महिला ही नाप लेने के लिए हो. महिला भी नाप लेने के लिए होनी चाहिए.
इसी तरह से जिम, स्कूल बस और भी जगहों पर महिलाओं को होना चाहिए. इस से जो भी महिला के साथ सहज हो वह उस से संपर्क कर सकती है. दूसरे इस बहाने महिलाओं के लिए रोजगार के साधन उपलब्ध होंगे. आज जहां भी सिक्युरिटी चैकिंग होती है वहां महिलाएं पहले से हैं. कोई विवाद नहीं है. महिला आयोग ने जब एक आदेश दिया कि टेलर शौप, जिम, पार्लर और स्कूल की बसों में महिलाएं नियुक्त की जाएं तो विवाद हो गया. मेरी बात को गलत तरह से पेश किया गया. मेरा उद्देश्य महिलाओं के लिए ज्यादा से ज्यादा रोजगार के अवसर प्रदान करने का था.
बहुत सारी लड़कियां पढ़लिख कर लड़कों से आगे निकल रही हैं. इस के बाद भी टौप पोजीशन पर उन की भागीदारी उतनी नहीं दिखती है?
देखिए, 2014 में जब केंद्र में मोदी सरकार आई तो लड़कियों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ने के अवसर मिलने लगे. किसी भी परीक्षा परिणाम को देखेंगे तो यह साफ दिखेगा. हाई स्कूल, इंटर में लड़कियां आगे आ रही हैं तो आईएएस, पीसीएस में भी वे आगे आ रही हैं. उत्तर प्रदेश में 2017 के पहले लड़कियों के लिए माहौल सुरक्षित नहीं था. कानून व्यवस्था खराब थी.
बड़ी उम्र की लड़कियों को स्कूलकालेज भेजने से परिवार के लोग डरते थे. आज आप किसी स्कूलकालेज, यूनिवसिर्टी के बाहर खड़े हो जाएं आप को लड़कियों की बढ़ी हुई संख्या दिखेगी. सरकार ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का जो नारा दिया उस का असर जमीन पर दिख रहा है.
आज किस तरह की परेशानियां महिलाओं के सामने आ रही हैं?
महिलाएं बाहर निकल रही हैं तो घरेलू से अधिक बाहर की परेशानियां हैं. कार्यस्थल की परेशानियां हैं. नौकरी में वेतन, प्रमोशन की परेशानी है. महिलाओं को लालच दे कर उन के शोषण की परेशानियां हैं. पहले केवल घरेलू परेशानियां ही होती थीं. सोशल मीडिया के आने से निजी जीवन प्रभावित हुआ है. पहले हमारी मां हमें सरिता, चंपक, गृहशोभा जैसी तमाम पत्रिकाएं पढ़ने को देती थीं. वे खुद भी पढ़ती थीं. हमें भी इन्हें पढ़ने की आदत पड़ गईं. अखबार पढ़ने की आदत थी.
अब यह दौर बदल गया है. सोशल मीडिया के जमाने में सुबह से ले कर रात सोते समय तक ब्लू स्क्रीन ही आंखों के सामने रहती है. इस से हमारी मैंटल हैल्थ बिगड़ रही है.